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राकेश बनवाल
अंबाला सिटी। दरवाजे पर हल्की सी आहट सुनते ही आवाज आती है बेटा आ गए तुम। कब से इंतजार कर रही थी तुम्हारा। चार भाइयों की इकलौती छोटी बहन 69 साल की कुसुम मित्तल जब भी दरवाजे पर किसी की आहट सुनती हैं तो वह कुछ इसी अंदाज में बात करती हैं यह सोचकर कि शायद आज उनका कोई अपना उन्हें लेना आया है।
पति मोहिंद्र मित्तल अंबाला के नामी बिल्डर थे। उनका वर्ष 2017 में निधन हो गया था, जिसके चलते इकलौता बेटा सदमे में आ गया। बेटा मानने का तैयार नहीं है कि पिता का निधन हो गया है। वह कहता है कि पिता मुंबई गए हैं। पैसे लेने वहां से आते ही मेरी शादी करेंगे। वर्ष 2018 से अंबाला के जीवनधारा वृद्धाश्रम में रहने वाले कुसुम की कुछ ऐसी ही कहानी है। 2020 में चेकअप के दौरान कुसुम मित्तल को पता चला था कि उन्हें ब्लड कैंसर है। इसके बावजूद वह जिंदादिली के साथ वह यहां न केवल रह रही हैं बल्कि दूसरों को भी प्रेरित कर रही हैं। कुसुम एमएससी होम मैनेजमेंट में गोल्ड मेडलिस्ट हैं।
ऐसे ही लखपति बेसहारा बुजुर्गों की इस समय शरणस्थली बना है अंबाला शहर का जीवनधारा वृद्धाश्रम। यहां इस समय करीब 25 बुजुर्ग रह रहे हैं। इनमें से 10 से ज्यादा के परिवार साधन संपन्न हैं लेकिन उन्हें रखने की हिम्मत किसी में नहीं है। इसी तरह अंबाला छावनी स्थित अपना घर में भी 17 बुजुर्ग रह रहे हैं। संवाद
कलाकार माही आज जी रहे गुमनाम जिंदगी
जीवनधारा वृद्ध आश्रम में जगजीत सिंह माही जनवरी 2005 से रह रहे हैं। किसी वक्त में माही अंबाला ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत में अपनी कलाकारी के चलते मशहूर थे। माही ने पेंटिंग का काम वर्ष 1975 में शुरू किया। उस समय माही को बहुत कम ही लोग जानते थे। इसी दौरान माही ने प्लास्टिक ऑफ पेरिस से मूर्तिकला शुरू कर दी। इसमें भी माही ने लोगों की खूब वाहवाही लूटी।
माही ने बादशाही बाग कॉलोनी में एक ऐसी मूर्ति बनाई कि देखने वाले भी दंग रह गए। माही का जन्म बठिंडा में में हुआ। माही बताते हैं कि उन्हें कलाकारी का शौक था। इसलिए शादी नहीं की। उसके बाद समय बीतता गया और वह आपने काम में मग्न रहने लगा। वर्ष 2003 में एक सड़क दुर्घटना ने माही को काम करने में लाचार बना दिया। किसी ने मदद नहीं की। जनवरी 2005 में मुझे तत्कालीन डीसी के आदेशों पर वृद्धाश्रम में आश्रय मिल गया।
45 साल दुनिया घूमी अब अपना घर नया बसेरा
67 वर्षीय सुरेश कुमार छावनी के अपना घर में रहा रहे हैं। सुरेश कुमार करीब 45 साल लेबनान में रहे। करीब दो साल पहले सुरेश कुमार को वहां से डिपोर्ट कर अंबाला भेज दिया गया। पूरी दुनिया घूम चुके सुरेश ओझा अंबाला में लखपति परिवार से संबंध रखते हैं। सुरेश कुमार अविवाहित हैं और उन्हें घर में किसी ने सहारा नहीं दिया तो अपना घर को ही शरणस्थली बना लिया।
सीता को भी नहीं मिला सहारा
गाजियाबाद की 80 वर्षीय सीता को जब कहीं सहारा नहीं मिला तो अंबाला छावनी के अपना घर में ही रहने लगी। सीता के तीन बेटे थे। दो की पहले ही मौत हो गई थी और तीसरे को लेकर वह अंबाला पहुंची थी। अपना घर में उसके साथ रहने लगी थी। पिता की मौत के बाद तीसरा बेटा जतिंद्र मानसिक तौर पर परेशान रहने लगा था। वह अविवाहित था। वहीं दोनों अन्य बेटों की विधवा पत्नी अपने बच्चों के साथ देहरादून और गाजियाबाद में अपने मायके में रहती हैं। सीता के पति का कपड़ों का कारोबार और अच्छा शोरूम था। लेकिन सब उजड़ गया। आज पोते फोन पर कभी बात कर लें तो ठीक, वरना पूछने वाला भी कोई नहीं है। हालांकि इनके भाई भी अंबाला शहर में रहते हैं।
राकेश बनवाल
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अंबाला सिटी। दरवाजे पर हल्की सी आहट सुनते ही आवाज आती है बेटा आ गए तुम। कब से इंतजार कर रही थी तुम्हारा। चार भाइयों की इकलौती छोटी बहन 69 साल की कुसुम मित्तल जब भी दरवाजे पर किसी की आहट सुनती हैं तो वह कुछ इसी अंदाज में बात करती हैं यह सोचकर कि शायद आज उनका कोई अपना उन्हें लेना आया है।
पति मोहिंद्र मित्तल अंबाला के नामी बिल्डर थे। उनका वर्ष 2017 में निधन हो गया था, जिसके चलते इकलौता बेटा सदमे में आ गया। बेटा मानने का तैयार नहीं है कि पिता का निधन हो गया है। वह कहता है कि पिता मुंबई गए हैं। पैसे लेने वहां से आते ही मेरी शादी करेंगे। वर्ष 2018 से अंबाला के जीवनधारा वृद्धाश्रम में रहने वाले कुसुम की कुछ ऐसी ही कहानी है। 2020 में चेकअप के दौरान कुसुम मित्तल को पता चला था कि उन्हें ब्लड कैंसर है। इसके बावजूद वह जिंदादिली के साथ वह यहां न केवल रह रही हैं बल्कि दूसरों को भी प्रेरित कर रही हैं। कुसुम एमएससी होम मैनेजमेंट में गोल्ड मेडलिस्ट हैं।
ऐसे ही लखपति बेसहारा बुजुर्गों की इस समय शरणस्थली बना है अंबाला शहर का जीवनधारा वृद्धाश्रम। यहां इस समय करीब 25 बुजुर्ग रह रहे हैं। इनमें से 10 से ज्यादा के परिवार साधन संपन्न हैं लेकिन उन्हें रखने की हिम्मत किसी में नहीं है। इसी तरह अंबाला छावनी स्थित अपना घर में भी 17 बुजुर्ग रह रहे हैं। संवाद
कलाकार माही आज जी रहे गुमनाम जिंदगी
जीवनधारा वृद्ध आश्रम में जगजीत सिंह माही जनवरी 2005 से रह रहे हैं। किसी वक्त में माही अंबाला ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत में अपनी कलाकारी के चलते मशहूर थे। माही ने पेंटिंग का काम वर्ष 1975 में शुरू किया। उस समय माही को बहुत कम ही लोग जानते थे। इसी दौरान माही ने प्लास्टिक ऑफ पेरिस से मूर्तिकला शुरू कर दी। इसमें भी माही ने लोगों की खूब वाहवाही लूटी।
माही ने बादशाही बाग कॉलोनी में एक ऐसी मूर्ति बनाई कि देखने वाले भी दंग रह गए। माही का जन्म बठिंडा में में हुआ। माही बताते हैं कि उन्हें कलाकारी का शौक था। इसलिए शादी नहीं की। उसके बाद समय बीतता गया और वह आपने काम में मग्न रहने लगा। वर्ष 2003 में एक सड़क दुर्घटना ने माही को काम करने में लाचार बना दिया। किसी ने मदद नहीं की। जनवरी 2005 में मुझे तत्कालीन डीसी के आदेशों पर वृद्धाश्रम में आश्रय मिल गया।
45 साल दुनिया घूमी अब अपना घर नया बसेरा
67 वर्षीय सुरेश कुमार छावनी के अपना घर में रहा रहे हैं। सुरेश कुमार करीब 45 साल लेबनान में रहे। करीब दो साल पहले सुरेश कुमार को वहां से डिपोर्ट कर अंबाला भेज दिया गया। पूरी दुनिया घूम चुके सुरेश ओझा अंबाला में लखपति परिवार से संबंध रखते हैं। सुरेश कुमार अविवाहित हैं और उन्हें घर में किसी ने सहारा नहीं दिया तो अपना घर को ही शरणस्थली बना लिया।
सीता को भी नहीं मिला सहारा
गाजियाबाद की 80 वर्षीय सीता को जब कहीं सहारा नहीं मिला तो अंबाला छावनी के अपना घर में ही रहने लगी। सीता के तीन बेटे थे। दो की पहले ही मौत हो गई थी और तीसरे को लेकर वह अंबाला पहुंची थी। अपना घर में उसके साथ रहने लगी थी। पिता की मौत के बाद तीसरा बेटा जतिंद्र मानसिक तौर पर परेशान रहने लगा था। वह अविवाहित था। वहीं दोनों अन्य बेटों की विधवा पत्नी अपने बच्चों के साथ देहरादून और गाजियाबाद में अपने मायके में रहती हैं। सीता के पति का कपड़ों का कारोबार और अच्छा शोरूम था। लेकिन सब उजड़ गया। आज पोते फोन पर कभी बात कर लें तो ठीक, वरना पूछने वाला भी कोई नहीं है। हालांकि इनके भाई भी अंबाला शहर में रहते हैं।
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