Music in Lockdown: यूकलेल

Music in Lockdown: यूकलेले, गिटार, पियानो... कोरोना लॉकडाउन में संगीत को मिले नए सुर - music gets new notes in coronavirus lockdown


music gets new notes in coronavirus lockdown
यूकलेले, गिटार, पियानो... कोरोना लॉकडाउन में संगीत को मिले नए सुर
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पिछले साल जिन म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स ने कोरोना महामारी की वजह से घरों में बंद लोगों की ज़िंदगी में संगीत घोला उसमें यूकलेले के अलावा गिटार और कीबोर्ड (पियानो) भी थे। कुछ लोगों ने जहां एक नया शौक पूरा करने के लिए यूकलेले और कीबोर्ड खरीदे, वहीं कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपने पुराने शौक को जिंदा किया।
 
पिछले साल, लॉकडाउन के दौरान जब बहुत-से लोग घरों में कैद रहने को मजबूर थे तो उनमें से कुछ ने अपनी ज़िंदगी को संगीत के सुरों से सजा लिया। इसके लिए उन्होंने गिटार या उसका छोटा स्वरूप यूकलेले खरीदा। म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स इंडस्ट्री के सूत्र बताते हैं कि यूकलेले की बिक्री ने गिटार और कीबोर्ड को काफी पीछे छोड़ दिया। इसके साथ ही यह सबसे पसंदीदा म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बन गया है।
शैलेश मेनन की रिपोर्ट:
यूकलेले बना लोगों की पसंद
9 महीने पहले भुवनेश्वर में रहनेवालीं ऑर्थोडॉन्टिस्ट नीतू गौतम ने कोरोना के कहर के बीच खुद को शांत रखने के लिए यूकलेले (4 तारों वाला छोटा गिटार) खरीदा। कुछ हफ्ते तक उसे बजाना सीखा फिर वह आसानी से अमेरिकी गायक जॉनी कैश का गाना, 'यू आर माई सनशाइन' बजाने लगीं। वह कहती हैं, 'मैंने यूकलेले इसलिए चुना क्योंकि मैं एक आसान म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट सीखना चाहती थी और इसने मेरी दुनिया बदल दी है।'नीतू अकेली नहीं हैं। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान बहुत-से लोगों ने म्यूजिक को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाया। उन्होंने सुर और लय से अपना अकेलापन दूर किया। इसके लिए यूकलेले खरीदा। यह सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले इंस्ट्रूमेंट बन गया। वेस्टर्न म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट ब्रैंड काडेंस के सीईओ सिद्धार्थ झुनझुनवाला कहते हैं, 'हमने अपने प्लैटफॉर्म पर हर दिन 600 से ज्यादा यूकलेले और 400 से ज्यादा गिटार बेचे हैं।' वहीं नीतू बताती हैं कि उनके जैसे नौसिखिये के लिए 4 तार वाला छोटा-सा गिटार यूकलेले बजाना सीखना बेहद आसान था। वैसे कुछ लोग यूकलेले बजाने की बेसिक बातें सीखने में सिर्फ 10 मिनट का वक्त लगाते हैं, तार सेट करने में 10-12 घंटे और इसमें महारत हासिल करने के लिए 6 महीने तक सिर्फ 30 मिनट रोजाना खर्च करते हैं। ऐसा माना जाता है कि 19वीं सदी में पुर्तगाली प्रवासियों ने यूकलेले को अमेरिका के हवाई द्वीप समूह तक पहुंचाया और अब यह उनके दिलों में बस गया है।
यूकलेले के अलावा गिटार और कीबोर्ड (पियानो) भी
पिछले साल जिन म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स ने कोरोना महामारी की वजह से घरों में बंद लोगों की ज़िंदगी में संगीत घोला उसमें यूकलेले के अलावा गिटार और कीबोर्ड (पियानो) भी थे। कुछ लोगों ने जहां एक नया शौक पूरा करने के लिए यूकलेले और कीबोर्ड खरीदे, वहीं कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपने पुराने शौक को जिंदा किया। उन्होंने बरसों पहले म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स बजाना सीखा था लेकिन वक्त की कमी होने की वजह से बजा नहीं पाते थे। उन्होंने पुरानी धुनें याद करके बजाईं। जब बहुत सारे लोग वर्क फ्रॉम होम करने लगे तो उन्होंने म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स की सेल बढ़ा दी। झुंझुनवाला बताते हैं, 'बिक्री के मामले में यह बेस्ट साल है। इस साल के अंत तक हम पिछले वित्त वर्ष के 30 करोड़ रुपये की तुलना में 75 करोड़ रुपये तक का कारोबार कर लेंगे।' म्यूजिक सीखने के लिए लोग फिलहाल गिटार, यूकलेले और दूसरे वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट्स की ज्यादा मांग कर रहे हैं। इस वजह से भारतीय संगीत के वाद्ययंत्र बनानेवाले और उनके डीलरों पर असर पड़ा है। स्कूल-कॉलेज, संगीत समारोह, मनोरंजक कार्यक्रम, म्यूजिकल प्रोग्राम और रिकॉर्डिंग स्टूडियो ठप पड़े हैं। इससे भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्य यंत्रों की बिक्री आधी रह गई है। दुकानदार बताते हैं कि सितार को छोड़कर, जो कम संख्या में बनता है और ज्यादातर एक्सपोर्ट किया जाता है, भारतीय संगीत वाद्य यंत्रों की सभी कैटिगरी पर बुरा असर पड़ा है।
1000 करोड़ रुपये से ज्यादा की इंडस्ट्री
रिटेलर प्लैटफॉर्म बजाओ डॉट कॉम (bajaao.com) ने इस दौरान बढ़िया काम किया है। इसके फाउंडर आशुतोष पांडे कहते हैं, 'जिनके ई-कॉमर्स चैनल हैं उनका काम ठीक-ठाक चला है। लेकिन अधिकतर भारतीय वाद्य यंत्र बनानेवाले ऑनलाइन नहीं दिखते। इस वजह से उन्होंने यह मौका खो दिया। इंडियन इंस्ट्रूमेंट्स के पीछे रह जाने की एक वजह यह भी है कि उन्हें बजाना सिखाने के लिए ऑनलाइन क्लासेज नहीं बढ़ीं। इंडियन क्लासिकल म्यूजिक सिखाने वाले गुरु अधिकतर बुजुर्ग हैं और जब लॉकडाउन में बाहर आने-जाने पर पाबंदी लगी तो वे ऑनलाइन भी नहीं आ सके। उनमें से बहुत लोगों को यह पता नहीं था कि किसी मुश्किल वाद्ययंत्र को ऑनलाइन कैसे बजाना सिखाया जा सकता है। देश में संगीत वाद्य यंत्रों को बनानेवाली और रिटेल इंडस्ट्री, इस वक्त करीब 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा की है। यह इंडस्ट्री सीखनेवालों, शौकिया लोगों और प्रफेशनल संगीतकारों पर निर्भर रहती है।
फुर्तादूस म्यूजिक (furtados music) स्टोर भारतीय संगीत के वाद्य यंत्रों का सबसे बड़ा रिटेलर है। इसके डायरेक्टर जोसेफ गोम्स बताते हैं कि हमारे देश में वोकल म्यूजिक की ट्रेनिंग बहुत अच्छी तरह दी जाती है। लेकिन जब म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स सिखाने की बात हो तो लोग पीछे रह जाते हैं। हालांकि अब ट्रेंड बदल रहा है। लोग अलग-अलग तरह के वाद्य यंत्र सीखना पसंद करने लगे हैं। वह कहते हैं कि यह साल चैलेंजिंग है लेकिन हमने गिटार की कैटिगरी में खूब बिक्री की। कीबोर्ड की मांग भी अच्छी रही। ऑनलाइन म्यूजिक सिखाने के ट्रेंड ने हमारी हेल्प की। लेकिन ज्यादातर ऑनलाइन क्लासेज भारतीय संगीत और वेस्टर्न म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स बजाना सीखने की इच्छा रखनेवाले स्टूडेंट्स के लिए थी। तनुजा गोम्स और धारिणी उपाध्याय ने फुर्तादूस स्कूल ऑफ म्यूजिक (एफएसएम) शुरू किया। इस ऑनलाइन स्कूल में म्यूजिक सीखने के लिए हर उम्र के 10,000 से ज्यादा नए स्टूडेंट्स आगे आए। एफएसएम के 7 कोचिंग सेंटर हैं जो 150 से ज्यादा प्राइवेट स्कूलों के साथ पार्टनरशिप में करीब डेढ़ लाख स्टूडेंट्स को सिखा रहे हैं।
वह बताती हैं, 'जब लॉकडाउन हुआ तो स्कूलों ने संगीत सिखाना बंद कर दिया। लेकिन करीब 50 स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास जारी रखीं। यह हमारी किस्मत थी कि हमारा ऑनलाइन टीचिंग कंटेंट तैयार था। हालांकि पहले जब हमने ऑनलाइन क्लास शुरू की थी तो काफी विरोध झेलना पड़ा था। तनुजा कहती हैं कि कोरोना ने डिजिटल लर्निंग का प्रोसेस तेज किया। अब ऑनलाइन म्यूजिक कोर्स का बहुत विरोध नहीं दिखता। यह स्टूडेंट्स के लिए काफी सुविधाजनक है। वे अपना आने जाने का वक्त भी बचा सकते हैं। हम हाइब्रिड मॉडल उभरता हुआ देख रहे हैं जिससे स्टूडेंट्स ऑनलाइन और ऑन कैंपस दोनों तरह से म्यूजिक सीखेंगे।
ईस्ट और वेस्ट का संगीत
अब वेस्टर्न म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है तो भारतीय वाद्य यंत्रों के डीलरों ने अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए नए डिस्ट्रिब्यूशन चैनल खोजने शुरू कर दिए हैं। हालांकि भारतीय संगीत वाद्ययंत्र अधिकतर हाथ से बने होते हैं और भारी व नाजुक होते हैं। इस वजह से उनकी शिपिंग मुश्किल हो जाती है। साधारण क्वॉलिटी वाले सितार को ही लें, जिसकी कीमत 25 हजार से 30 हजार रुपये तक हो सकती है। अब कोलकाता में बने सितार को मुंबई ले जाने के लिए 6 हजार से 8 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं। अगर सितार को अमेरिका भेजना है तो शिपिंग चार्ज 35 हजार रुपये तक हो सकता है। मुंबई के हरिभाऊ विश्वनाथ म्यूजिकल इंडस्ट्रीज के पार्टनर आशीष दीवाने कहते हैं कि इसलिए भारतीय टूरिजम म्यूजिकल इंडस्ट्री के लिए अहम है। सबसे अच्छी बात तब होती है जब विदेशी टूरिस्ट या एनआरआई हमारी दुकान पर आते हैं, कोई भारतीय संगीत वाद्य यंत्र खरीदते हैं और उसे अपने साथ ले जाते हैं। लेकिन पिछले एक साल से हमारे पास कोई टूरिस्ट नहीं आया। नवंबर और मार्च के बीच टूरिस्ट जितनी खरीदारी करते हैं, वह हमारी कुल बिक्री का 40 फीसदी के करीब होती है। इस साल ऐसा नहीं हुआ।
हाथ से बने संगीत वाद्य यंत्रों को तैयार करने में लगता है समय
दरअसल हाथ से बने भारतीय संगीत वाद्य यंत्रों को तैयार करने में काफी वक्त लगता है, करीब 60 दिन तक। वीणा, घटम, संतूर, सरोद, सारंगी, तानपुरा और मृदंगम जैसे तार वाले इंस्ट्रूमेंट्स बनारस, चंडीगढ़, कोलकाता और दिल्ली के आसपास बनाए जाते हैं। मेरठ में बने पीतल के बैंड और रामपुर व कोलकाता में बने वायलिन खूब पसंद किए जाते हैं जबकि महाराष्ट्र अपने तबले और हारमोनियम के लिए मशहूर है। तमिलनाडु वीणा, मृदंगम, घटम, नादस्वरम आदि के लिए। लेकिन लॉकडाउन ने यहां संगीत पर विराम लगा दिया।
तंजावुर के वेंकटेश्वर म्यूजिकल के आर. वेंकटेशन कहते हैं कि वीणा और मृदंगम को ऑनलाइन सिखाना आसान नहीं है। इसलिए क्लासेज नहीं हो रहीं। हमारे बिजनेस पर बुरा असर पड़ा है क्योंकि अब कोई संगीत समारोह या संगीत कार्यक्रम भी नहीं हो रहा है। हमारे कस्टमर अधिकतर प्रफेशनल संगीतकार हैं।' वेंकटेशन को कटहल के पेड़ की लकड़ी से वीणा बनाने में करीब एक महीने का वक्त लगता है। उनके कस्टमर ज्यादातर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु से आते हैं। अच्छी तरह से बनी पुरानी वीणा को बे�

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