हरिजन कॉलोनी के नाम पर 10 घर बने थे, जो जर्जर हो गये हैं. 40 साल पहले इस हरिजन कॉलोनी में भटकते हुए बिरहोर जनजाति के 10 परिवार आकर बस गये. बाद में इस गांव का नाम बिरहोर टोंगरी कहलाया. बिरहोर जनजाति के लोग कभी इस जंगल तो कभी उस जंगल में लकड़ी का घर बना कर रहते थे. | पीबो पंचायत का हरिजन कॉलोनी 40 साल पहले बेचिरागी गांव था, बिरहोर जनजाति आकर बसे तो जनजीवन शुरू हुई जंगल-जंगल भटकते रहे. कई परिवार बिछड�
यहां बताते चलें कि आज से दो दशक पूर्व महिलाओं को घर की चौखट से बाहर कदम रखने पर भी सामाजिक विरोध का सामना पड़ता था. परंतु अनीता जैसी महिलाओं ने इस तरह की सामाजिक रूढ़ियों का मुकाबला करते हुए आगे बढ़ने की ठानी और आज की तारीख में झारखंड की सफल महिला उद्यमी में शुमार हैं. अनीता देवी बताती है कि उसने अंतरजातीय शादी की. जहां पारिवारिक एवं सामाजिक विरोध का जोरदार सामना करना पड़ा. इसके बाद भी
उर्वरकों की खरीदारी के लिए सरकार द्वारा अनुदान मूल्य निर्धारित किया गया है. बताते चलें कि यूरिया की प्रति बोरी 45 किग्रा और अन्य उर्वरकों की बोरी 50 किग्रा पैकेट की होती है. सभी उर्वरकों की कंपनीवार अलग-अलग मूल्य निर्धारित है. सरकार द्वारा निर्धारित दर पर किसान उर्वरक खरीद सकते हैं. बताते चलें कि गुमला जिला में हर साल उर्वरकों की कालाबाजारी आम बात है. | गुमला : मॉनसून गुमला पहुंच गया है.
आम पब्लिक किसे अपना दर्द सुनाये. लॉकडाउन है. घर से निकलना नहीं है. बिजली विभाग को फोन करने पर फोन उठाते नहीं है. अगर फोन उठा भी लिये तो हजारों बहाना तैयार रहता है. विभाग के कुछ अधिकारियों ने तो मोबाइल को कवरेज एरिया से बाहर कर लिया है. गुमला में बिजली कट रही है. यह कोई एक दिन की समस्या नहीं है. इधर, एक सप्ताह से लगातार गुमला के लोगों को बिजली संकट झेलनी पड़ रही है. | गुमला : गुमला में बिजली सप्�
गुमला में महिलाएं रक्तदान करने में आगे हैं. रंजीता पोद्दार व शैलजा साबू 20 से अधिक बार रक्तदान कर चुके हैं. वहीं गुमला के मनोज मिश्र ने 75 व प्रोफेसर अमिताभ भारती ने 66 बार रक्तदान कर गुमला में मिसाल बने हुए हैं. 100 से अधिक युवाओं ने 30 से अधिक बार रक्तदान किया है. गुमला में ब्लड बैंक है. जहां रक्तदान होता है. गुमला में मरीजों को प्रत्येक दिन 12 यूनिट रक्त की जरूरत होती है. नया ब्लड बैंक में 500 से अ