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35 साल से लेकर 45 तक, ये हैं मोदी की नई टीम के सबसे युवा चेहरे
Anil Kumar | Navbharat Times | Updated: 08 Jul 2021, 07:34:08 AM
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प्रधानमंत्री के रूप में मई 2019 में 57 मंत्रियों के साथ अपना दूसरा कार्यकाल आरंभ करने के बाद मोदी ने पहली बार केंद्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल व विस्तार किया है। पीएम मोदी ने कहा कि सभी मिलकर लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करेंगे तथा मजबूत और समृद्ध भारत का निर्माण करेंगे।
 
35 साल से लेकर 45 तक, ये हैं मोदी की नई टीम के सबसे युवा चेहरे
नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी टीम का विस्तार कर लिया है। उन्होंने मंत्रिपरिषद में कई नए और युवा चेहरों को जगह दी है। मंत्रियों की औसत उम्र भी घटकर 58 वर्ष हो गई है। इनमें 45 साल या उससे कम उम्र के 6 सबसे युवा मंत्री बने हैं। इनकी उम्र 35 साल से लेकर 45 के बीच है। आइए इनके बारे में जानते हैं।
​निसिथ प्रामाणिक, उम्र 35 साल
उत्तर बंगाल में काफी प्रभावी माने जाने वाले कूचबिहार से भाजपा सांसद निसिथ प्रामाणिक सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर हमलावर रुख अपनाने वाले भाजपा के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक हैं। साल 2019 में पहली बार सांसद बने प्रामाणिक को भाजपा ने कई मौकों पर काफी महत्व दिया, जिसमें पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद कथित हिंसा को लेकर टीएमसी के खिलाफ भाजपा के मोर्चे की अगुवाई करना शामिल है। साल 2018 के पंचायत चुनावों में उम्मीदवारों के चयन को लेकर प्रामाणिक और टीएमसी नेतृत्व के बीच ठन गई थी, जिसके बाद, साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा के टिकट पर उन्होंने कूचबिहार से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। प्रामाणिक को कूचबिहार जिले में कद्दावर व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।
​शांतनु ठाकुर, उम्र 38 साल
पारिवारिक कलह के कारण राजनीति में कदम करने वाले शांतनु ठाकुर पश्चिम बंगाल के राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मतुआ समुदाय के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं। शांतनु ठाकुर (38) बोनगांव संसदीय सीट से लोकसभा सदस्य हैं। उन्होंने बुधवार शाम केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ ली। वह प्रभावशाली सामाजिक-धार्मिक संप्रदाय ठाकुरबाड़ी के उत्तराधिकारियों में से एक हैं। शांतनु तृणमूल कांग्रेस के पूर्व मंत्री मंजुल कृष्ण ठाकुर के सबसे बड़े बेटे हैं। उन्होंने ठाकुरनगर में ठाकुरबाड़ी द्वारा संचालित विभिन्न सामाजिक सेवाओं के जरिए मतुआ समुदाय के विकास के लिए काम किया और वह कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रहे। मतुआ समुदाय अन्य अल्पसंख्यकों की तरह सामूहिक रूप से वोट करने की प्रवृत्ति के कारण ऐसा वोट बैंक है, जिसे 90 के दशक से राजनीतिक दल लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने 2011 में मंजुल ठाकुर को उम्मीदवार के रूप में नामित किया था और उन्हें राज्य के मंत्री के रूप में अपनी मंत्रिपरिषद में शामिल किया था।
मतुआ समुदाय की एक सामाजिक-धार्मिक बैठक को फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया था, जिनके बाद शांतनु ने सक्रिय राजनीति में शामिल होने का फैसला किया और एक महीने के भीतर उन्हें बोनगांव लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया। शांतनु से इस सीट से अपनी ताई को हराया और राज्य में भाजपा के अहम नेताओं में शामिल हो गए। हाल में विधानसभा चुनावों में मतुआ समुदाय ने पहले की तरह किसी एक पार्टी को वोट नहीं दिया और सत्तारूढ़ तृणमूल और भाजपा के बीच उसके वोट विभाजित हो गए। केंद्रीय मंत्रालय में शांतनु को शामिल करने को मतुआ समुदाय को 2024 के आम चुनावों से पहले लुभाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
​अनुप्रिया सिंह पटेल, उम्र 40 साल
भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल करीब दो साल के अंतराल के बाद केंद्रीय मंत्रिपरिषद में वापस आ गई हैं और उन्हें राज्य मंत्री के रूप में जगह मिली है। वह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की समस्याओं को हल करने के लिए एक अलग मंत्रालय बनाए जाने की मांग उठाती रही हैं। अनुप्रिया मिर्जापुर से सांसद हैं और वह कुर्मी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली पहली सरकार में वह राज्य मंत्री थीं। उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले मोदी की टीम में उनका शामिल होना महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में ओबीसी समुदाय के मतदाताओं की बड़ी संख्या है।
​भारती प्रवीण पवार, उम्र 42 साल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में महाराष्ट्र से एक महिला सांसद भारती प्रवीण पवार को भी शामिल किया गया है। भारती पवार पहली बार लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंची हैं। इसके पहले वे नासिक जिला परिषद में कुपोषण और पेयजल की समस्या पर प्रभावी रूप से काम कर चुकी हैं। सार्वजनिक जीवन में आने के पहले वे एक डॉक्टर थीं, उनके पास एमबीबीएस की डिग्री है। नासिक जिले में 8 बार जीत कर आने वाले विधायक ए .टी. पवार की बहू के रूप में भी भारती को पूरे उत्तर महाराष्ट्र में जाना जाता है। उन्होंने साल 2019 का लोकसभा चुनाव डिंडोरी क्षेत्र से जीता था। पूर्व मंत्री सुभाष भामरे के बाद किसी को भी उत्तर महाराष्ट्र से मंत्री पद नहीं मिला था। इस बात का ध्यान रखते हुए और आदिवासी समाज को महत्व देते हुए डॉ भारती पवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है।
एल मुरुगन, 44 साल
तमिलनाडु में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा दो दशक बाद चार सीट जीतने में सफल रही और राज्य के पार्टी प्रमुख एल मुरुगन को इसी के पुरस्कार स्वरूप केंद्रीय मंत्रिपरिषद में स्थान प्राप्त हुआ। मुरुगन जब मार्च 2020 में भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष बने थे तब उनके पास विधानसभा चुनाव की तैयारी करने के लिए मुश्किल से एक साल का समय था। राज्य में द्रविड़ विचारधारा की गहरी जड़ों के चलते हिन्दुत्व को आगे रखने वाली पार्टी का नेतृत्व करना मुरुगन के लिए कोई आसान काम नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत जरूरत पड़ने पर ‘सॉफ्ट द्रविड़ विचारधारा’ को अपनाने में झिझक नहीं दिखाई और इसके साथ ही अपनी पार्टी के राष्ट्रवाद को भी बरकरार रखा।
चुनाव में वह खुद भी बहुत कम मतों के अंतर से हारे थे। बीस साल से अधिक समय से जमीनी कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे दलित नेता मुरुगन भाजपा में शामिल होने से पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और राष्ट्रीय सवयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े थे। उन्हें उनके संगठनात्मक कौशल के लिए भी जाना जाता है। वह धारापुरम (सुरक्षित) निर्वाचन क्षेत्र से 1,393 मतों के अंतर से विधानसभा चुनाव हार गए थे। द्रमुक सहयोगी के रूप में भाजपा 2001 के विधानसभा चुनाव में चार सीट जीतने में कामयाब रही थी। इस बार अन्नाद्रमुक सहयोगी के रूप में भाजपा ने जीत की वही कहानी दोहराई और चार सीटों पर जीत दर्ज की। तमिलनाडु के नामक्कल जिला निवासी 44 वर्षीय अधिवक्ता मुरुगन प्रदेश भाजपा प्रमुख बनने से पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष थे। उन्हें अब भाजपा शासित किसी राज्य से राज्यसभा के लिए निर्वाचित किए जाने की उम्मीद है। कानून में स्नातकोत्तर मुरुगन ने मानवाधिकार कानूनों में डॉक्टरेट की है।
​जॉन बारला, उम्र 45 साल
उत्तरी बंगाल में भाजपा की पैठ बनाने वाले प्रमुख नेताओं में शुमार आदिवासी नेता जॉन बारला को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। हाल में उन्होंने उत्तर बंगाल को अलग कर केंद्रशासित प्रदेश बनाने की मांग की थी। लगभग दो दशक पहले तराई-दूआर्स क्षेत्र में चाय-बागान कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले 45 वर्षीय बारला ने एक आदिवासी नेता होने से नई दिल्ली में सत्ता के गलियारों तक पहुंचने के लिए एक लंबा सफर तय किया है। आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखने वाले बारला का क्षेत्र के चाय बागान श्रमिकों के बीच मजबूत समर्थन आधार है। उनके संगठनात्मक कौशल ने सबसे पहले माकपा के स्थानीय नेतृत्व का ध्यान आकर्षित किया। हालांकि वह किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े लेकिन उन्होंने और उनके समर्थकों ने कई मौकों पर तत्कालीन सत्तारूढ़ वाम मोर्चा को अपना समर्थन दिया था।
उन्होंने 2007 में अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद (एबीएवीपी) के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीतिक में अपना करियर शुरू किया। कुछ समय के लिए, उन्होंने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) का हिस्सा बनने का विचार किया, जो उस समय अलग गोरखालैंड राज्य के लिये संघर्ष कर रहा था। उस अवधि के दौरान, उन्होंने सबसे पहले तराई और दूआर्स क्षेत्र में आदिवासी और अन्य पिछड़े समुदायों के लिए एक अलग राज्य की मांग रखी। हालांकि, जैसे ही बंगाल में बदलाव की हवा चली, बारला ने ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी का समर्थन करने का फैसला किया। लेकिन बाद में, 2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले, उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया, जिससे उत्तर बंगाल क्षेत्र में भगवा पार्टी को बहुत अधिक लाभ हुआ।
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