ncpcr study shows 37.8% and 24.3% of 10-year old children have facebook and instagram accounts respectively कोरोना का साइडइफेक्ट : देश में 10 साल की उम्र में ही सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं बच्चे, FB पर 37% तो Instagram पर 24% का है अकाउंट Authored by Ambika Pandit | Edited byअनिल कुमार | टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Updated: Jul 25, 2021, 9:12 AM Subscribe राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की तरफ से स्मार्टफोन और इंटरनेट के उपयोग के बच्चों पर प्रभाव को लेकर एक स्टडी कराई गई। स्टडी में 3400 से अधिक स्कूल जाने वाले बच्चों से सवाल किए गए। महत्वपूर्ण बात यह है कि 42.9% स्टूडेंट्स ने सोशल नेटवर्किंग अकाउंट होने की बात स्वीकार की है।
Subscribe हाइलाइट्स 13 साल और उससे अधिक उम्र के बच्चों में स्मार्टफोन का यूज तेजी से बढ़ा 8 से 18 साल के 30.2% बच्चों के पास पहले से ही अपने स्मार्टफोन सर्वे में दिल्ली, हैदराबाद, मुंबई समेत 6 राज्यों के बडे़ शहरों को किया शामिल नई दिल्ली कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन और ऑनलाइन क्लासेज के बीच स्कूल जाने वाले बच्चों के स्मार्टफोन और इंटरनेट के यूज को लेकर एक सर्वे आया है। सर्वे में 3400 स्कूली स्टूडेंट्स से स्मार्टफोन और इंटरनेट से जुड़े सवाल किए गए। खासबात यह है कि 42.9% स्टूडेंट्स ने सोशल नेटवर्किंग अकाउंट होने की बात स्वीकार की है। 10 साल की उम्र के बच्चों का सोशल मीडिया अकाउंट बच्चों का उत्पीड़न और दुर्व्यवहार को रोकने, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की तरफ से यह स्टडी कराई गई। सर्वे में एक बात सामने आई है कि बच्चे आसानी से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अकाउंट बना सकते हैं। स्टडी में एक बड़ी चिंता का विषय है कि 10 साल की उम्र के बच्चों के बड़े हिस्से का सोशल मीडिया अकाउंट हैं। अकाउंट बनाने के लिए उम्र की सीमा 13 वर्ष यह पता लगा कि सर्वेक्षण में शामिल 10 साल के बच्चों के 37.8% बच्चों का फेसबुक और 24.3% बच्चों का इंस्टाग्राम अकाउंट हैं। स्टडी में इसे विभिन्न सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म की तरफ निर्धारित दिशानिर्देशों के 'उल्लंघन प्रतीत होता है" के रूप में सामने रखा गया है। जहां तक फेसबुक और इंस्टाग्राम का संबंध है, यहां अकाउंट बनाने के लिए उम्र की सीमा 13 वर्ष होती है। बच्चों के लिए कई कंटेंट हिंसक महामारी के दौरान आए सर्वे में कहा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कई तरह का कंटेंट होता है, जिनमें से बहुत सारे कंटेंट बच्चों के लिए न तो उपयुक्त होते हैं और ना ही उनके अनुकूल होते हैं। इनमें से कुछ कंटेंट हिंसक या अश्लील से लेकर ऑनलाइन दुर्व्यवहार और बच्चों को डराने-धमकाने के से संबंधित भी हो सकते हैं। इसलिए, इस संबंध में, उचित निरीक्षण और कड़े इन्फोर्समेंट की आवश्यकता है। चैटिंग के लिए सबसे अधिक यूज वे सभी बच्चों में जिनका प्रमुख सोशल नेटवर्किंग ऐप्स/साइटों पर अकाउंट हैं और जिनका वे उपयोग करते हैं, उनमें से फेसबुक (36.8 %) - इंस्टाग्राम (45.50 %) सबसे लोकप्रिय हैं। जब बच्चों से यह पूछा गया कि वो कौन सी सुविधाएं हैं जिनका उपयोग स्मार्टफोन/इंटरनेट डिवाइसेज पर करना पसंद करते हैं तो 52% बच्चों ने चैटिंग के रूप में जवाब दिया। बच्चों ने इसके लिए वाट्सएप/फेसबुक/इंस्टाग्राम/स्नैपचैट जैसे इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप का यूज करने की बात कही। 13 साल या उससे अधिक के बच्चों में बढ़ा स्मार्टफोन यूज महामारी के कारण स्मार्टफोन और इंटरनेट बच्चों के लिए शिक्षा और बाहरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गया है। स्टडी से पता चलता है कि 8 से 18 साल के 30.2% बच्चों के पास पहले से ही अपने स्मार्टफोन हैं। 13 साल और उससे अधिक उम्र के बच्चों में स्मार्टफोन का यूज तेजी से बढ़ा है। उल्लेखनीय रूप से सबसे अधिक 94.8% बच्चों ने कहा कि वे इन दिनों ऑनलाइन लर्निंग और कक्षाओं के लिए स्मार्टफोन/इंटरनेट डिवाइसेज का यूज करते हैं। इसके अलावा स्मार्टफोन का यूज मैसेजिंग एप्लिकेशन, स्टडी कंटेंट, म्यूजिक और खेलों का जिक्र किया गया। महामारी का पड़ा नेगेटिव इफेक्ट स्टडी में कहा गया है कि जहां 29.7% बच्चों को लगता है कि महामारी का 'बहुत' नेगेटिव प्रभाव पड़ा है, वहीं 43.7% का मानना है कि इससे उनकी शिक्षा पर 'बहुत कम' नेगेटिव प्रभाव पड़ा है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि सभी आयु वर्ग के छात्रों को लगता है कि महामारी के कारण उनकी शिक्षा प्रभावित हुई है और कहीं ना कहीं ऑनलाइन लर्निंग काफी अच्छा नहीं रहा है। पिछले साल जुलाई से दिसंबर के बीच स्टडी एनसीपीसीआर प्रमुख प्रियांक कानूनगो ने कहा कि बच्चों द्वारा इंटरनेट की बढ़ती पहुंच के साथ, महामारी की पृष्ठभूमि में, यह अध्ययन बच्चे के शारीरिक, व्यवहारिक और मानसिक-सामाजिक कल्याण पर मोबाइल फोन और अन्य डिवाइसेज के यूज के प्रभाव पर केंद्रित है। यह स्टडी मुंबई स्थित एनजीओ रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी की रिसर्च टीम द्वारा पिछले साल जुलाई से दिसंबर के बीच एनसीपीसीआर के लिए की गई थी। अब इसका विश्लेषण किया गया है। स्टडी में दिल्ली समेत 6 राज्यों के बड़े शहर शामिल स्टडी में 5,811 प्रतिभागियों को शामिल किया गया। इनमें 3,491 स्कूल जाने वाले बच्चे, 1,534 माता-पिता और 60 स्कूलों के 786 टीचर शामिल थे। सर्वे में दिल्ली समेत 6 राज्यों के हैदराबाद, मुंबई, भुवनेश्वर/रांची और गुवाहाटी शहरों को शामिल किया गया। जवाब देने वालों में 50.9% लड़के और 49.1% लड़कियां हैं। सर्वेक्षण में सबसे अधिक 12-17 एज ग्रुप के बच्चे के शामिल हुए। Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुक पेज लाइक करें कॉमेंट लिखें इन टॉपिक्स पर और पढ़ें