अपडेट समय: 210 नयी िदल्ली में मंगलवार को यशपाल शर्मा के बेटे व पत्नी को सांत्वना देतेे पूर्व क्रिकेटर मदन लाल। -मुकेश अग्रवाल नयी दिल्ली, 13 जुलाई (एजेंसी) मध्यक्रम में अपनी जुझारू बल्लेबाजी से भारतीय क्रिकेट में विशेष पहचान बनाने वाले और 1983 विश्व कप के नायक यशपाल शर्मा का मंगलवार को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। सुबह की सैर से लौटने के बाद वह बेहोश हो गये थे। वह 66 वर्ष के थे। उनके परिवार में पत्नी, दो पुत्रियां और एक पुत्र है। लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस अवसर पर अन्य लोगों के अलावा उनके पूर्व साथी कीर्ति आजाद भी उपस्थित थे। यशपाल ने अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर में 37 टेस्ट मैचों में 1606 और 42 वनडे में 883 रन बनाये। वनडे की अपनी 40 पारियों में वह कभी शून्य पर आउट नहीं हुए। उन्होंने दोनों प्रारूपों में एक-एक विकेट भी लिया। उन्हें जुझारूपन के लिए जाना जाता है। विश्व कप 1983 में इंगलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में ओल्ड ट्रैफर्ड में खेली गयी उनकी 61 रन की पारी क्रिकेट प्रेमियों को हमेशा याद रहेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई हस्तियों ने यशपाल शर्मा के निधन पर शोक व्यक्त किया। विश्व कप 1983 की चैंपियन भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव से जब संपर्क किया गया तो वह काफी दुखी और कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थे। यशपाल के टीम के अन्य साथी भी स्तब्ध हैं। विश्व कप 1983 की चैंपियन टीम 2 हफ्ते पहले ही यहां एक किताब के विमोचन के मौके पर मिली थी। पूर्व भारतीय कप्तान दिलीप वेंगसरकर ने कहा, ‘यह अविश्वसनीय है। वह हम सभी में सबसे अधिक फिट था। वह शाकाहारी था। रात को खाने में सूप लेता था और सुबह की सैर पर जरूर जाता था। मैं सकते में हूं।' पूर्व तेज गेंदबाज बलविंदर सिंह संधू ने कहा, ‘1983 की टीम परिवार की तरह थी और ऐसा लगता है कि हमारे परिवार का एक सदस्य नहीं रहा।' पूर्व भारतीय कप्तान क्रिस श्रीकांत ने कहा कि उन्होंने एक अच्छा मित्र खो दिया। यशपाल रणजी में पंजाब, हरियाणा और रेलवे की अोर से खेले। उन्होंने 160 प्रथम श्रेणी मैचों में 8933 रन बनाये, जिसमें 21 शतक शामिल हैं। उनका उच्चतम स्कोर नाबाद 201 रन रहा। वह अंपायर भी थे और 2 महिला वनडे मैचों में उन्होंने अंपायरिंग भी की। वह यूपी रणजी टीम के कोच भी रहे। वह 2000 के दशक में राष्ट्रीय चयनकर्ता भी रहे। वह 2011 विश्व कप में धोनी की अगुवाई में चैंपियन बनने वाली टीम के चयन पैनल का भी हिस्सा थे। टीम इंडिया के फर्श से अर्श तक के साक्षी यशपाल शर्मा टीम इंडिया के फर्श से अर्श तक पहुंचने के सफर के साक्षी रहे। यशपाल 1979 विश्व कप की उस भारतीय टीम का हिस्सा थे जिसे श्रीलंका से भी हार का सामना करना पड़ा था। फिर 4 साल बाद कपिल देव की अगुआई में उनकी मौजूदगी वाली टीम ने वेस्टइंडीज की दिग्गज टीम को हराकर खिताब जीता था। विश्व कप 1983 में कपिल देव, मोहिंदर अमरनाथ और रोजर बिन्नी के प्रदर्शन को अधिक सुर्खियां मिलती हैं, लेकिन यशपाल की छाप भी उस टूर्नामेंट में किसी से कम नहीं थी। सर्वश्रेष्ठ एकदिवसीय पारी 1983 विश्व कप में भारत के पहले मैच में ओल्ड ट्रैफर्ड में वेस्टइंडीज के खिलाफ यशपाल शर्मा की 89 रन की पारी ने ही भारत की आने वाली सफलता का मंच तैयार किया था। भारत ने यह मैच 32 रन से जीता था। यशपाल का मानना था कि माइकल होल्डिंग, मार्शल, एंडी रोबर्ट्स और जोएल गार्नर जैसे वेस्टइंडीज के तूफानी गेंदबाजों के खिलाफ 120 गेंद में 89 रन उनकी सर्वश्रेष्ठ एक दिवसीय पारी थी। यशपाल की एक अन्य पारी जिसे लगभग भुला दिया गया, वह 1980 में एडीलेड में न्यूजीलैंड के खिलाफ थी। उन्होंने 72 रन बनाये और न्यूजीलैंड के गैरी ट्रूप के ओवर में 3 छक्के जड़े। मार्शल के साथ अजीब रिश्ता :यशपाल शर्मा ने एक बार कहा था, ‘मैलकम मार्शल के साथ मेरा अजीब रिश्ता था। मैं जब भी बल्लेबाजी के लिए आता तो वह कम से कम 2 बार गेंद मेरी छाती पर मारता था।' यशपाल अकसर मार्शल के बाउंसर और 145 किमी प्रति घंटा से अधिक की रफ्तार की इनस्विंगर की बात करते थे। खबर शेयर करें 6 घंटे पहले 5 घंटे पहले 6 घंटे पहले दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है। ‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया। खबरों के लिए सब्सक्राइब करें