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corona after effects: गम से ऐसे निकलें बाहर - it is very difficult to get over the grief of someones loss, get out of sorrow like this


गम से ऐसे निकलें बाहर
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Corona After Effects: कोरोना की वजह से न जाने कितने लोगों ने अपनों को खो दिया। इनकी कमी दिल में खलती रहेगी। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि वे लोग हमारे कितने करीब थे। दूर के रिश्तेदार का गम शायद कम हो सकता है पर अगर वह कोई करीबी हो तो दिल बहुत दुखता है।
 
किसी के जाने के गम को कोई दूर नहीं कर सकता, लेकिन ज़िंदगी चलने का ही नाम है। इस कोरोना की वजह से कितने ही घरों का सुकून खत्म हो गया। बहुत-से लोगों को तो लाख जतन के बावजूद बचाया न जा सका। कुछ अपनों को आखिरी विदाई भी नहीं दे पाए। कोरोना ने किसी को कोई नई बीमारी दे दी तो किसी की पुरानी बीमारी को बहुत बढ़ा दिया। किसी का बिजनेस बर्बाद कर दिया तो किसी की नौकरी छीन ली। जिन लोगों के साथ ऐसा हुआ, उनका मन परेशान है। कुछ लोग डिप्रेशन में भी पहुंच गए हैं। ऐसे में सदमे से उबरने के लिए क्या उपाय हो सकते हैं, क्या इन्हें जल्दी इस स्थिति से बाहर निकाला जा सकता है? इस बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं
लोकेश के. भारती
5 बातें जो सदमे से बाहर निकाल सकती हैं
मोटिवेशन के ओवरडोज से बचें। यह चीजों को बनाने के बजाय कई बार बिगाड़ भी देता है। यह दवा के ओवरडोज की तरह है।
जैसे अचानक कोई हादसा होता है, उसी तरह कोरोना भी एक दुर्घटना की तरह है। कोई भी इसके लिए पहले से तैयार नहीं था।
हर शख्स अपने करीबी को बचाने की पूरी कोशिश करता है। कोई सफल होता है, कोई नहीं होता। इसलिए कोशिशों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
भावनाओं को रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अगर कोई रोना चाहता है या गुस्सा करना चाहता है तो उस पर रोक नहीं होनी चाहिए। हां, अगर यह बहुत ज्यादा हो जाए या शख्स बेहोश होने की स्थिति में पहुंचने लगे, तब उसे गम से बाहर लाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर कोई नहीं रोता है तो उसे जबरदस्ती रुलाना भी नहीं चाहिए। भावनाओं को जतलाने का तरीका अलग-अलग हो सकता है।
स्थिति को जिसने स्वीकार कर लिया, वह आगे बढ़ जाएगा। जो नहीं कर पाता है, उसके लिए परेशानी ज्यादा होती है। इस धरती पर जो भी शख्स आया है, उसकी मौत तय है। हां, कोई पहले या अचानक चला जाता है और कोई बाद में।
गम किसी अपने के जाने का...
कोरोना की वजह से न जाने कितने लोगों ने अपनों को खो दिया। इनकी कमी दिल में खलती रहेगी। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि वे लोग हमारे कितने करीब थे। दूर के रिश्तेदार का गम शायद कम हो सकता है पर अगर वह कोई करीबी हो तो दिल बहुत दुखता है।
जान बचा न पाने का गिल्ट
जब कोई गुजर जाता है तो बहुत दुख होता है। लेकिन जब हम चाहकर भी उसकी कोई मदद नहीं कर पाते तो हमारा अपराध बोध हमें परेशान करता रहता है।
विवेक के पैरंट्स यूपी के एक गांव में रहते हैं और वह खुद अमेरिका में। कोरोना की वजह से फ्लाइट्स बंद थीं। इस बीच मां को कोरोना हो गया। उसने गांव में ही कुछ इलाज का बंदोबस्त किया पर वह पूरा नहीं था। मां गुजर गईं। विवेक मां को मुखाग्नि तक नहीं दे सके। अब विवेक इस गिल्ट से परेशान हैं।
जब दिल दुखता है तो हम खुद को कोसते हैं। खुद में कमी निकालते हैं। जैसे विवेक ने मां के इलाज की कोशिश की। लेकिन मां को आखिरी बार नहीं देख पाए।
इससे पहले कई बार विवेक की मां ने उनको घर आने के लिए कहा था। तब विवेक ने दिवाली के आसपास आने की बात कही थी। यह भी कहा था कि मां तुम्हारा भी पासपोर्ट तैयार हो जाएगा तो हम साथ चलेंगे। इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर ने ज़िंदगी में उथल-पुथल मचा दी। ऐसे में वाकई किसी को पता नहीं होता कि आगे क्या होने वाला है। विवेक के साथ भी यही हुआ। अब सोचकर देखें कि अगर सबको पता हो आगे हादसा होने वाला है तो सभी उससे बच जाएंगे, कोई नहीं मरेगा। विवेक ने उस वक्त जो सोचा वह भी ठीक था। वह मां के साथ रहने के लिए ही उन्हें अपने साथ लेकर जाना चाहते थे।
दुख और पछतावा उस वक्त जरूर होना चाहिए जब कोई अपना बार-बार फोन करे या बात करने की कोशिश करे और अंहकार या पुरानी नाराजगी की वजह से उनका फोन न उठाएं या गलत तरीके से बात करें।
जब तूफान आता है तो हमारे हाथों में कुछ नहीं होता। नुकसान भी तूफान की रफ्तार पर ही निर्भर करता है। कोरोना का तूफान भी ऐसा ही है।
किसी के न रहने का दुख
कुसुम के पति सर्वेश बिजनेसमैन थे। पिछले साल सर्वेश को बिजनेस में बहुत नुकसान हुआ। उन्हें शराब और सिगरेट की लत पहले से थी जो बिजनेस में घाटा होने के बाद ज्यादा बढ़ गई। वह दिन में 12 से 14 सिगरेट पीने लगे। शराब भी ज्यादा लेने लगे। कुसुम ने नशा छोड़ने के लिए बार-बार गुहार लगाई। पति को यह भी समझाया कि फ्लैट और गाड़ी बेचकर गांव चलते हैं। लेकिन सर्वेश ने उनकी बात नहीं मानी। नशा बढ़ता रहा और वजन भी काफी बढ़ गया। इम्यूनिटी कम होने लगी। जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो कुसुम का पूरा परिवार चपेट में आ गया। यहां तक कि 8 और 11 साल की बेटियों को भी कोरोना हुआ। एक हफ्ते के अंदर सभी का बुखार उतर गया लेकिन सर्वेश का बुखार जस का तस रहा। सिगरेट की लत की वजह से फेफड़े पहले ही कमजोर हो चुके थे तो ऑक्सिजन लेवल 8वें दिन 80 से नीचे चला गया। कुसुम ने काफी मशक्कत के बाद एक कोविड केयर सेंटर में एडमिट कराया। इलाज के बावजूद कोरोना इंफेक्शन बढ़ता गया और 17वें दिन सर्वेश की मौत हो गई। अब कुसुम खुद को कोसती हैं कि शायद उनके ज्यादा ध्यान देने से सर्वेश की सिगरेट की लत छूट जाती तो वह बच जाते। वह किसी बड़े अस्पताल में भर्ती करा पाती तो शायद वह बच जाते। कुसुम को यह भी लगता है कि उनकी वजह से ही पति की मौत हो गई। सच तो यह है कि कुसुम ने सर्वेश को बचाने की बहुत कोशिश की। घर और गाड़ी बेचने तक की सलाह दी। यह इंसानी फितरत है कि जब कोई गुजर जाता है तो उसकी कमियों के बारे में बात नहीं करते, अफसोस करते हैं।
अफसोस के 5 स्तर होते हैं
1. सचाई को स्वीकार न करना...जब किसी बहुत करीबी की मौत होती है तो हम उसे स्वीकार नहीं कर पाते। हम यह नहीं समझ पाते कि जिससे हमने पिछले हफ्ते या 1 दिन पहले या फिर उसी दिन बात की थी, वह ऐसे कैसे दुनिया से जा सकते हैं। हम उस दुख से निकलना ही नहीं चाहते। हमने जो वक्त उनके साथ गुजारा था, उसे छोड़कर आगे बढ़ने की सोच से भी भागते हैं। हमारा मन यह मानने को तैयार ही नहीं होता यानी हम वर्तमान में आना ही नहीं चाहते। हम अपनी असल स्थिति से भागने की कोशिश करते हैं।
क्या करें: यह जरूरी नहीं कि किसी की मौत के फौरन बाद ही इस बात को स्वीकार कर लिया जाए कि वह चला गया। खुद को कुछ वक्त दें। अगर वक्त ज्यादा लग रहा है तो घर के सदस्य और दोस्त ज्यादा दबाव न बनाएं कि जो दुख में है वह फौरन हकीकत समझे। जख्म बड़ा है तो भरने में वक्त भी लग सकता है।
2.गुस्सा खूब आना... जब कोई अपना जाता है तो गुस्सा भी खूब आता है। खुद पर, गैरों पर, दुनिया पर, सब पर। कभी-कभी गुजरे हुए शख्स पर भी गुस्सा आता है कि उन्होंने बात नहीं मानी, लेकिन ऐसा कम ही होता है। ऐसे में हमारी कोशिश यह होती है कि गुस्से को दबा लें। लोग क्या कहेंगे, यही सोचकर अपना दुख जता नहीं पाते।
क्या करें: गुस्सा आए तो उसे निकलने दें। यह न सोचें कि कोई क्या कहेगा। गुस्से की भावना को बाहर निकालने में ही फायदा है। जो भी इच्छा करे, वही करें। खूब चिल्लाने या जोर से रोने का मन हो तो चिल्लाएं और रोएं। गुस्सा निकलने पर मन शांत होता है। भावना के वेग कम करने का एक बेहतरीन तरीका है गुस्से को निकलने देना। गुस्सा को जमा करके नहीं रखना चाहिए।
3. हम बार्गेनिंग करते हैं... जब कोई शख्स बीमार होता है या ऐसी स्थिति में पहुंच जाए जहां मरीज का ठीक होना लगभग नामुमकिन होता है, तब हम ऊपरवाले की शरण में जाते हैं। उनसे कहते हैं कि इसे ठीक कर दो, मैं उससे कभी झगड़ा या गुस्सा नहीं करूंगा या मैं अपनी बुरी आदत छोड़ दूंगा। हम यह भी सोचने लगते हैं कि काश! मैं बीते समय में जाकर कुछ चीजों को ठीक कर पाता, लेकिन मुमकिन नहीं हो सकता। हम किसी चमत्कार की उम्मीद भी पाल लेते हैं। जब यह बार्गेनिंग काम नहीं करती तो हम डिप्रेशन की तरफ बढ़ने लगते हैं।
क्या करें: अगर कोई शख्स बहुत ज्यादा बीमार था और उसे बचा पाना लगभग असंभव था तो ऊपर वाले से बार्गेनिंग करके यह सोच लेना कि अब वह ठीक हो जाएगा, सही नहीं है। यह ख्वाब है जिसके टूटने पर बहुत दुख होता है। ऐसे में हकीकत को स्वीकार करना चाहिए कि ऐसी गंभीर बीमारी के बाद किसी का बच पाना संभव नहीं था। हमने कोशिश तो बहुत की थी।
4. डिप्रेशन में चले जाना...जब हमारी बार्गेनिंग से काम नहीं बनता, अपने प्रिय शख्स के लिए हमने जो मन में सोचा था, वह पूरा नहीं होता तो हम डिप्रेशन की ओर बढ़ने लगते हैं। सच को स्वीकार करते हैं और सिर्फ चुनौतियों के बारे में सोचते हैं, आगे की परेशानियों को देखते हैं। एक तरह से यह निराशा की स्थिति होती है। हमें लगता है कि इन समस्याओं का अब कोई हल नहीं है। कई बार लोग खुदकुशी के बारे में सोचने लगते हैं।
क्या करें: किसी के घर में ऐसी स्थिति हो तो परिवार के सदस्यों या फिर किसी नजदीकी दोस्त को जरूर मदद करनी चाहिए। मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स की सहायता लेनी चाहिए।
चूंकि डिप्रेशन की तरफ कोई शख्स तब जाता है जब उसे हकीकत का अहसास हो जाता है, लेकिन परेशानियों का हल नहीं दिखता। ऐसे में वह खुद को रोजाना के काम में व्यस्त रखे। क्रिएटिव काम जैसे पेंटिंग्स आदि करना या संगीत की मदद लें।
ऐसे लोगों से जरूर दूरी बनानी चाहिए जो सिर्फ न�

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