समीक्षा तैलंग
हमारे यहां जुर्माना भी अभिशप्त है। कोई भी ऐरा-गैरा मुंह उठाए दे देता है। जैसे कुछ लोग मुंह उठाए गालियों की झड़ी लगा देते हैं। गोया सावन की झड़ी हो! ऐसे तो जुर्माने को खुद पर नाज़ करना चाहिए। लेकिन इसकी हालत बाज़ार के उस शेयर-सी भी नहीं जो आज गिरे तो कल उठ जाएंगे। अब तो जुर्माना भी बिज़नेस है। जीएसटी की तरह जेब से कटता रहता है। अख़बार भी इसकी मुनादी करते रहते हैं। आज हज़ा