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उत्तराखंड के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में रेडियोलॉजी सुविधाएं नहीं है। जिन अस्पतालों में सुविधा है भी वहां, रेडियोलॉजिस्ट की कमी या उपकरण न होने के कारण मरीज जांच से वंचित हैं। इस कारण मरीजों को महंगे दाम पर निजी चिकित्सा संस्थानों में एमआरआई, एक्सरे, सिटी स्कैन, मैमोग्राफी, डायलिसिस करना पड़ रहा है। प्रदेश के जिन अस्पतालों में एमआरआई, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड मशीन लगी है। वहां भी मशीनें खराब होने के कारण मरीजों को सुविधाएं नहीं मिल रही है।
वर्तमान में प्रदेश के नौ जिला अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधा है। जिसमें कोरोनेशन चिकित्सालय देहरादून, बेस चिकित्सालय हल्द्वानी के अलावा मेला चिकित्सालय हरिद्वार, संयुक्त चिकित्सालय कोटद्वार, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज, जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग, बेस चिकित्सालय अल्मोड़ा, जिला चिकित्सालय पिथौरागढ़, जिला चिकित्सालय ऊधमसिंह नगर में डायलिसिस की सुविधा है। कैग की वर्ष 2019 की रिपोर्ट में जिला चिकित्सालयों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों को उजागर किया था।
प्रदेश में आईपीएचएस मानकों के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है। जिला चिकित्सालयों में डायलिसिस व अन्य जांच की सुविधाएं बढ़ाई जा रही है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग को मांग के अनुसार बजट स्वीकृत किया जा रहा है।
-डा. पंकज कुुमार पांडे, सचिव, स्वास्थ्य
कागजों में करोड़ों का बजट है, लेकिन लगभग एक साल से राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में एमआरआई मशीन नहीं लग पाई है। अफसरशाही की इस कमी का खामियाजा आम मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। मरीजों को मजबूरन निजी अस्पतालों और डायग्नोस्टिक केंद्रों में महंगा शुल्क देकर एमआरआई जांच करानी पड़ रही है। भविष्य के डॉक्टरों और पैरामेडिकल छात्रों को भी इसके बारे में सीखने को नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में शुमार दून अस्पताल में एमआरआई जांच की सुविधा नहीं मिल पाना प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर अपने आप में बड़े सवाल खड़े करता है।
जिला अस्पताल में भी सुविधाओं का टोटा
राजधानी के राजकीय जिला अस्पताल (कोरोनेशेन व गांधी शताब्दी अस्पताल परिसर) में भी सुविधाओं का टोटा है। जिला अस्पताल में न डायलिसिस की सुविधा है और न ही ईको जांच होती है। यह सुविधाएं पीपीपी मोड पर संचालित हो रही हैं। जिससे आम मरीजों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा अभी तक कोरोनेशन अस्पताल में 10 बेड वाले आईसीयू और 10 बेड के एचडीयू (हाई डिपेंडेंसी यूनिट) वार्ड भी उद्घाटन के इंतजार में हैं। इसके अलावा जिला अस्पताल के पास अपना ब्लड बैंक भी नहीं है। गांधी शताब्दी अस्पताल परिसर में जरूर सीमित मात्रा में ब्लड स्टोरेज की सुविधा है। इसके अतिरिक्त भी जिला अस्पताल में अन्य विभिन्न सुविधाएं भी नहीं हैं। राजधानी के जिला अस्पताल की यह स्थिति है तो प्रदेश के अन्य अस्पतालों की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
हरिद्वार : कुंभ हो गया खत्म, नहीं लगी एमआरआई मशीन
हरिद्वार जिले के तीनों अस्पतालों में एमआरआई मशीन नहीं है। हालांकि, कुंभ निधि से मेला अस्पताल में एमआरआई मशीन लगाए जाने को मंजूरी दी गई थी। कुंभ को बीते हुए भी करीब दो माह का समय गुजर चुका है, अब तक मशीन नहीं लगने से मरीजों को निजी अस्पतालों में एमआरआई कराने के लिए पांच से छह हजार रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। वहीं, ईसीजी की सुविधा मेला, महिला और जिला अस्पताल में मरीजों को दी जा रही है। डायलिसिस मशीन का लाभ मात्र मेला अस्पताल में मरीजों को दिया जा रहा है। मेला अस्पताल के सीएमएस डा. राजेेश गुप्ता का कहना है कि कुंभ निधि से एमआरआई मशीन लगाने का कार्य चल रहा है। अब कब मशीन लगेगी। कुछ कहा नहीं जा सकता है।
चमोली: नहीं है एमआरआई, डायलिसिस की सुविधा
चमोली जिले में जिला अस्पताल से लेकर किसी भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एमआरआई और डायलिसिस की सुविधा नहीं है। जिससे लोग इन सेवाओं का लाभ लेने के लिए बेस अस्पताल श्रीनगर और देहरादून जाते हैं। जिससे उन्हें समय और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। गोपेश्वर जिला अस्पताल में ईसीजी और डिजिटल एक्सरे की सुविधा है। चमोली के सीएओ डा. केके अग्रवाल ने बताया कि जिले में किसी भी अस्पताल में एमआरआई, डाइलिसिस की सुविधा नहीं है।
नई टिहरी: नई टिहरी में डायलिसिस और एमआरआई सुविधा नहीं
नई टिहरी जिला अस्पताल बौराड़ी में अभी तक डायलिसिस और एमआरआई की सुविधा नहीं है। जिससे मरीजों को बाहर रेफर करना पड़ रहा है। वहां मरीजों को इस जांच के लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है। जिला अस्पताल में ईसीजी, सीटी स्कैन, आईसीयू और एक्स-रे की सुविधाएं उपलब्ध है। जिससे मरीजों को इसका लाभ मिल रहा है। अस्पताल के सीएमएस डा. अमित राय ने बताया कि जिला अस्पताल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से डायलिसिस लगाने का प्रस्ताव मिला है। अस्पताल में 30 आक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्ध हैं।
पौड़ी: बेस अस्पताल एमआरआई व डायलिसिस सहूलियत, जिला अस्पताल में नहीं
जनपद पौड़ी के बेस अस्पताल कोटद्वार में एमआरआई व डायलिसिस सेवा उपलब्ध है। जिला अस्पताल में यह सेवा उपलब्ध नहीं है। हालांकि ईसीजी, अल्ट्रासाउंड, सिटी स्कैन, डिजीटल एक्स-रे सेवा जिला अस्पताल में निरंतर जारी है। चिकित्सा अधीक्षक जिला अस्पताल पौड़ी डा. गौरव रतूड़ी ने बताया कि एमआरआई, डायलिसिस व ब्लड कॉम्पोनेंट सेपरेटर अस्पताल प्रबंधन को उपलब्ध कराए जाने के लिए स्वास्थ्य महानिदेशक व सीएमओ पौड़ी को पत्र भेजा है। वहीं सीएमओ पौड़ी डा. मनोज शर्मा ने बताया कि जनपद में एमआरआई व डायलिसिस सेवा केवल बेस अस्पताल कोटद्वार में ही है।
बेस अस्पताल कोटद्वार में तीन साल से लिथोट्रिप्सी मशीन खराब
पौड़ी जिले की 80 फीसदी आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले बेस अस्पताल कोटद्वार में एमआरआई, ईसीजी और डायलिसिस सेंटर ठीक से कार्य कर रहा है। लेकिन, अस्पताल में करीब दो करोड़ रुपये की लागत से स्थापित लिथोट्रिप्सी मशीन गत तीन वर्ष से धूल फांक रही है। बेस अस्पताल में लोगों को सरकारी दरों पर पथरी का आधुनिक उपचार के लिए स्थापित की गई लिथोट्रिप्सी मशीन विगत तीन वर्ष से खराब है। लेकिन, लगातार शिकायत करने के बाद भी मशीन की मरम्मत नहीं हो रही है।
रुद्रप्रयाग: जिला अस्पताल में एमआरआई मशीन नहीं
जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग में जरूरतमंद मरीजों का डायलिसिस हो रहा है। यहां औसतन हर दिन तीन मरीजों का डायलिसिस किया जा रहा है। इसके अलावा ईसीजी, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे सहित संबंधित उपचार हो रहा है। प्रभारी सीएमएस डॉ. मनोज बडोनी ने बताया कि एमआरआई की सुविधा जिला अस्पताल में नहीं है लेकिन अन्य जो भी उपकरण हैं, उनका मरीजों के इलाज में पूरा उपयोग किया जा रहा है। जनरल सर्जन की तैनाती केे बाद अब अस्पताल में लैप्रोस्कोपी मशीन से भी ऑपरेशन शुरू कर दिए जाएंगे। जल्द ही संबंधित चिकित्सक को ट्रेनिंग के लिए भेजा जाएगा।
उत्तरकाशी: सालभर से बंद पड़ी है लिथोट्रिप्सी मशीन
जिला अस्प्ताल में एमआरआई व डायलिसिस मशीनें नहीं हैं। ईसीजी, सीटी स्कैन मशीनें चालू हालत में हैं। कोविड के चलते पथरी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली लिथोट्रिप्सी मशीन से सालभर से बंद पड़ी है। जिसके बाद इसकी वार्षिक मेंटेनेंस जरुरी है। लेकिन इंजीनियर के नहीं पहुंचने के चलते मेंटेनेंस नहीं हो पा रही है। सीएमओ डा.एसडी सकलानी ने बताया कि वार्षिक रखरखाव अनुबंध के तहत मशीन के मेंटेनेंस के लिए महाराष्ट्र से इंजीनियर को बुलाया गया है। जिसके आने बाद यह मशीन चालू हो जाएगी। लिथोट्रिप्सी मशीन पथरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर बाहर निकालने के प्रयोग में लाई जाती है।
ऊधमसिंह नगर : नहीं है एमआरआई मशीन
जिला अस्पताल में मरीजों के लिए एमआरआई की सुविधा नहीं है। अस्पताल में सीटी स्कैन मशीन आ चुकी है और इसके संचालन के लिए डाक्टर और स्टाफ का ऑनलाइन प्रशिक्षण चल रहा है। हालांकि यहां ईसीजी, डायलिसिस मशीनों की सुविधा मरीजों के लिए उपलब्ध है। काशीपुर और खटीमा में भी सीटी स्कैन सुविधा नहीं है। निजी अस्पतालों में सीटी स्कैन (हेड एंड नेक) 2200 रुपये, सीटी चेस्ट 3200 रुपये और एमआरआई के लिए छह हजार रुपये मरीजों से लिए जाते हैं। जिला अस्पताल प्रबंधक डॉ. अजयवीर सिंह ने बताया कि प्रशिक्षण पूरा होने के बाद सीटी स्कैन मशीन का लाभ मरीजों को मिलने लगेगा।
चंपावत : ढाई साल से धूल फांक रहीं दो एक्सरे मशीन
जिले के दो सरकारी अस्पतालों की एक्सरे मशीन वर्षों से धूल फांक रही है। इसकी वजह से करीब सवा लाख लोगों को दूसरे सरकारी अस्पतालों में जाना पड़ता है या मोटी रकम खर्च करके निजी अस्पताल जाना पड़ता है। एक एक्सरे के परीक्षण में 300 से 600 रुपये तक खर्च आता है। सीएमओ डॉ. आरपी खंडूरी का कहना है कि एक्सरे तकनीशियन न होने से ये समस्या आई है। जिले के तीन सरकारी अस्पतालों की अल्ट्रासाउंड मशीनों के संचालन के लिए दो ही रेडियोलॉजिस्ट हैं। इस कारण टनकपुर की अल्ट्रासाउंड मशीन का 2015 से उपयोग नहीं हो रहा था।
नैनीताल : एमआरआई मशीन बदलने की योजना
सुशीला तिवारी अस्पताल में कुमाऊं के साथ यूपी के कई जिलों से रोगी इलाज के लिए आते हैं। अस्पताल में सीटी स्कैन और एमआरआई मशीन बदलने की कवायद लंबे समय से चल रही थी। मार्च में नई सीटी स्कैन मशीन लग गई है। लेकिन नई एमआरआई मशीन (करीब 15 साल पुरानी हो चुकी है) नहीं लग सकी है। हालांकि मशीन से जांच हो रही और इसकी मार्च 2022 तक एएमसी की हुई है। वहीं, पिछले साल ही अस्पताल की डायलिसिस यूनिट में पांच नई मशीनों को लगाने के साथ अन्य कार्य कराए गए। मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सीपी भैसोड़ा ने बताया कि शासन में एमआरआई मशीन का प्रस्ताव भेजा जा चुका है।
बागेश्वर: एमआरआई के लिए हल्द्वानी की दौड़
जिले में एमआरआई और डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध नहीं है। ईजीसी, एक्सरे मशीन चालू हालत में हैं। एमआरआई और डायलिसिस के लिए मरीजों को हल्द्वानी जाना पड़ता है। इसमें हजारों रुपये का खर्च आता है। जिला अस्पताल के सीएमएस डॉ. एलएस बृजवाल ने बताया कि जिला अस्पताल में डिजिटल एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और ईसीजी की सुविधा है। यह सभी मशीनें काम कर रहीं हैं। एमआरआई और डायलिसिस के मरीजों को हायर सेंटर रेफर किया जाता है।
पिथौरागढ़ : सीटी स्कैन, एमआरआई की सुविधा नहीं
जिला अस्पताल में सीटी स्कैन और एमआरआई की सुविधा नहीं है। सीटी स्कैन के लिए लोगों को साढ़े तीन हजार रुपये और एमआरआई के लिए सात हजार रुपये से अधिक तक खर्च करने पड़ते हैं। सीएमओ डॉ. एचसी पंत ने बताया कि जिला अस्पताल में डायलिसिस, एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड मशीनें सही स्थिति में हैं। उपचार के लिए आने वाले मरीजों की सभी जरूरी जांच जिला अस्पताल में की जाती हैं। गर्भवती महिलाओं की खून संबंधी सभी जांच मुफ्त की जाती हैं। सीटी स्कैन मशीन बेस अस्पताल में लगी है लेकिन उसका संचालन मेडिकल कॉलेज को करना है।
अल्मोड़ा : एमआरआई की सुविधा नहीं
जिला अस्पताल में दो ईसीजी, एक अल्ट्रासाउंड, डिजीटल समेत कुल चार एक्सरे मशीन, एक सीआर्म मशीन उपलब्ध है और सभी मशीनें ठीक तरह से कार्य कर रही हैं। हालांकि अस्पताल में अब तक सीटी, एमआरआई, डायलिसिस मशीनें नहीं हैं। बीते दिनों सीआर्म मशीन खराब थी लेकिन उसके स्थान पर नई मशीन खरीद ली गई है।
विस्तार
उत्तराखंड के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में रेडियोलॉजी सुविधाएं नहीं है। जिन अस्पतालों में सुविधा है भी वहां, रेडियोलॉजिस्ट की कमी या उपकरण न होने के कारण मरीज जांच से वंचित हैं। इस कारण मरीजों को महंगे दाम पर निजी चिकित्सा संस्थानों में एमआरआई, एक्सरे, सिटी स्कैन, मैमोग्राफी, डायलिसिस करना पड़ रहा है। प्रदेश के जिन अस्पतालों में एमआरआई, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड मशीन लगी है। वहां भी मशीनें खराब होने के कारण मरीजों को सुविधाएं नहीं मिल रही है।
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वर्तमान में प्रदेश के नौ जिला अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधा है। जिसमें कोरोनेशन चिकित्सालय देहरादून, बेस चिकित्सालय हल्द्वानी के अलावा मेला चिकित्सालय हरिद्वार, संयुक्त चिकित्सालय कोटद्वार, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज, जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग, बेस चिकित्सालय अल्मोड़ा, जिला चिकित्सालय पिथौरागढ़, जिला चिकित्सालय ऊधमसिंह नगर में डायलिसिस की सुविधा है। कैग की वर्ष 2019 की रिपोर्ट में जिला चिकित्सालयों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों को उजागर किया था।
प्रदेश में आईपीएचएस मानकों के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है। जिला चिकित्सालयों में डायलिसिस व अन्य जांच की सुविधाएं बढ़ाई जा रही है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग को मांग के अनुसार बजट स्वीकृत किया जा रहा है।
-डा. पंकज कुुमार पांडे, सचिव, स्वास्थ्य
देहरादून: एक साल से नहीं लग पाई एमआरआई मशीन
कागजों में करोड़ों का बजट है, लेकिन लगभग एक साल से राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में एमआरआई मशीन नहीं लग पाई है। अफसरशाही की इस कमी का खामियाजा आम मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। मरीजों को मजबूरन निजी अस्पतालों और डायग्नोस्टिक केंद्रों में महंगा शुल्क देकर एमआरआई जांच करानी पड़ रही है। भविष्य के डॉक्टरों और पैरामेडिकल छात्रों को भी इसके बारे में सीखने को नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में शुमार दून अस्पताल में एमआरआई जांच की सुविधा नहीं मिल पाना प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर अपने आप में बड़े सवाल खड़े करता है।
जिला अस्पताल में भी सुविधाओं का टोटा
राजधानी के राजकीय जिला अस्पताल (कोरोनेशेन व गांधी शताब्दी अस्पताल परिसर) में भी सुविधाओं का टोटा है। जिला अस्पताल में न डायलिसिस की सुविधा है और न ही ईको जांच होती है। यह सुविधाएं पीपीपी मोड पर संचालित हो रही हैं। जिससे आम मरीजों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा अभी तक कोरोनेशन अस्पताल में 10 बेड वाले आईसीयू और 10 बेड के एचडीयू (हाई डिपेंडेंसी यूनिट) वार्ड भी उद्घाटन के इंतजार में हैं। इसके अलावा जिला अस्पताल के पास अपना ब्लड बैंक भी नहीं है। गांधी शताब्दी अस्पताल परिसर में जरूर सीमित मात्रा में ब्लड स्टोरेज की सुविधा है। इसके अतिरिक्त भी जिला अस्पताल में अन्य विभिन्न सुविधाएं भी नहीं हैं। राजधानी के जिला अस्पताल की यह स्थिति है तो प्रदेश के अन्य अस्पतालों की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
हरिद्वार : कुंभ हो गया खत्म, नहीं लगी एमआरआई मशीन
हरिद्वार जिले के तीनों अस्पतालों में एमआरआई मशीन नहीं है। हालांकि, कुंभ निधि से मेला अस्पताल में एमआरआई मशीन लगाए जाने को मंजूरी दी गई थी। कुंभ को बीते हुए भी करीब दो माह का समय गुजर चुका है, अब तक मशीन नहीं लगने से मरीजों को निजी अस्पतालों में एमआरआई कराने के लिए पांच से छह हजार रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। वहीं, ईसीजी की सुविधा मेला, महिला और जिला अस्पताल में मरीजों को दी जा रही है। डायलिसिस मशीन का लाभ मात्र मेला अस्पताल में मरीजों को दिया जा रहा है। मेला अस्पताल के सीएमएस डा. राजेेश गुप्ता का कहना है कि कुंभ निधि से एमआरआई मशीन लगाने का कार्य चल रहा है। अब कब मशीन लगेगी। कुछ कहा नहीं जा सकता है।
चमोली: नहीं है एमआरआई, डायलिसिस की सुविधा
चमोली जिले में जिला अस्पताल से लेकर किसी भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एमआरआई और डायलिसिस की सुविधा नहीं है। जिससे लोग इन सेवाओं का लाभ लेने के लिए बेस अस्पताल श्रीनगर और देहरादून जाते हैं। जिससे उन्हें समय और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। गोपेश्वर जिला अस्पताल में ईसीजी और डिजिटल एक्सरे की सुविधा है। चमोली के सीएओ डा. केके अग्रवाल ने बताया कि जिले में किसी भी अस्पताल में एमआरआई, डाइलिसिस की सुविधा नहीं है।
नई टिहरी: नई टिहरी में डायलिसिस और एमआरआई सुविधा नहीं
नई टिहरी जिला अस्पताल बौराड़ी में अभी तक डायलिसिस और एमआरआई की सुविधा नहीं है। जिससे मरीजों को बाहर रेफर करना पड़ रहा है। वहां मरीजों को इस जांच के लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है। जिला अस्पताल में ईसीजी, सीटी स्कैन, आईसीयू और एक्स-रे की सुविधाएं उपलब्ध है। जिससे मरीजों को इसका लाभ मिल रहा है। अस्पताल के सीएमएस डा. अमित राय ने बताया कि जिला अस्पताल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से डायलिसिस लगाने का प्रस्ताव मिला है। अस्पताल में 30 आक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्ध हैं।
पौड़ी: बेस अस्पताल एमआरआई व डायलिसिस सहूलियत, जिला अस्पताल में नहीं
जनपद पौड़ी के बेस अस्पताल कोटद्वार में एमआरआई व डायलिसिस सेवा उपलब्ध है। जिला अस्पताल में यह सेवा उपलब्ध नहीं है। हालांकि ईसीजी, अल्ट्रासाउंड, सिटी स्कैन, डिजीटल एक्स-रे सेवा जिला अस्पताल में निरंतर जारी है। चिकित्सा अधीक्षक जिला अस्पताल पौड़ी डा. गौरव रतूड़ी ने बताया कि एमआरआई, डायलिसिस व ब्लड कॉम्पोनेंट सेपरेटर अस्पताल प्रबंधन को उपलब्ध कराए जाने के लिए स्वास्थ्य महानिदेशक व सीएमओ पौड़ी को पत्र भेजा है। वहीं सीएमओ पौड़ी डा. मनोज शर्मा ने बताया कि जनपद में एमआरआई व डायलिसिस सेवा केवल बेस अस्पताल कोटद्वार में ही है।
बेस अस्पताल कोटद्वार में तीन साल से लिथोट्रिप्सी मशीन खराब
पौड़ी जिले की 80 फीसदी आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले बेस अस्पताल कोटद्वार में एमआरआई, ईसीजी और डायलिसिस सेंटर ठीक से कार्य कर रहा है। लेकिन, अस्पताल में करीब दो करोड़ रुपये की लागत से स्थापित लिथोट्रिप्सी मशीन गत तीन वर्ष से धूल फांक रही है। बेस अस्पताल में लोगों को सरकारी दरों पर पथरी का आधुनिक उपचार के लिए स्थापित की गई लिथोट्रिप्सी मशीन विगत तीन वर्ष से खराब है। लेकिन, लगातार शिकायत करने के बाद भी मशीन की मरम्मत नहीं हो रही है।
रुद्रप्रयाग: जिला अस्पताल में एमआरआई मशीन नहीं
जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग में जरूरतमंद मरीजों का डायलिसिस हो रहा है। यहां औसतन हर दिन तीन मरीजों का डायलिसिस किया जा रहा है। इसके अलावा ईसीजी, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे सहित संबंधित उपचार हो रहा है। प्रभारी सीएमएस डॉ. मनोज बडोनी ने बताया कि एमआरआई की सुविधा जिला अस्पताल में नहीं है लेकिन अन्य जो भी उपकरण हैं, उनका मरीजों के इलाज में पूरा उपयोग किया जा रहा है। जनरल सर्जन की तैनाती केे बाद अब अस्पताल में लैप्रोस्कोपी मशीन से भी ऑपरेशन शुरू कर दिए जाएंगे। जल्द ही संबंधित चिकित्सक को ट्रेनिंग के लिए भेजा जाएगा।
उत्तरकाशी: सालभर से बंद पड़ी है लिथोट्रिप्सी मशीन
जिला अस्प्ताल में एमआरआई व डायलिसिस मशीनें नहीं हैं। ईसीजी, सीटी स्कैन मशीनें चालू हालत में हैं। कोविड के चलते पथरी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली लिथोट्रिप्सी मशीन से सालभर से बंद पड़ी है। जिसके बाद इसकी वार्षिक मेंटेनेंस जरुरी है। लेकिन इंजीनियर के नहीं पहुंचने के चलते मेंटेनेंस नहीं हो पा रही है। सीएमओ डा.एसडी सकलानी ने बताया कि वार्षिक रखरखाव अनुबंध के तहत मशीन के मेंटेनेंस के लिए महाराष्ट्र से इंजीनियर को बुलाया गया है। जिसके आने बाद यह मशीन चालू हो जाएगी। लिथोट्रिप्सी मशीन पथरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर बाहर निकालने के प्रयोग में लाई जाती है।
कुमाऊं में भी यही हाल
ऊधमसिंह नगर : नहीं है एमआरआई मशीन
जिला अस्पताल में मरीजों के लिए एमआरआई की सुविधा नहीं है। अस्पताल में सीटी स्कैन मशीन आ चुकी है और इसके संचालन के लिए डाक्टर और स्टाफ का ऑनलाइन प्रशिक्षण चल रहा है। हालांकि यहां ईसीजी, डायलिसिस मशीनों की सुविधा मरीजों के लिए उपलब्ध है। काशीपुर और खटीमा में भी सीटी स्कैन सुविधा नहीं है। निजी अस्पतालों में सीटी स्कैन (हेड एंड नेक) 2200 रुपये, सीटी चेस्ट 3200 रुपये और एमआरआई के लिए छह हजार रुपये मरीजों से लिए जाते हैं। जिला अस्पताल प्रबंधक डॉ. अजयवीर सिंह ने बताया कि प्रशिक्षण पूरा होने के बाद सीटी स्कैन मशीन का लाभ मरीजों को मिलने लगेगा।
चंपावत : ढाई साल से धूल फांक रहीं दो एक्सरे मशीन
जिले के दो सरकारी अस्पतालों की एक्सरे मशीन वर्षों से धूल फांक रही है। इसकी वजह से करीब सवा लाख लोगों को दूसरे सरकारी अस्पतालों में जाना पड़ता है या मोटी रकम खर्च करके निजी अस्पताल जाना पड़ता है। एक एक्सरे के परीक्षण में 300 से 600 रुपये तक खर्च आता है। सीएमओ डॉ. आरपी खंडूरी का कहना है कि एक्सरे तकनीशियन न होने से ये समस्या आई है। जिले के तीन सरकारी अस्पतालों की अल्ट्रासाउंड मशीनों के संचालन के लिए दो ही रेडियोलॉजिस्ट हैं। इस कारण टनकपुर की अल्ट्रासाउंड मशीन का 2015 से उपयोग नहीं हो रहा था।
नैनीताल : एमआरआई मशीन बदलने की योजना
सुशीला तिवारी अस्पताल में कुमाऊं के साथ यूपी के कई जिलों से रोगी इलाज के लिए आते हैं। अस्पताल में सीटी स्कैन और एमआरआई मशीन बदलने की कवायद लंबे समय से चल रही थी। मार्च में नई सीटी स्कैन मशीन लग गई है। लेकिन नई एमआरआई मशीन (करीब 15 साल पुरानी हो चुकी है) नहीं लग सकी है। हालांकि मशीन से जांच हो रही और इसकी मार्च 2022 तक एएमसी की हुई है। वहीं, पिछले साल ही अस्पताल की डायलिसिस यूनिट में पांच नई मशीनों को लगाने के साथ अन्य कार्य कराए गए। मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सीपी भैसोड़ा ने बताया कि शासन में एमआरआई मशीन का प्रस्ताव भेजा जा चुका है।
बागेश्वर: एमआरआई के लिए हल्द्वानी की दौड़
जिले में एमआरआई और डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध नहीं है। ईजीसी, एक्सरे मशीन चालू हालत में हैं। एमआरआई और डायलिसिस के लिए मरीजों को हल्द्वानी जाना पड़ता है। इसमें हजारों रुपये का खर्च आता है। जिला अस्पताल के सीएमएस डॉ. एलएस बृजवाल ने बताया कि जिला अस्पताल में डिजिटल एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और ईसीजी की सुविधा है। यह सभी मशीनें काम कर रहीं हैं। एमआरआई और डायलिसिस के मरीजों को हायर सेंटर रेफर किया जाता है।
पिथौरागढ़ : सीटी स्कैन, एमआरआई की सुविधा नहीं
जिला अस्पताल में सीटी स्कैन और एमआरआई की सुविधा नहीं है। सीटी स्कैन के लिए लोगों को साढ़े तीन हजार रुपये और एमआरआई के लिए सात हजार रुपये से अधिक तक खर्च करने पड़ते हैं। सीएमओ डॉ. एचसी पंत ने बताया कि जिला अस्पताल में डायलिसिस, एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड मशीनें सही स्थिति में हैं। उपचार के लिए आने वाले मरीजों की सभी जरूरी जांच जिला अस्पताल में की जाती हैं। गर्भवती महिलाओं की खून संबंधी सभी जांच मुफ्त की जाती हैं। सीटी स्कैन मशीन बेस अस्पताल में लगी है लेकिन उसका संचालन मेडिकल कॉलेज को करना है।
अल्मोड़ा : एमआरआई की सुविधा नहीं
जिला अस्पताल में दो ईसीजी, एक अल्ट्रासाउंड, डिजीटल समेत कुल चार एक्सरे मशीन, एक सीआर्म मशीन उपलब्ध है और सभी मशीनें ठीक तरह से कार्य कर रही हैं। हालांकि अस्पताल में अब तक सीटी, एमआरआई, डायलिसिस मशीनें नहीं हैं। बीते दिनों सीआर्म मशीन खराब थी लेकिन उसके स्थान पर नई मशीन खरीद ली गई है।
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