जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में रिज़र्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 25 जून को देश का विदेशी मुद्रा भंडार 609 अरब डॉलर की ऐतिहासिक रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया और भारत दुनिया में चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार रखने वाला देश बन गया है। ऐसे में उपयुक्त होगा कि कोरोना काल के बीच दयनीय स्थिति में दिखाई दे रहे देश के स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाने की तरफ बढ़ें। साथ ही चीन व पाकिस्तान से मिल रही रक्षा चुनौतियों के मद्देनजर आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रों की पर्याप्त मात्रा में खरीद तथा एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी के लिए विदेशी मुद्राकोष के एक भाग को व्यय करने की डगर पर रणनीतिक रूप से आगे बढ़ा जाए।
गौरतलब है कि देश के विशाल आकार के विदेशी मुद्रा भंडार से जहां भारत की वैश्विक आर्थिक साख बढ़ी है, वहीं इस भंडार से देश की एक वर्ष से भी अधिक की आयात जरूरतों की पूर्ति की जा सकती है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार देश के अंतर्राष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। साथ ही विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में देश का तीन दशक पहले का परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। वर्ष 1991 में हमारे देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। हमारी अर्थव्यवस्था भुगतान संकट में फंसी हुई थी। उस समय के गंभीर हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.1 अरब डॉलर ही रह गया था। इतनी कम रकम करीब दो-तीन हफ्तों के आयात के लिए भी पूरी नहीं थी। ऐसे में रिज़र्व बैंक ने 47 टन सोना विदेशी बैंकों के पास गिरवी रख कर कर्ज लिया था।
फिर देश द्वारा वर्ष 1991 में नयी आर्थिक नीति अपनाई गई, जिसका उद्देश्य वैश्वीकरण और निजीकरण को बढ़ाना रहा। इस नयी नीति के पश्चात धीरे-धीरे देश के भुगतान संतुलन की स्थिति सुधरने लगी। वर्ष 1994 से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने लगा। वर्ष 2002 के बाद इसने तेज गति पकड़ी। वर्ष 2004 में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 100 अरब डॉलर के पार पहुंचा। फिर इसमें लगातार वृद्धि होती गई और 5 जून, 2020 को विदेशी मुद्रा भंडार ने 501 अरब डॉलर के स्तर को प्राप्त किया। अब एक वर्ष बाद 11 जून, 2021 को 608 अरब डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुके विदेशी मुद्रा भंडार के और तेजी से बढ़ने की संभावनाएं उभरती दिखाई दे रही हैं।
पिछले एक वर्ष में हमारे देश के विदेशी मुद्रा भंडार के तेजी से बढ़ने की कई वजह हैं। दुनिया भर के बड़े देशों के सेंट्रल बैंकों ने जिस तरह अपने विदेशी मुद्राकोष में गोल्ड रिज़र्व बढ़ाया है, उसी तरह रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी वर्ष 2018 से गोल्ड रिज़र्व तेजी से बढ़ाया है। चूंकि भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरतों का 80 से 85 प्रतिशत आयात करता है और इस पर सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च होती है। ऐसे में पिछले वर्ष 2020 में कच्चे तेल की कीमतों में कमी विदेशी मुद्रा भंडार के लिए लाभप्रद रही है। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से मई, 2021 के महीनों में भी देश के कई प्रदेशों में कोविड-19 की दूसरी लहर और लॉकडाउन के कारण पेट्रोलियम पदार्थों और सोने के आयात में बड़ी कमी आने से विदेशी मुद्रा भंडार से व्यय में कमी आई है।
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी के लिए एक प्रमुख कारण है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का तेजी से बढ़ना। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में देश में एफडीआई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2020-21 में एफडीआई 19 प्रतिशत बढ़कर 59.64 अरब डॉलर हो गया। इस दौरान इक्विटी, पुनर्निवेश आय और पूंजी सहित कुल एफडीआई 10 प्रतिशत बढ़कर 81.72 अरब डॉलर हो गया। वित्त वर्ष 2019-20 में एफडीआई का कुल प्रवाह 74.39 अरब डॉलर था।
यद्यपि पिछले वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट रही है, इसके बावजूद विदेशी निवेशकों द्वारा भारत को एफडीआई के लिए प्राथमिकता दिए जाने के कई कारण हैं। भारत में निवेश पर बेहतर रिटर्न है। भारतीय बाजार बढ़ती डिमांड वाला बाजार है। भारत के एक ही बाजार में कई तरह के बाजारों की लाभप्रद निवेश विशेषताएं हैं। पूरी दुनिया यह देख रही है कि भारत का शेयर बाजार तेजी से आगे बढ़ रहा है। पिछले वर्ष 23 मार्च, 2020 को जो बाम्बे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) सेंसेक्स 25981 अंकों के साथ ढलान पर दिखाई दिया था, वह इस समय दोगुने से भी अधिक की ऊंचाई पर पहुंच गया है।
निश्चित रूप से देश में एफडीआई बढ़ने का एक बड़ा कारण सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षों में उद्योग-कारोबार को आसान बनाने के लिए किए गए कई ऐतिहासिक सुधार भी हैं। पिछले छह-सात वर्षों में कई पुराने व बेकार कानूनों को खत्म कर नये सरल कानूनों को लागू किए जाने और विभिन्न आर्थिक मोर्चों पर सुधारों के दम पर निवेश के मामले में भारत को लेकर दुनिया का नजरिया बदला है। देश में बड़े टैक्स रिफॉर्म हुए हैं। जीएसटी लागू हुआ है। काॅरपोरेट कर में बड़ी कमी की गई है और बड़े आयकर सुधार लागू किए गए हैं। ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ नीति के तहत देश में कारोबार को गति देने के लिए कई सुधार किए गए हैं। निवेश और विनिवेश के नियमों में परिवर्तन भी किए गए हैं। कोविड-19 के कारण चीन के प्रति बढ़ती हुई नकारात्मकता और भारत की सकारात्मक छवि के कारण भी भारत में एफडीआई प्रवाह बढ़ने से विदेशी मुद्राकोष की ऊंचाई बढ़ी है। कोरोना संकट के बीच चीन से निकली कई कंपनियों ने बड़े विदेशी निवेश के साथ भारत में कदम बढ़ाए हैं।
कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंचने से भारत के लिए कई लाभ चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं। विदेशी मुद्रा भंडार के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचने के कारण ही देश द्वारा चीन से तनातनी के बीच पिछले वर्ष 2020 में उपयुक्त रूप से रक्षा साजो-सामान की खरीद की गई है। अब फिर चीन और पाकिस्तान की रक्षा चुनौतियों के बीच रक्षा संबंधी नये साजो-सामान की खरीद की जानी उपयुक्त दिखाई दे रही है। कोविड-19 के बीच विदेशी मुद्रा बाज़ार में अस्थिरता को कम करने के लिये देश का विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावी भूमिका निभा रहा है। इस समय भारत विदेशी मुद्रा भंडार का कुछ भाग देश की स्थाई और बुनियादी जरूरतों की पूर्ति पर भी व्यय कर सकता है। चूंकि देश में बदहाल स्वास्थ्य ढांचे के कारण कोरोना की दूसरी लहर के बीच अप्रैल-मई, 2021 में देशभर में अकल्पनीय मानवीय पीड़ाओं के दृश्य निर्मित हुए थे। अब देश में कोरोना के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने व स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाने में विदेशी मुद्रा भंडार के कुछ भाग का उपयोग किया जाना उपयुक्त दिखाई दे रहा है।
लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।
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दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।
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