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फॉरेंसिक टेस्ट में हुई पेगासस द्वारा जासूसी की पुष्टि, निशाने पर थे कई भारतीय पत्रकार


फॉरेंसिक टेस्ट में हुई पेगासस द्वारा जासूसी की पुष्टि, निशाने पर थे कई भारतीय पत्रकार
द वायर समेत 16 मीडिया संगठनों द्वारा की गई पड़ताल दिखाती है कि इज़रायल के एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर द्वारा स्वतंत्र पत्रकारों, स्तंभकारों, क्षेत्रीय मीडिया के साथ हिंदुस्तान टाइम्स, द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, द वायर, न्यूज़ 18, इंडिया टुडे, द पायनियर जैसे राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को भी निशाना बनाया गया था.
(फोटो: रॉयटर्स)
नई दिल्ली: द वायर और सहयोगी मीडिया संस्थानों द्वारा दुनिया भर में हजारों फोन नंबरों- जिन्हें इजरायली कंपनी के विभिन्न सरकारी ग्राहकों द्वारा जासूसी के लिए चुना गया था, के रिकॉर्ड्स की समीक्षा के अनुसार, 2017 और 2019 के बीच एक अज्ञात भारतीय एजेंसी ने निगरानी रखने के लिए 40 से अधिक भारतीय पत्रकारों को चुना था.
लीक किया हुआ डेटा दिखाता है कि भारत में इस संभावित हैकिंग के निशाने पर बड़े मीडिया संस्थानों के पत्रकार, जैसे हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक शिशिर गुप्ता समेत इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस के कई नाम शामिल हैं.
इनमें द वायर के दो संस्थापक संपादकों समेत तीन पत्रकारों, दो नियमित लेखकों के नाम हैं. इनमें से एक रोहिणी सिंह हैं, जिन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह के कारोबार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी कारोबारी निखिल मर्चेंट को लेकर रिपोर्ट्स लिखने के बाद और प्रभावशाली केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के बिजनेसमैन अजय पिरामल के साथ हुए सौदों की पड़ताल के दौरान निशाने पर लिया गया था.
एक अन्य पत्रकार सुशांत सिंह, जो इंडियन एक्सप्रेस में डिप्टी एडिटर हैं, को जुलाई 2018 में तब निशाना बनाया गया, जब वे अन्य रिपोर्ट्स के साथ फ्रांस के साथ हुई विवादित रफ़ाल सौदे को लेकर पड़ताल कर रहे थे.
डेटा लीक, एनएसओ का दावे से इनकार
फ्रांस के एक मीडिया नॉन प्रॉफिट संस्थान फॉरबिडेन स्टोरीज़ और एमनेस्टी इंटरनेशनल के पास एनएसओ के फोन नंबरों का रिकॉर्ड था, जिसे उन्होंने पेगासस प्रोजेक्ट नामक की एक लंबी जांच के हिस्से के रूप में
द वायर  और दुनिया भर के 15 अन्य समाचार संगठनों के साथ साझा किया है.
एक साथ काम करते हुए ये मीडिया संगठन- जिनमें द गार्जियन, द वाशिंगटन पोस्ट, ल मोंद और सुडडोईच ज़ाईटुंग शामिल हैं- ने कम से कम 10 देशों में 1,571 से अधिक नंबरों के मालिकों की स्वतंत्र रूप से पहचान की है और पेगासस की मौजूदगी को जांचने के लिए इन नंबरों से जुड़े फोन्स के एक छोटे हिस्से की फॉरेंसिक जांच की है.
एनएसओ इस दावे का खंडन करता है कि लीक की गई सूची किसी भी तरह से इसके स्पायवेयर के कामकाज से जुड़ी हुई है. द वायर और पेगासस प्रोजेक्ट के साझेदारों को भेजे गए पत्र में कंपनी ने शुरुआत में कहा कि उसके पास इस बात पर ‘यकीन करने की पर्याप्त वजह है’ कि लीक हुआ डेटा ‘पेगासस का उपयोग करने वाली सरकारों द्वारा निशाना बनाए गए नंबरों की सूची नहीं’ है, बल्कि ‘एक बड़ी लिस्ट का हिस्सा हो सकता है, जिसे एनएसओ के ग्राहकों द्वारा किसी अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया.’
हालांकि, निशाना बनाए गए फोन की फॉरेंसिक जांच में सूची में शामिल कुछ भारतीय नंबरों पर पेगासस स्पायवेयर के इस्तेमाल की पुष्टि हुई है. साथ ही इस बात को भी स्पष्ट किया गया है कि सर्विलांस का यह बेहद अनधिकृत तरीका- जो हैकिंग के चलते भारतीय कानूनों के तहत अवैध है- अब भी पत्रकारों और अन्य की जासूसी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
पेगासस और भारत
2010 में स्थापित एनएसओ ग्रुप को पेगासस के जनक के तौर पर जाना जाता है. पेगासस एक ऐसा स्पायवेयर है, जो इसे संचालित करने वालों को दूर से ही किसी स्मार्टफोन को हैक करने के साथ ही उसके माइक्रोफोन और कैमरा सहित, इसके कंटेंट और इस्तेमाल तक पहुंच देता है.
कंपनी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि पेगासस को निजी संस्थाओं या किसी भी सरकार को नहीं बेचा जाता है. असल में द वायर और उसके मीडिया सहयोगियों को लिखे पत्र में भी एनएसओ ने दोहराया कि वह अपने स्पायवेयर को केवल ‘जांची-परखी सरकारों’ को बेचता है.
एनएसओ इस बात की पुष्टि नहीं करेगा कि भारत सरकार इसकी ग्राहक है या नहीं, लेकिन भारत में पत्रकारों और अन्य लोगों के फोन में पेगासस की मौजूदगी और संभावित हैकिंग के लिए चुने गए लोगों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि यहां एक या इससे अधिक आधिकारिक एजेंसियां सक्रिय रूप से इस स्पायवेयर का उपयोग कर रही हैं.
नरेंद्र मोदी सरकार ने अब तक स्पष्ट रूप से पेगासस के आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल से इनकार नहीं किया है, पर यह उन आरोपों को खारिज करती रही है कि भारत में कुछ लोगों की अवैध निगरानी के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया जा सकता है. शनिवार को पेगासस प्रोजेक्ट के सदस्यों द्वारा इस बारे में भेजे गए सवालों के जवाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इसी बात को दोहराया है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब द्वारा लीक हुई सूची में शामिल कई देशों के लोगों के एक छोटे समूह के स्मार्टफोन के स्वतंत्र फॉरेंसिक विश्लेषण में आधे से अधिक मामलों में पेगासस स्पायवेयर के निशान मिले हैं.
भारत में जांचे गए 13 आईफोन में से नौ में उन्हें निशाना बनाए जाने के सबूत मिले हैं, जिनमें से सात में स्पष्ट रूप से पेगासस मिला है. नौ एंड्राइड फोन भी जांचे गए, जिनमें से एक में पेगासस के होने का प्रमाण मिला, जबकि आठ को लेकर निश्चित तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि एंड्रॉइड लॉग उस तरह का विवरण प्रदान नहीं करते हैं, जिसकी मदद से एमनेस्टी की टीम पेगासस की उपस्थिति की पुष्टि कर सकती है.
हालांकि, इस साझा इन्वेस्टिगेशन से यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि वे सभी पत्रकार, जिनके नंबर लीक हुई सूची में मिले हैं, की सफल रूप से जासूसी की गई या नहीं. इसके बजाय यह पड़ताल सिर्फ यह दिखाती है कि उन्हें 2017-2019 के बीच आधिकारिक एजेंसी या एजेंसियों द्वारा लक्ष्य के बतौर चुना गया था.
एआई की सिक्योरिटी लैब द्वारा किए गए विशिष्ट डिजिटल फॉरेंसिक विश्लेषण में लीक हुई सूची में शामिल छह भारतीय पत्रकारों के मोबाइल फोन पर पेगासस स्पायवेयर के निशान मिले, जो इस लिस्ट में अपना नंबर मिलने के बाद अपने फोन की जांच करवाने के लिए सहमत हुए थे.
पेगासस प्रोजेक्ट की रिपोर्टिंग से सामने आई पत्रकारों की सूची को बेहद विस्तृत या निगरानी का निशाना बने रिपोर्टर्स का सैंपल भर भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह केवल लीक हुए एक डेटा सेट में एक छोटी अवधि में सर्विलांस के एक तरीके- यानी केवल पेगासस से हुई जासूसी के बारे में बात करता है.
दिल्ली के पत्रकारों पर थी नज़र
लिस्ट में शामिल अधिकतर पत्रकार राष्ट्रीय राजधानी के हैं और बड़े संस्थानों से जुड़े हुए हैं. मसलन, लीक डेटा दिखाता है कि भारत में पेगासस के क्लाइंट की नजर हिंदुस्तान टाइम्स समूह के चार वर्तमान और एक पूर्व कर्मचारी पर थी.
इनमें कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता, संपादकीय पेज के संपादक और पूर्व ब्यूरो चीफ प्रशांत झा, रक्षा संवाददाता राहुल सिंह, कांग्रेस कवर करने वाले पूर्व राजनीतिक संवाददाता औरंगजेब नक्शबंदी और इसी समूह के अख़बार मिंट के एक रिपोर्टर शामिल हैं.
अन्य प्रमुख मीडिया घरानों में भी कम से कम एक पत्रकार तो ऐसा था, जिसका फोन नंबर लीक हुए रिकॉर्ड में दिखाई देता है. इनमें इंडियन एक्सप्रेस की ऋतिका चोपड़ा (जो शिक्षा और चुनाव आयोग कवर करती हैं), इंडिया टुडे के संदीप उन्नीथन (जो रक्षा और सेना संबंधी रिपोर्टिंग करते हैं), टीवी 18 के मनोज गुप्ता (जो इन्वेस्टिगेशन और सुरक्षा मामलों के संपादक हैं), द हिंदू की विजेता सिंह (गृह मंत्रालय कवर करती हैं) शामिल हैं, और इनके फोन में पेगासस डालने की कोशिशों के प्रमाण मिले हैं.
द वायर  में जिन्हें निशाना बनाया गया, उनमें संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु शामिल हैं, जिनके फोन की फॉरेंसिक जांच में इसमें पेगासस होने के सबूत मिले हैं.
द वायर  की डिप्लोमैटिक एडिटर देवीरूपा मित्रा को भी निशाना बनाया गया है.
रोहिणी सिंह के अलावा
द वायर  के लिए नियमित तौर पर राजनीतिक और सुरक्षा मामलों पर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा का नंबर भी रिकॉर्ड्स में मिला है. इसी तरह स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी को भी तब निशाना बनाया गया था, जब वे वायर के लिए लिख रही थीं.
सिद्धार्थ वरदराजन, स्वाति चतुर्वेदी, रोहिणी सिंह, एमके वेणु. (सभी फोटो: द वायर)
सर्विलांस के लिए निशाना बनाए जाने की बात बताए जाने पर झा ने कहा, ‘जिस तरह यह सरकार भारतीय संविधान का अपमान इसकी रक्षा करने वालों को ही फंसाने के लिए कर रही है, मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह खतरा है या तारीफ.’
द हिंदू की विजेता सिंह ने द वायर से कहा, ‘मेरा काम स्टोरी करना है. खबर रुकती नहीं है, स्टोरी वैसी ही कही जानी चाहिए, जैसी वो है, बिना किसी फैक्ट को दबाए बिना सजाए-धजाये.’
उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह ‘अनुमान लगाना उचित नहीं होगा’ कि कोई उन्हें निगरानी के संभावित लक्ष्य के रूप में क्यों देखेगा, ‘हम जो भी जानकारी इकट्ठा करते हैं, वो अगले दिन के अख़बार में आ जाती है.’
सूची में द पायनियर के इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टर जे. गोपीकृष्णन का भी नाम है, जिन्होंने 2जी टेलीकॉम घोटाला का खुलासा क

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