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Co-WIN Vaccinator App
नजदीकी अस्पताल में सीधे जा सकते हैं, जहां वैक्सीनेशन की प्रक्रिया चल रही हो। यह सुविधा उन लोगों के लिए अहम है जो तकनीक के मामले में थोड़ा पीछे हैं।
यहां से लें मदद
वैक्सीनेशन के बाद 30 से 40 मिनट इंतजार करने के लिए कहा जाता है। इंतजार जरूर करें। अगर परेशानी होती है तो वहां के मेडिकल स्टाफ से मदद मांग सकते हैं।
हेल्पलाइन नंबर: 011-23978046
वॉट्सऐप पर मदद: 9013151515
टोल फ्री: 1075
सबसे खास बातें
कोविशील्ड वैक्सीन की दूसरी डोज में 12 से 16 हफ्ते का गैप होना चाहिए।
कोवैक्सीन की दूसरी डोज लेने में 4 से 6 हफ्ते का गैप होना चाहिए।
स्पूतनिक-वी की दूसरी डोज लेने में भी 4 से 6 हफ्ते का गैप होना चाहिए।
स्पूतनिक-वी लाइट को मंजूरी मिलने के बाद एक ही डोज लगाने की बात कही गई है।
जायडस-कैडिला की वैक्सीन ZyCoV-D कोरोना की पहली वैक्सीन होगी जिसे लगाते समय सुई का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
प्रेग्नेंट हों या दूध पिलाने वाली मां, कोरोना वैक्सीन लगवा सकती हैं।
जानें वैक्सीन से जुड़ी बेसिक जानकारी
वैक्सीन लें या न लें?
वैक्सीन जरूर लेनी है। सभी को लेनी है। बिना वैक्सीन के इम्यूनिटी नहीं बनेगी। फिलहाल जो वैक्सीन पूरी दुनिया में मिल रही हैं, वे सभी आपातकालीन इस्तेमाल (इमरजेंसी यूज) के लिए हैं। इनमें से अभी तक किसी को भी कमर्शल प्रोडक्शन का अधिकार नहीं मिला है। देश में इस वक्त तीन वैक्सीन: कोवैक्सीन, कोविशील्ड, स्पूतनिक-वी मिल रही हैं और जल्द ही फाइजर की वैक्सीन भी मिल सकती है। इन सभी को इमरजेंसी यूज (यह सिर्फ जान बचाने के लिए है, डेटा का विश्लेषण नहीं हुआ हैै) के लिए ही अधिकार दिया गया है। जिससे हर शख्स के शरीर में कोरोना के खिलाफ ऐंटिबॉडी विकसित हो सके।
कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी और फाइजर में से कौन-सी वैक्सीन बेहतर है?
हर वैक्सीन की क्षमता अलग-अलग होती है। सभी के साइड इफेक्ट्स भी अलग-अलग होते हैं। जिस वैक्सीन की क्षमता 50 फीसदी से ज्यादा है, वह वैक्सीन अच्छी है। देश में मिल रही हर वैक्सीन की क्षमता 50 फीसदी से ज्यादा है। सिर्फ क्षमता ज्यादा होने से वैक्सीन की क्वॉलिटी निर्धारित नहीं की जा सकती है। वैक्सीन लगने के बाद उसके साइड इफेक्ट्स कितने कम उभर रहे हैं, इससे भी वैक्सीन की क्वॉलिटी समझी जाती है। इसलिए कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी और फाइजर में से किसी को भी लगाया जा सकता है।
देश में कौन-सी नई वैक्सीन आ रही है और कब तक?
देश में मिल रही वैक्सीन: कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पूतनिक-वी।
जल्द मिलेगी
1. अमेरिकी वैक्सीन फाइजर
यह आरएनए तकनीक पर काम करती है।
इसकी क्षमता करीब 95 फीसदी कही गई है।
2. भारतीय वैक्सीन जायडस-कैडिला
यह पहली वैक्सीन होगी जिसे बिना इंजेक्शन शरीर में पहुंचाया जाएगा।
इसे फार्माजेट तकनीक से लगाया जाएगा, जिसमें तेज गति से वैक्सीन को स्किन के अंदर पहुंचाया जाता है। इससे इंफेक्शन का खतरा भी कुछ कम होगा।
इस वैक्सीन का नाम ZyCoV-D है।
इसने भारत के औषधि महानियंत्रक (DGCI) से आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मांगी है।
यह पहली प्लाज्मिड DNA वैक्सीन है।
इस वैक्सीन के बारे में कहा जा रहा है कि यह 12 से 18 साल के किशोरों के लिए भी कारगर है।
इस वैक्सीन की 3 डोज लगेंगी।
3. स्पूतनिक-वी लाइट
भारत की कंपनी डॉ. रेडीज ने इस वैक्सीन के लिए DGCI के पास आवेदन दिया था। DGCI ने वैक्सीन से संबंधित डेटा उपलब्ध कराने के लिए कहा है। तब तक के लिए मंजूरी नहीं दी गई है।
इसे स्टोर करना आसान है।
इसकी एक खुराक ही दी जाएगी। जबकि भारत में पहले से मिल रही स्पुतनिक-वी वैक्सीन की दो खुराकें दी जाती हैं।
देसी और विदेशी वैक्सीन में क्या खास अंतर है?
देसी और विदेशी वैक्सीन में कोई फर्क नहीं है। दोनों का काम शरीर में कोरोना के खिलाफ ऐंटिबॉडी तैयार करना है। इस काम में देसी और विदेशी दोनों वैक्सीन कामयाब हैं।
क्या वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के बाद भी बूस्टर डोज लगवानी होगी?
कोरोना वायरस की शुरुआत हुए 2 साल भी नहीं बीते हैं। फिलहाल लोगों की जान बचाने के लिए इमरजेंसी में वैक्सीन दी जा रही है। अभी इस पर स्टडी करनी बाकी है। इस बात का अनुमान लगाना मुश्किल है कि बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी या नहीं। स्टडी को पूरा होने में 3 से 5 साल या इससे ज्यादा का वक्त भी लग सकता है। जब तक वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां डेटा का सही तरीके से विश्लेषण नहीं कर लेतीं, कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
रजिस्ट्रेशन कहां करवाना होगा?
रजिस्ट्रेशन के बाद वैक्सीन लगवाने का नंबर आता है। www.cowin.gov.in पर वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते है। इसके अलावा Aarogya Setu app या Co-WIN Vaccinator App पर भी रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है। यह भी मुमकिन न हो तो नजदीकी अस्पताल में सीधे जा सकते हैं, जहां वैक्सीनेशन की प्रक्रिया चल रही हो, वहां भी रजिस्ट्रेशन हो सकता है। यह सुविधा उन लोगों के लिए बेहतर है जो टेक सेवी नहीं हैं।
वैक्सीन कितनी असरदार
क्या वैक्सीन लगवाने के बाद ज़िंदगीभर कोरोना नहीं होगा?
इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती। कोरोना से पहले जितनी भी वैक्सीन अलग-अलग बीमारियों के खिलाफ लगाई जाती रही हैं बाद में उनके मामले भी देखे गए हैं। जैसे, MMR (मीजल्स, मम्स, रुबेला से बचाव के लिए), BCG (टीबी से बचाव के लिए)। इन्हें लगाने के बाद भी लोगों को ये बीमारियां हुई हैं। हां, यह जरूर है कि वैक्सीन लगने के बाद ऐसे मामले बहुत कम देखे गए। अगर किसी को बाद में ये बीमारियां हुई भी तो जानलेवा नहीं रहीं। कोरोना की वैक्सीन के साथ भी ऐसा ही है। जिन लोगों ने कोरोना के खिलाफ इम्यूनिटी हासिल कर ली है, भविष्य में दोबारा इंफेक्शन होने पर इसकी गंभीरता से काफी हद तक बच सकते हैं।
कोविशील्ड और कोवैक्सीन कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन जैसे, डेल्टा और डेल्टा प्लस के खिलाफ कितनी असरदार हैं?
सिर्फ कोवैक्सीन और कोविशील्ड ही नहीं, स्पूतनिक-वी लगवा चुके लोगों में अभी तक डेल्टा या डेल्टा प्लस के गंभीर मामले न के बराबर ही हैं। तीनों वैक्सीन इनके खिलाफ भी कारगर हैं। हालांकि इनकी विस्तार से स्टडी करना बाकी है।
वैक्सीन लगवाने के कितने दिनों बाद तक शरीर में इम्यूनिटी रहती है?
कोरोना वायरस को आए अभी डेढ़ साल ही हुआ है और वैक्सीन को तैयार हुए लगभग 6 महीने। अभी तक जिन्हें वैक्सीन लगी है, उनमें ऐंटिबॉडी की मौजूदगी देखी गई है। बीतते वक्त के साथ यह साबित होता जाएगा कि वैक्सीनेशन के बाद शरीर की इम्यूनिटी कितने दिनों तक रहती है।
वैक्सीन लगवाने के बाद इम्यूनिटी कितने दिनों में विकसित होती है?
वैक्सीन लगवाने के चौथे से पांचवें दिन अस्थायी ऐंटिबॉडी (IgM) बननी शुरू हो जाती है। यह अमूमन 15 से 20 दिन तक बनी रहती है। वहीं 15 से 20 दिन के बाद स्थायी ऐंटिबॉडी (IgG) बनने लगती है।
वैक्सीन की पहली डोज ही काफी नहीं?
इस बारे में अब तक विस्तार में स्टडी नहीं हुई है। हालांकि यह देखा गया है कि कुछ लोगों में पहली डोज के बाद ही ऐंटिबॉडी विकसित हो जाती है, वहीं कुछ लोगों में दूसरी डोज के बाद विकसित होती है। इसलिए दोनों डोज लेना जरूरी है।
वैक्सीन 100 फीसदी असरदार क्यों नहीं है?
पूरी दुनिया में आज तक ऐसी वैक्सीन नहीं बनी है जो 100 फीसदी असरदार हो। वैक्सीनेशन के बाद इम्यूनिटी की स्थिति क्या होगी, यह काफी हद तक उस शख्स के शरीर पर भी निर्भर करता है। अगर किसी को गंभीर बीमारी जैसे कि कैंसर हो, किडनी की बीमारी, ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ हो, डायबिटीज के पुराने मरीज हों और शुगर काबू में न हो, एलर्जी के गंभीर मरीज हों तो ऐसे लोगों में वैक्सीनेशन के बाद भी इम्यूनिटी कमजोर होती है। ऐंटिबॉडीज भी कम बनती हैं। स्वस्थ शरीर में वैक्सीन कारगर रहती है।
वैक्सीनेशन के बाद IgG ऐंटिबॉडी टेस्ट कराकर देखना चाहिए कि ऐंटिबॉडीज बनी हैं या नहीं?
वैक्सीन लेने के बाद शरीर में इम्यूनिटी दो तरीके से बनती है:
1. न दिखने वाली: यह सेल्युलर लेवल पर होता है। इस तरह की इम्यूनिटी होने पर वैक्सीनेशन के बाद भी IgG ऐंटिबॉडी टेस्ट नेगेटिव आ सकता है। लेकिन इम्यूनिटी बनाने वाली कोशिकाएं वायरस के आकार-प्रकार को याद कर लेती हैं। इसमें शरीर को इम्यूनिटी देने वाली T-हेल्पर सेल और T-किलर सेल अहम भूमिका निभाती हैं। ये सेल्स वायरस को अपनी मेमरी में स्टोर करती हैं। भविष्य में जब भी वायरस शरीर में पहुंचता है तो ऐंटिबॉडी बनने लगती है और वायरस को खत्म कर देती हैं। इसलिए वैक्सीन लेने के बाद या कोरोना से ठीक होने के बाद भी अगर किसी का ऐंटिबॉडी टेस्ट नेगेटिव हो तो परेशान नहीं होना चाहिए।
2. दिखने वाली: वैक्सीनेशन के बाद IgG ऐंटिबॉडी टेस्ट कराने पर रिजल्ट पॉजिटिव आता है। वैक्सीन लेने के 20 से 25 दिन में टेस्ट करा सकते हैं।
एक डोज ही लग पाए तो...
अगर किसी को वैक्सीन की पहली डोज लग गई है, लेकिन दूसरी डोज नहीं मिल पा रही है तो क्या वह दूसरी डोज को छोड़ सकता है?
कुछ दिन पहले तक यह सवाल वाजिब हो सकता था कि वैक्सीन नहीं मिल पा रही है, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है। फिलहाल वैक्सीन की उपलब्धता में कोई कमी नहीं है। जहां तक दूसरी डोज छोड़ने की बात है तो ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए। कोरोना के खिलाफ पर्याप्त इम्यूनिटी के लिए दूसरी डोज लगवाना भी जरूरी है।
अगर कोई शख्स सरकार की ओर से तय वक्त में वैक्सीन की दूसरी डोज नहीं ले पाता है तो क्या उसे फिर से पहली डोज
लेनी पड़ेगी?
वैक्सीनेशन को हमें प्राथमिकता पर रखना चाहिए। वैक्सीन आने वाले समय में शरीर की सेहत, सामान्य कामकाज और यात्राओं के लिए पासपोर्ट का काम भी करेगी। सरकार ने जिस वैक्सीन के लिए जो समय सीमा निर्धारित किया है, उसी में वैक्सीन लगवानी चाहिए ताकि शरीर को सही इम्यूनिटी मिल सके।
अगर किसी को वैक्सीन की दूसरी डोज के लिए स्लॉट और डेट मिल गई थी। लेकिन वह कोविड-19 से संक्रमित हो गया तो अब दूसरी डोज कब लेनी चाहिए?
इस सवाल में एक बात साफ है कि उस शख्स ने पहली डोज ले ली थी। दूसरी डोज लगवाने से पहले ही उसे कोरोना हो गया। ऐसे में कोरोना से उबरने यानी लक्षण खत्म के बाद (यह अमूमन 15 दिनों का होता है) 3 महीने का अंतराल रखना चाहिए यानी जिस दिन पहला लक्षण आया उसे जोड़कर 105 (90+15) दिनों के बाद।
कोवैक्सीन कम मात्रा में बन रही है। दूसरी डोज के लिए कोवैक्सीन नहीं मिल रही है कोई दूसरी वैक्सीन की डोज लगवा लें?
ऐसा नहीं है। कोवैक्सीन पहले जितनी मात्रा में बन रही थी, उतनी ही मात्रा में अब भी बन रही है। पहले जिस जगह कोवैक्सीन लगवाई थी, वहां पर फिर से कोवैक्सीन मिलने की गुंजाइश है। अभी तक सरकार ने दोनों वैक्सीन दो अलग-अलग कंपनियों की लगवाने के बारे में नहीं कहा है।
कौन न ले वैक्सीन
अगर कोई शख्स कैंसर, डायबिटीज या हाइपरटेंशन से पीड़ित है और दवाई ले रहा है तो क्या उसे वैक्सीन लगवानी चाहिए?
सभी को वैक्सीन लेनी है चाहे वह कैंसर का मरीज हो, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हार्ट, किडनी का या फिर किसी दूसरी बीमारी का। अगर मन में कोई डर हो तो अपने डॉक्टर से जरूर बात कर लें। किसी को एलर्जी की गंभीर समस्या है तो उसे वैक्सीन नहीं लेनी है। एलर्जी की गंभीर परेशानी का मतलब यह है:
एलर्जी की परेशानी शुरू होने पर 1. शरीर पर चकत्ते हो गए हों, 2. बीपी लो हो गया हो और 3. सांस लेने में परेशानी हो। एलर्जी की वजह से
ये तीनों लक्षण मरीज में उभरते हों तो वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए और अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
किसी शख्स में कोरोना के लक्षण हैं तो वैक्सीन लेनी चाहिए?
अगर किसी शख्स में कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं तो पहले उसे कोरोना का इलाज करवाना चाहिए। 15 दिनों तक आइसोलेशन में रहना चाहिए। फिर लक्षण जाने के 3 महीने से अंदर वैक्सीन नहीं लगवानी है। दरअसल, कोरोना होने के बाद शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होती है। ऐसे में वैक्सीनेशन का फायदा भी ज्यादा नहीं होगा।
बच्चों के लिए वैक्सीन कब तक आएगी और यह कब तक उपलब्ध होगी?
अभी तक कोरोना का असर बच्चों पर कम पड़ा है। बहुत ही कम मामलों में बच्चों की स्थिति गंभीर हुई है। फिर भी बच्चों को कोरोना से बचाना है। इसके लिए कई कंपनियां काम कर रही हैं। हमारे देश में जायडस-कैडिला 12 से 18 साल तक के किशोरों के लिए वैक्सीन ला रही है। उम्मीद है कि यह अगस्त तक मुहैया हो जाएगी। वहीं भारत बायोटेक भी बच्चों की वैक्सीन बना रही है। यह 2 से 18 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए है। यह सितंबर तक मिल सकती है।
नेजल वैक्सीन कब तक आ सकती है?
नाक से दी जाने वाली वैक्सीन को नेजल वैक्सीन या नेजल स्प्रे वैक्सीन भी कहते हैं। WHO के मुताबिक पूरी दुनिया में 7 कंपनियां नेजल वैक्सीन पर काम कर रही है। भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन अक्टूबर तक आ सकती है। इसके अलावा कोविशील्ड भी नेजल स्प्रे ला सकती है।
असली-नकली वैक्सीन की पहचान क्या है जो वैक्सीन लगाई जा रही है वह असली है या नकली, यह कैसे पता लगाएं?
रजिस्टर्ड प्राइवेट अस्पतालों, सरकारी अस्पतालों और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान जो वैक्सीनेशन कर रहे हैं, उसमें संदेह की गुंजाइश न के बराबर है। लेकिन इन जगहों पर भी वैक्सीनेशन के तरीकों पर ध्यान दिया जा सकता है। मन में शंका हो तो उसे दूर कर लेना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि वैक्सीनेशन में फ्रॉड के मामले सिर्फ भारत में ही सामने आए हैं। इस तरह की घटनाएं अमेरिका, चीन, पोलैंड और मैक्सिको में भी हुई हैं। ये घटनाएं कैंप लगाकर दी जाने वाली वैक्सीन के मामले में ज्यादा हुई हैं।
अगर किसी कैंप में यह कहा जाता है कि आप अभी अपना मोबाइल नंबर और आधार नंबर दे दें, बाद में वैक्सीनेशन का मेसेज आएगा तो अलर्ट हो जाएं। अगर बाद में किसी का नाम या उनसे जुड़ी ऑनलाइन अपलोड करने में गलती हुई तो सर्टिफिकेट भी गलत आएगा। दरअसल कोरोना के खिलाफ जंग में वैक्सीनेशन काफी अहम है। इसके लिए वक्त जरूर निकालना चाहिए। बेहतर होगा कि रजिस्ट्रेशन करवाकर स्लॉट लें और किसी अच्छे सरकारी या प्राइवेट अस्पताल या सरकारी वैक्सीनेशन सेंटर पर जाकर ही वैक्सीनेशन करवाएं। वायल देखकर भी असली-नकली वैक्सीन की पहचान की जा सकती है।
वैक्सीन की वायल (शीशी) पुरानी दिखे या ऐसा लगे कि इसे दोबारा पैक की गई है तो सचेत हो जाएं।
उस पर मैन्युफैक्चरिंग डेट, एक्सपायरी डेट आदि सही तरीके से नहीं दिख रही हो।
वैक्सीनेशन के दौरान इन बातों का भी रखें ध्यान
जहां वैक्सीन लेने गए हैं, वहां पर अगर हेल्थ वर्कर ने वायल से वैक्सीन निकालकर पहले ही सिरिंज में भर दी हो और आपके मन में कोई संदेह हो तो आप उन्हें सामने में भरने के लिए कह सकते हैं।
जो मेडिकल स्टाफ वैक्सीन लगा रहा है, उसकी यह जिम्मेदारी है कि वह अपना नाम और जिस कंपनी की वैक्सीन लगाई जा रही है उसकी जानकारी दे।
मोबाइल पर जब मेसेज से वैक्सीनेशन की जानकारी आती है तो मेडिकल स्टाफ ने जो जानकारी दी है, उससे मिलान कर लें। अगर अंतर दिख रहा है तो वहां के स्टाफ से जरूर बात करें।
कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी और कोविशील्ड वैक्सीन को रखने के लिए 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। वहीं फाइजर की वैक्सीन को माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखना होता है। ऐसे में अगर किसी हेल्थ वर्कर ने 2 से 3 मिनट या इससे ज्यादा समय से पहले ही शीशी को बाहर निकाल लिया और सिरिंज में डालकर रख दिया है तो वैक्सीन की कोल्ड चेन टूट जाएगी और असर कम हो सकता है।
वैक्सीनेशन वैक्सीनेशन के 5 मिनट के अंदर ही मेसेज से यह कंफर्म कर दिया जाता है कि उस शख्स को किस कंपनी की वैक्सीन लगी है। उस पर उसका नाम भी दर्ज होता है।
कुछ मामलों में मेसेज देर से मिल सकता है, लेकिन यह भी पता करें कि जिस स्लॉट में हमें वैक्सीन लगी है, उस स्लॉट के बाकी लोगों के मेसेज कब आए। अगर उस स्लॉट में किसी का मेसेज नहीं आया है तो वहां के स्टाफ से जरूर बात करनी चाहिए। यह काम तब करें जब वैक्सीन लगाने के बाद आपको आनिवार्य रूप से आधा घंटा इंतजार करना होता है।
वैक्सीन लगने के बाद 30 से 40 मिनट तक इंतजार करने के लिए कहा जाता है कि वैक्सीन का कोई गलत असर हो तो उनका इलाज किया जा सके। आमतौर पर बीपी लो होने की परेशानी हो सकती है।
फ्रॉड से बचने के लिए ऐसे कदम उठाएं
कैंप लगाकर वैक्सीनेशन अच्छा उपाय है लेकिन ऐसा करने के दौरान कुछ राज्यों में फ्रॉड के मामले सामने आए हैं।
किसी खास जिले में कैंप लगाकर वैक्सीनेशन किया जा रहा हो तो पूरी जानकारी प्रशासन के पास भी जरूर होनी चाहिए। इनमें CMO/DM शामिल हों ताकि किसी को कैंप पर शक हो तो तत्काल ही इन अधिकारियों से पूछकर इसकी तसल्ली कर ले।
CMO/DM ऐसे कैंप को मंजूरी देने के बाद अपनी सरकारी वेबसाइट पर पूरी जानकारी मुहैया कराएं।
कैंप लगाने के लिए रजिस्टर्ड अस्पताल या सरकार से मान्यता प्राप्त संस्था को ही मंजूरी मिले।
उसके पास अस्पताल का एक ऑफिशल लेटर भी जरूर होना चाहिए।कैंप पर एक डॉक्टर जरूर हो। हर डॉक्टर का एक रजिस्ट्रेशन नंबर होता है। उस नंबर को वहां लिखा जाना चाहिए। इसके अलावा वहां पर डॉक्टर और बाकी स्टाफ के नाम और फोटो के साथ लगे हों।
अगर कोई कैंप किसी रजिस्टर्ड अस्पताल के नाम से लगा हो तो वहां का फोन नंबर जरूर हो। उस नंबर को इंटरनेट पर और उसकी वेबसाइट पर सर्च करके भी चेक करना चाहिए कि नंबर फर्जी है या असली।
अगर वैक्सीन का उत्पादन करने वाली हर कंपनी अपने हर वायल पर बार कोड लगा दे तो उसे मोबाइल से स्कैन करके उस वायल के बारे में हर तरह जानकारी हासिल की जा सकती है कि कब उत्पादन हुआ, एक्सपायरी डेट क्या है आदि। इससे किसी भी तरह के फ्रॉड से बचा जा सकता है।
वैक्सीन सर्टिफिकेट कहां मिलता है और उसका फायदा
रजिस्ट्रेशन के सेंटर पर जाकर वैक्सीन लगवा रहे हैं तो सर्टिफिकेट कैसे मिलेगा?
अगर सीधे सेंटर पर जाकर वैक्सीन लगवा रहे हैं तो वहां भी आधार कार्ड और मोबाइल नंबर देना होता है। वैक्सीन लगने के बाद मोबाइल नंबर पर मेसेज आता है और सर्टिफिकेट डाउनलोड करने के लिए लिंक भी। उस लिंक पर क्लिक करने के बाद सर्टिफिकेट मिल जाता है। इसे मोबाइल ऐप Digilocker में भी रख सकते हैं और प्रिंट भी निकालकर रख सकते हैं।
जो सर्टिफिकेट मिला है वह असली है, इस बात का कैसे पता लगाएं?
सर्टिफिकेट सरकारी पोर्टल से हासिल किया गया है तो वह असली ही है।
वैक्सीन लगने के बाद अगर कोई शख्स बीमार हो जाता है या मर जाता है तो क्या कंपनी या सरकार कोई मुआवजा देगी?
हमारे देश में ऐसे मामले बहुत ही कम आए हैं। चूंकि अभी वैक्सीन को इमरजेंसी यूज का ही अधिकार मिला है, इसलिए मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है। DGCI ने इसके लिए किसी भी तरह का जुर्माना नहीं रखा है। जब वैक्सीन का कमर्शल यूज शुरू होगा तब ऐसे मामलों के लिए मुआवजे की बात भी होगी।
क्या वैक्सीन की दोनों डोज़ लगवाने के बाद मास्क हटा सकते हैं?
अभी ऐसा नहीं करना चाहिए। जब तक पूरे देश में सबका वैक्सीनेशन न हो जाए और सरकार इसके लिए घोषणा न कर दे, न मास्क हटेगा और न ही सोशल डिस्टेंसिंग खत्म होगी। इसलिए अभी कई महीनों तक मास्क को लगाना पड़ेगा।
अगर किसी को अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीन की एक-एक डोज लग जाए तो क्या होगा? कुछ देश एक्सपेरिमेंट के तौर पर अलग-अलग वैक्सीन लगा रहे हैं। इसका क्या नतीजा रहा?
इस तरह के प्रयोग भी हो रहे हैं। अपने देश में भी गलती से ही ऐसे मामले सामने आए, लेकिन ऐसे लोगों पर अभी तक कोई खास बुरा असर देखने को नहीं मिला है। सीधे कहें तो आंकड़े आने में वक्त लगेगा। इनका नतीजा बाद में क्या होगा, इस बारे में अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसलिए जिस कंपनी की पहली डोज की वैक्सीन लगी है, उसी डोज की दूसरी डोज भी लगवानी चाहिए।
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प्रो.(डॉ.) एन. के. अरोड़ा चेयरपर्सन, ORG, नैशनल टास्क फोर्स कोविड-19, ICMR
प्रो.(डॉ.) जी. सी. खिलनानी, चेयरमैन, इंस्टिट्यूट ऑफ पल्मोनरी, PSRI
प्रो.(डॉ.) संजय राय कम्यूनिटी मेडिसिन और इंचार्ज कोवैक्सीन ट्रायल, AIIMS
प्रो.(डॉ.) राजेश मल्होत्रा एचओडी ऑर्थोपीडिक्स, इंचार्ज कोविड ट्रॉमा सेंटर, AIIMS
डॉ. अंशुमान कुमार, डायरेक्टर, धर्मशिला हॉस्पिटल
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