Jammu And Kashmir: Now The Enemy Cannot Dare To Repeat Kargi

Jammu And Kashmir: Now The Enemy Cannot Dare To Repeat Kargil - जम्मू-कश्मीर : अब कारगिल दोहराने की हिमाकत नहीं कर सकता दुश्मन, सरहदों पर तैयारी दमदार


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भारत के खिलाफ कारगिल जैसी हिमाकत अब कोई भी दुश्मन नहीं कर सकता। साल 1999 में कारगिल युद्ध के बाद भारत ने एलओसी से लेकर एलएसी तक सैन्य ताकत कई गुना बढ़ा ली है। सीमा पर मजबूत तैयारी कर भारत ने पाकिस्तान ही नहीं चीन को भी कड़ा संदेश दिया है। कारगिल युद्ध ने सुरक्षा जरूरतों का एहसास करवाया, जिससे जम्मू-कश्मीर से लद्दाख तक धरातल पर अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किए गए। सीमा तक आधारभूत ढांचा मजबूत करने के साथ ही आधुनिक हथियारों से लैस भारतीय सेना के निगहबान भी सरहद पर कड़ी निगरानी कर रहे हैं। 
सेना के एक अधिकारी के अनुसार कारगिल जैसे संघर्ष की संभावना अब नहीं है। नियंत्रण रेखा से लगते संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कर वहां मल्टी-टियर सिक्योरिटी लेआउट तैयार है। पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए गए घुसपैठ के मार्गों की पहचान कर वहां काउंटर-इंफिल्ट्रेशन ग्रिड बनाए गए हैं। सेना की तैनाती तीन गुना से अधिक हो गई है। यहां तक कि उन इलाकों को भी सुरक्षित कर लिया गया है, जहां से घुसपैठिए आए थे। सर्दियों के दौरान अब चौकियां खाली नहीं होतीं। सेना की आपूर्ति को तुरंत पूरा करने के लिए एलओसी के पास कई हेलीपैड बन चुके हैं। 
कारगिल युद्ध के बाद सेना की 14वीं कोर को बनाया गया, ताकि सही से लद्दाख संभाग के साथ जुड़ने वाली पाकिस्तान और चीन की सीमा पर पैनी नजर बनाई जा सके। इस कोर में सेना की 3 इंफेंट्री डिविजन, 3 आर्टिलरी ब्रिगेड, 70वी इंफेंट्री ब्रिगेड, 102 इंफेंट्री ब्रिगेड, 8 इंफेंट्री डिवीजन, 56 माउंटेन ब्रिगेड, 79 माउंटेन ब्रिगेड, 192 माउंटेन ब्रिगेड शामिल हैं। इसका मुख्यालय कारगिल से 28 किलोमीटर दूर कुंबथंग में है। इससे पहले जो सैनिक युद्ध में लड़ रहे थे उन्हें श्रीनगर स्थित 15वीं कोर से भेजा गया था। कारगिल युद्ध के दौरान जोजिला से लेह तक 300 किलोमीटर लंबी एलओसी की निगरानी के लिए केवल एक ब्रिगेड थी।
नफरी के साथ हथियारों की क्षमता में भी बढ़ोतरी
लद्दाख से लेकर जम्मू तक अब सेना की तैनाती में काफी ज्यादा बढ़ोतरी की गई है। युद्ध का तरीका बदल चुका है। अब साइबर थ्रेट, मिसाइल थ्रेट आदि है। चीन के साथ पिछले कुछ वर्षों से बढे़ गतिरोध के चलते 826 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर भी तैनाती बढ़ाई गई है। इसमें नफरी में बढ़ोतरी के साथ-साथ हथियारों की क्षमता में भी बढ़ोतरी की गई है। बोफोर्स, रूसी तकनीक वाले तंगुशका टैंक, बीएमपी टैंक, टी-90 टैंक, के वज्रा-टी आर्टिलरी गन, एम 777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर जैसे हथियार हैं। सेना ने गोला-बारूद के नए प्वाइंट भी बनाए हैं। सेना के पास इस क्षेत्र में आधुनिक एयर डिफेन्स मैकेनिज्म, रडार, आदि शामिल हैं। कुछ ऐसे रडार भी हैं जो यह बता सकते हैं कि दुश्मन ने कितनी दूरी से गोला दागा है।
कई महत्वपूर्ण सड़कों का भी निर्माण
कारगिल युद्ध के बाद न केवल लेह, कारगिल की मुख्य सड़कों बल्कि एलओसी और एलएसी तक सड़कें बन चुकी हैं। जोजिला पास को भी अब कम समय तक बंद रखा जा रहा है। जोजिला टनल का निर्माण भी किया जा रहा है। लद्दाख में बनाई गई महत्वपूर्ण सड़कों में से एक है दरबुक-श्योक-डीबीओ रोड (डीएस-डीबीओ रोड) जोकि पूर्वी लद्दाख में एक स्ट्रैटेजिक ऑल वेदर रोड है और एलएसी के काफी करीब है। यह रोड उत्तरी बॉर्डर पर स्थित डीबीओ पोस्ट को दरबुक और श्योक गावों से होते हुए लेह से जोड़ती है। डीएस-डीबीओ रोड के निर्माण से लेह से डीबीओ का सफर दो दिन से घट कर केवल 6 घंटे का रहा है जोकि सेना के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है।
कार्गो विमान की लैंडिंग कराकर दिया कड़ा संदेश
पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध के मद्देनजर दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) एयरस्ट्रिप काफी सामरिक महत्व रखती है। डीबीओ एयरस्ट्रिप एलएसी से करीब 8-9 किलोमीटर दूर है। वहां से कराकोरम पास की हवाई दूरी केवल 10 किलोमीटर की है। इसलिए भारतीय सेना के लिए यह एयरस्ट्रिप काफी महत्व रखती है। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान बनाई गई इस एयर स्ट्रिप का इस्तेमाल नहीं हुआ। 45 वर्षों तक यह ऑपरेशनल नहीं थी। 31 मई, 2008 एक एएन-32 विमान की यहां लैंडिंग कराई गई। लेकिन 20 अगस्त, 2013 को भारतीय वायुसेना द्वारा सी-130जे हर्लक्यूलीज कार्गो विमान की लैंडिंग करवा कर इतिहास रचा और चीन को एक कड़ा संदेश दिया। डीबीओ की एरियल सप्लाई के लिहाज में एक अहम भूमिका है। 
मौसम की अब सटीक जानकारी 
सेना को लद्दाख सेक्टर के अग्रिम इलाकों में ड्यूटी और पेट्रोलिंग के दौरान किसी बड़ी चुनौती का सामना न करना पड़े, उसके लिए मौसम मौसम विभाग भी बुनियादी ढांचे में उन्नयन कर रहा है। विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि वहां मौसम की सटीक जानकारी के लिए जल्द डोप्लर रडार लगाया जाएगा। रडार की टेस्टिंग हो चुकी है। यह आधे घंटे से कम के समय के भीतर मौसम के पैदा होने वाले बदलावों को तुरंत डिटेक्ट कर लेता है।
 
देश की आजादी के समय 1947 के बाद 1965, 1971 और फिर 1999 में करारी शिकस्त खाने वाला पाकिस्तान अब सिर्फ चोरी छिपे ही आतंकियों के जरिए हमले करवा सकता है। सीधे युद्ध को लेकर हमारी जो तैयारी है, उसके सामने पाकिस्तान के मंसूबे कहीं नहीं टिकते। यह कहना है सेना में सेवाएं दे चुके पूर्व सैनिकों का। वे मानते हैं कि भारत की तैयारी अब पाकिस्तान और चीन के साथ दोहरी चुनौती का सामना करने की है।
पाकिस्तान को हर जगह मात मिलेगी...
कारगिल की घटना पाकिस्तान ने धोखे से अंजाम दी थी। भारत चाहता तो उसके धोखे का जवाब अच्छे तरीके से दे सकता था, लेकिन भारत ने तब भी मर्यादा में रहकर सीजफायर का पालन करते हुए कारगिल का जवाब दिया। हम पीओके से घुसकर उसको ज्यादा नुकसान कर सकते थे। तब दोनों देशों के बीच अनुबंध था कि सर्दी में दोनों देशों के जवान कारगिल से नीचे आ जाएंगे। पाकिस्तान ने धोखे से सीमाओं पर कब्जा कर लिया, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं। हर एक पोस्ट पर माइनस 40 में भी हमारे जवान तैनात हैं। सियाचिन में भी जवान तैनात हैं। जिससे कारगिल दोहराना संभव नहीं। आमने सामने की लड़ाई पाकिस्तान कर नहीं सकता। हमारी पॉलिसी भी अब बदल चुकी है। पाकिस्तान को अब हर तरीके से जवाब मिलेगा
 - वीके साही, रिटायर्ड कर्नल
कारगिल वार की हार से लेकर ड्रोन वार तक पाकिस्तान फेल
कारगिल जैसा वार करना पाकिस्तान के लिए कहीं से संभव नहीं। हमारा खुफिया तंत्र मजबूत है। सरहद पर हम हर जगह पर तैनात हैं। पाकिस्तान ने 1965 में मार खाई तो 1971 में बदला लेने का प्रयास किया। 1971 में मार खाई तो कश्मीर में आतंकवाद पैदा कर दिया, जब इसमें मार खाई तो 1999 में प्रयास किया। इसमें भी हार मिली और पाकिस्तान ने कश्मीर में स्थानीय युवाओं को भड़का कर लड़ाई शुरू करवा दी। जब उसे यहां भी मात मिलने लगी तो अब ड्रोन वार शुरू कर दी। लिहाजा अब भारत को चाहिए कि पाकिस्तान में जहां से ड्रोन आ रहे हैं, उनको वहीं पर मार गिराया जाए। सरहद के आगे और इसके आसपास के 10 किलोमीटर के दायरे में जहां से भी ड्रोन के उड़ने की मूवमेंट नजर आए। चाहे वो पाकिस्तान के अंदर ही क्यों न हो। उसको वहीं पर मार गिराया जाना चाहिए।
- गोवर्धन जमवाल, रिटायर्ड जनरल
हमारी तैयारी पूरी, लेकिन दुश्मन की फितरत भरोसे वाली नहीं
किसी भी देश के लिए सरहद पर एक-एक इंच को कवर करना संभव नहीं। ऊपर से हमारा पड़ोसी ऐसा है, जिसकी फितरत में ही बेइमानी है। हमेशा छिप कर वार करता है। आज हमारे पास इतने संसाधन हैं और हमारी तैयारी ऐसी है, उसकी किसी भी हरकत का पहले से जवाब दे सकते हैं। चीन हो या पाकिस्तान हमारे ऊपर कोई हमला करने से पहले उसको 10 बार सोचना होगा। 22 सालों में हमने बहुत बदला है। चाहे तकनीक हो या फिर अन्य संसाधन। हर जगह पर हम मजबूत हुए हैं। पाकिस्तान कारगिल जैसा सोच जरूर सकता है, लेकिन करने की हिम्मत नहीं करेगा।
- शिव चौधरी, रिटायर्ड कर्नल
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भारत के खिलाफ कारगिल जैसी हिमाकत अब कोई भी दुश्मन नहीं कर सकता। साल 1999 में कारगिल युद्ध के बाद भारत ने एलओसी से लेकर एलएसी तक सैन्य ताकत कई गुना बढ़ा ली है। सीमा पर मजबूत तैयारी कर भारत ने पाकिस्तान ही नहीं चीन को भी कड़ा संदेश दिया है। कारगिल युद्ध ने सुरक्षा जरूरतों का एहसास करवाया, जिससे जम्मू-कश्मीर से लद्दाख तक धरातल पर अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किए गए। सीमा तक आधारभूत ढांचा मजबूत करने के साथ ही आधुनिक हथियारों से लैस भारतीय सेना के निगहबान भी सरहद पर कड़ी निगरानी कर रहे हैं। 
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सेना के एक अधिकारी के अनुसार कारगिल जैसे संघर्ष की संभावना अब नहीं है। नियंत्रण रेखा से लगते संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कर वहां मल्टी-टियर सिक्योरिटी लेआउट तैयार है। पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए गए घुसपैठ के मार्गों की पहचान कर वहां काउंटर-इंफिल्ट्रेशन ग्रिड बनाए गए हैं। सेना की तैनाती तीन गुना से अधिक हो गई है। यहां तक कि उन इलाकों को भी सुरक्षित कर लिया गया है, जहां से घुसपैठिए आए थे। सर्दियों के दौरान अब चौकियां खाली नहीं होतीं। सेना की आपूर्ति को तुरंत पूरा करने के लिए एलओसी के पास कई हेलीपैड बन चुके हैं। 
कारगिल युद्ध के बाद सेना की 14वीं कोर को बनाया गया, ताकि सही से लद्दाख संभाग के साथ जुड़ने वाली पाकिस्तान और चीन की सीमा पर पैनी नजर बनाई जा सके। इस कोर में सेना की 3 इंफेंट्री डिविजन, 3 आर्टिलरी ब्रिगेड, 70वी इंफेंट्री ब्रिगेड, 102 इंफेंट्री ब्रिग�

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