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BJP का बड़ा प्लान: येदियुरप्पा के इस्तीफे ने शिवराज के लिए बजा दी है खतरे की घंटी!
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पंकज सिंह | टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Updated: Jul 27, 2021, 12:26 PM
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येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद एक बात तो तय हो गई है केंद्रीय नेतृत्व का प्लान कुछ और ही है। पार्टी सिर्फ एक राज्य में ही नहीं बल्कि दूसरे कुछ राज्यों में भी ऐसे प्रयोग कर सकती है। बीजेपी को पता है कि इसमें जोखिम है बावजूद इसके पार्टी रिस्क उठाने को तैयार है।
 
बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक सीएम पद से दिया इस्तीफा, भावुक होकर कही यह बात
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हाइलाइट्स
आखिर इस्तीफे के लिए कैसे राजी हो गए बीएस येदियुरप्पा
येदियुरप्पा के जाने के बाद राज्य में कांग्रेस के लिए है मौका
उत्तराखंड, कर्नाटक के बाद अब किस राज्य के सीएम पर खतरा
नई दिल्ली
कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से बीएस येदियुरप्पा ने कल यानि सोमवार को इस्तीफा दे दिया। वो कर्नाटक ही नहीं दक्षिण भारत के राज्यों में भी लोकप्रिय नेता हैं। उनकी राज्य में काफी पकड़ भी है, ऐसे में सवाल उठता है कि यह जोखिम भरा हो सकता है यह जानते हुए भी बीजेपी की ओर से ऐसा क्यों किया गया। साथ ही दूसरा सवाल जो और भी महत्वपूर्ण है कि आखिर इसके लिए येदियुरप्पा मान कैसे गए।
इस्तीफे के बाद खड़े हुए दिलचस्प सवाल
लिंगायत समुदाय के बीच उनकी अच्छी पकड़ है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे लेख में वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी का कहना है कि लिंगायत जो राज्य की आबादी का 17% है, दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है - दलित लगभग 23% हैं और भाजपा का मुख्य आधार रहे हैं। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से 100 सीटों पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं। नीरजा चौधरी का कहना है कि इस्तीफे ने दो दिलचस्प सवाल खड़े किए हैं। भाजपा आलाकमान ने येदियुरप्पा से इस्तीफा क्यों लिया। अप्रैल-मई 2023 में होने वाले अगले राज्य चुनावों तक भाजपा उनके साथ बनी रह सकती थी उसके बाद भी ऐसा किया जा सकता था।
दूसरा सवाल वो राजी कैसे हुए वो इस स्थिति में हैं कि बीजेपी को राज्य में नुकसान पहुंचा सकते हैं। पहले सवाल का जवाब है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की हर स्तर पर नए चेहरों और टीमों को जगह देने की योजना का हिस्सा है। दूसरे सवाल का संक्षिप्त उत्तर यह है कि चुनौती देने के लिए बीएस येदियुरप्पा में अब वो पहले जैसी बात नहीं है।
राज्य में नई टीम, महीनों से जारी था प्रयास
भाजपा नेतृत्व येदियुरप्पा के साथ-साथ अन्य राज्यों के नेताओं को बदलने के मूड में है जिनका एक अपना कद है और जो अटल-आडवाणी युग के नेता हैं। मौजूदा नेतृत्व केंद्र और राज्यों में अपनी टीम बनाना चाहेगा। दिल्ली में हाल ही में हुए कैबिनेट फेरबदल से इसके स्पष्ट राजनीतिक संदेश थे। कर्नाटक में चुनाव दूर है और बीजेपी की ओर से कोशिश थी कि येदियुरप्पा को इस फैसले के लिए राजी किया जाए। येदियुरप्पा के जाने के बाद भी लिंगायत समुदाय पार्टी के साथ जुड़ा रह सकता है यदि वो स्वेच्छा से इस्तीफे के लिए राजी हो जाएं।
नीरजा चौधरी का कहना है कि यही वजह है कि बीजेपी महीनों से इस प्रयास में लगी थी। जहां तक येदियुरप्पा का सवाल है, वो अब 78 साल के हो गए हैं। राज्य में उन्होंने पार्टी को मजबूत किया,ऑपरेशन लोटस के तहत जनता दल (एस) -कांग्रेस सरकार गिरी और जुलाई 2019 में राज्य में बीजेपी की सरकार बनी।
क्या कांग्रेसी मुख्यमंत्री की राह पर येदियुरप्पा
दो साल पहले जब सरकार बनी थी तो एक बात तो तय थी कि आने वाले वक्त में येदियुरप्पा किसी और के लिए जगह बनाएंगे। पिछले कुछ महीनों में पार्टी के भीतर उनकी लगातार आलोचना हो रही थी। कई लोगों ने उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र की सरकार में हस्तक्षेप की शिकायत की जिन्हें सुपर सीएम भी कहा जाता था।ऐसा हो सकता है कि एक समझौते के तहत ऐसा हुआ हो और आने वाले दिनों में वो सामने आएगा। उनके बेटे की प्रभावशाली भूमिका रहे इसके लिए भी उन्होंने कोशिश की होगी।
क्या येदियुरप्पा एक और वीरेंद्र पाटिल बनेंगे? पाटिल कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे जिन्हें राजीव गांधी ने 1990 में हटा दिया था। उन्होंने 1989 में कांग्रेस के लिए अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की थी। पाटिल भी लिंगायत के दिग्गज थे। लिंगायत कांग्रेस से दूर जाने लगे और भाजपा की ओर बढ़ने लगे। उन्हें हटाए जाने के बाद राज्य में 1994 में कांग्रेस को अपनी सबसे अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। येदियुरप्पा का इस्तीफा कांग्रेस के लिए अवसर हो सकता है लेकिन कांग्रेस के पास आज एक शक्तिशाली लिंगायत चेहरा नहीं है, और पार्टी दो खेमों में नजर आ रही है।
येदियुरप्पा का इस्तीफा किसके लिए खतरे का संकेत
नीरजा चौधरी का कहना है कि येदियुरप्पा के बाहर निकलने का बड़ा संदेश क्या है, भले ही यह कर्नाटक की राजनीति के एक युग का समापन है। क्या यह मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए भी चेतावनी की घंटी है। वो राज्य में मजबूत और अकेले पुराने बीजेपी के नेता हैं।
यह निश्चित रूप से नई टीमों को स्थापित करने के साथ आगे बढ़ने के लिए केंद्रीय नेतृत्व का संकेत है। इसके लिए केंद्रीय नेतृत्व जोखिम उठाने के लिए भी तैयार है।
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