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नैतिक मूल्यों का अतिक्रमण रोकना जरूरी


दीपिका अरोड़ा
आधुनिक इंटरनेट सुविधा ने बहुपक्षीय प्रगति में भले ही नये आयाम स्थापित किए हों, किंतु इस सुविधा का ख़ासा दुरुपयोग भी चलन में आया है। जहां मनोरंजन क्षेत्र पहले की अपेक्षा अधिक व्यापक एवं सर्वसुलभ बना, वहीं दूसरी ओर लोगों के रूझान में भारी परिवर्तन देखा जा रहा है। अश्लीलता के प्रति बढ़ती रुचि, पोर्नोग्राफी के रूप में समस्त सीमाओं का अतिक्रमण करने पर आमादा है।
विश्वभर में पोर्नोग्राफी उद्योग एक बड़े व्यवसाय का आकार ले चुका है। वैश्विक स्तर पर संचालित पोर्नोग्राफी उद्योग से होने वाला अनुमानित मुनाफ़ा 100 बिलियन डॉलर से कहीं अधिक है। इस मामले में अमेरिका सबसे ऊपर है, व्यवसाय से प्राप्त लाभांश का लगभग 10 फीसदी यहीं से उपलब्ध होता है।
भारत की बात करें तो यहां पोर्नोग्राफी पूर्णत: प्रतिबंधित है। कानूनी तौर पर पोर्न फिल्में बनाना अथवा बेचना आईपीसी की धारा के तहत आपराधिक श्रेणी में आता है। हालांकि, व्यक्तिगत तौर पर अश्लील सामग्री देखना अपराध नहीं, किंतु किसी भी प्रकार की अश्लील सामग्री अन्यत्र प्रेषित करने, इलेक्ट्रोनिक ढंग अथवा किसी अन्य माध्यम द्वारा प्रकाशित-प्रसारित करने पर एंटी पोर्नोग्राफी लॉ लागू होता है। दरअसल, विचार निरन्तर प्रवाहित होने वाली प्रक्रिया है, जिनका निर्माण पूर्णत: मनन पर आधारित है। जो कुछ हम पढ़ते, देखते अथवा सुनते हैं वही मन-मस्तिष्क में संग्रहित होकर विचारों का रूप धारण करना आरम्भ कर देता है। पठन-पाठन, दृश्य-श्रव्य सामग्री के उच्च अथवा निम्न स्तर का व्यक्ति विशेष के विचारों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। पोर्न सामग्री न केवल शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है बल्कि विद्रूप भावनाएं भड़काकर दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों के लिए भी उकसाती है। विशेषज्ञों के मतानुसार, नित्य प्रति बढ़ रहे यौन अपराधों में पोर्न सामग्री की उपलब्धता एक मुख्य कारण है। वर्ष 2018 में देहरादून दुष्कर्म मामले के आरोपी द्वारा उत्तराखंड हाईकोर्ट में, पोर्न फिल्म देखने के पश्चात ही आपराधिक कृत्य को अंजाम देने की बात स्वीकार की गई।
विषय की गंभीरता पर संज्ञान लेते हुए वर्ष 2018 में भारत के दूरसंचार विभाग ने देश में इंटरनेट सेवा उपलब्ध करवाने वाले सभी सेवा प्रदाताओं को 827 पोर्न वेबसाइट ब्लॉक करने के आदेश जारी किए। बावजूद इसके, विश्व भर में अश्लील सामग्री देखने वालों की संख्या में यू. एस. तथा यू.के. के पश्चात भारत का तीसरा स्थान रहा। निश्चय ही, देश के लिए यह चिंता का विषय है कि दुनिया की सबसे बड़ी पोर्न वेबसाइट मानी जाने वाली ‘पोर्नहब’ के अनुसार भारत उसका सबसे बड़ा बाज़ार है। 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में पोर्न साइट पर विजि़ट करने वाला व्यक्ति औसतन 10 मिनट पंद्रह सेकंड का समय व्यतीत करता है। लॉकडाउन के दौरान, भारत में वर्ष 2020 के अप्रैल माह में एडल्ट साइट्स पर किया जाने वाला सर्च बढ़कर 95 फीसदी हो गया।
सत्य तो यह है कि भारत में पोर्न उद्योग प्रतिबंधित होने पर भी बड़ी संख्या में चोरी-छिपे अश्लील फिल्में बनती हैं। मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार हाल ही में, कथित रूप से एक जाने-माने व्यवसायी द्वारा पोर्न फिल्में बनाकर ‘हॉट शॉट’ तथा ‘हॉट हिट’ एप्स के माध्यम से संचालित करने की की बात सामने आई। रिपोर्ट में ‘हॉट शाट’ एप पर उपलब्ध ग्राहक संख्या 20 लाख होने तथा लाइव शो के माध्यम से 1.85 लाख एवं फिल्मों के ज़रिए 4.53 लाख रुपये प्रतिदिन कमाने की बात भी कही गई। मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त मिलिंद भारंबे के अनुसार नवोदित अभिनेत्रियों को वेबसीरीज़ में प्रलोभन देकर ऑडिशन के लिए बुलाया जाता था। मामला अभी विचाराधीन है।
बेशक, भौतिकतावादी होने में कोई बुराई नहीं बशर्ते व्यक्तिगत लाभ कमाने हेतु नैतिक व सामाजिक मूल्यों का अतिक्रमण न हो। समाज में अश्लीलता का प्रचार-प्रसार करना तथा निज स्वार्थसिद्धि हेतु किसी प्रकार का प्रलोभन देते हुए अन्य लोगों को अनैतिक कार्यों के लिए उकसाना कदापि स्वीकार्य नहीं। किसी भी स्तर पर होने वाली अनैतिकता समाज व देश को पतन की ओर ले जाती है, सम्पूर्ण मानवता को जिसका भारी मूल्य चुकाना पड़ता है। प्रलोभन का शिकार बनने वाले युवा वर्ग को भी यह समझना होगा कि देह-प्रदर्शन सफलता की गारंटी नहीं।
स्मरण रहे, नैतिक मूल्य समाज रूपी विशाल वृक्ष का सुदृढ़ मूल है और पोर्न सामग्री उन्हें खोखला करने वाला घुन। मूल का क्षरण किसी भी समाज के लिए चिंता का विषय है और देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण। निश्चय ही, देश में पोर्नोग्राफी रोकने हेतु अविलंब कड़े क़दम उठाना एवं अपराधियों को दंडित करना सरकारों तथा न्यायपालिका का संयुक्त कर्तव्य है, किंतु पोर्न सामग्री के प्रसार पर यथासंभव रोक लगाकर, भारत के सांस्कृतिक गौरव की अमूल्य धरोहर को संभालने के लिए समाज को भी पहल करनी होगी।
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3 घंटे पहले
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।
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