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अमर स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद की आज जयंती है. अपने वादे के मुताबिक, वे अपनी अंतिम सांस तक आज़ाद ही रहे थे, जब अंग्रेज़ों ने उन्हें अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया था, तो उन्होंने खुद को गोली मार ली थी और इस तरह आज़ाद ताउम्र 'आज़ाद' ही रहे थे. उन्हें कभी भी अंग्रेज सरकार पकड़ नहीं सकी थी. 
काकोरी कांड के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद का नाम भारतीय स्वंतंत्र इतिहास में किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है. हम सभी को उनके हर बलिदान और वीरता की कहानी जुबानी याद है. चंद्र शेखर आज़ाद के नेतृत्व में ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे वीरो ने देश की आज़ादी के लिए जंग लड़ी थी. वह 15-16 साल की उम्र में ही आज़ादी के आंदोलन से जुड़ गए थे. जब उन्हें पहली बार अदालत में पेश किया गया था तब उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई गयी थी.
लेकिन उनके शरीर पर हर कोड़ा पड़ने पर उनके मुह से 'वन्दे मातरम' ही निकला था. इस दौरान उन्होंने ब्रिटिश जज को अपना नाम 'आज़ाद' पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को अपना घर बताया था. 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजी सैनिकों ने आज़ाद को घेर लिया था. बहुत देर तक संघर्ष करने के बाद आज़ाद बुरी तरह घायल हो गए थे. इसी बीच उनके पास एकमात्र गोली बची थी. जिससे उन्होंने खुद को गोली मार कर अपने प्राण भारत माता के चरणों में न्योछावर कर दिए थे और इस तरह चंद्रशेखर ताउम्र 'आज़ाद' ही रहे.
 
अमर स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद की आज जयंती है. अपने वादे के मुताबिक, वे अपनी अंतिम सांस तक आज़ाद ही रहे थे, जब अंग्रेज़ों ने उन्हें अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया था, तो उन्होंने खुद को गोली मार ली थी और इस तरह आज़ाद ताउम्र 'आज़ाद' ही रहे थे. उन्हें कभी भी अंग्रेज सरकार पकड़ नहीं सकी थी. 
काकोरी कांड के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद का नाम भारतीय स्वंतंत्र इतिहास में किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है. हम सभी को उनके हर बलिदान और वीरता की कहानी जुबानी याद है. चंद्र शेखर आज़ाद के नेतृत्व में ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे वीरो ने देश की आज़ादी के लिए जंग लड़ी थी. वह 15-16 साल की उम्र में ही आज़ादी के आंदोलन से जुड़ गए थे. जब उन्हें पहली बार अदालत में पेश किया गया था तब उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई गयी थी.
लेकिन उनके शरीर पर हर कोड़ा पड़ने पर उनके मुह से 'वन्दे मातरम' ही निकला था. इस दौरान उन्होंने ब्रिटिश जज को अपना नाम 'आज़ाद' पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को अपना घर बताया था. 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजी सैनिकों ने आज़ाद को घेर लिया था. बहुत देर तक संघर्ष करने के बाद आज़ाद बुरी तरह घायल हो गए थे. इसी बीच उनके पास एकमात्र गोली बची थी. जिससे उन्होंने खुद को गोली मार कर अपने प्राण भारत माता के चरणों में न्योछावर कर दिए थे और इस तरह चंद्रशेखर ताउम्र 'आज़ाद' ही रहे.
 

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