भगवान शिव जी को श्रावण मास अतिप्रिय है। 25 जुलाई से सावन का आरम्भ हो रहा है। सावन के दिनों में कई शिव भक्त कांवड़ लेकर गंगाजल लेने जाते हैं तथा लम्बा सफर तय करके उस जल से महादेव का जलाभिषेक करते हैं। कांवड़ की परम्परा सदियों से चली आ रही है। हालांकि इस वर्ष कांवड़ यात्रा को लेकर संशय के हालात बने हुए है।
वही उत्तराखंड तथा ओडिशा में कांवड़ यात्रा पर प्रतिबंध लग चूका है, मगर उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में सशर्त इसकी मंजूरी दे दी है। 25 जुलाई से उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा प्रस्तावित है। हालांकि देश में कोरोना संकट का कहर देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करके ऐसा करने का कारण पूछा है। कल 16 जुलाई को इस केस में सुनवाई हो गई है। यहां जानिए सदियों से चली आ रही इस कांवड़ यात्रा का इतिहास...
ये है कांवड़ का इतिहास:-
कांवड़ यात्रा का इतिहास भगवान परशुराम के वक़्त से जुड़ा हुआ है। परशुराम महादेव जी के परम भक्त थे। प्रथा है कि एक बार वे कांवड़ लेकर उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के पास ‘पुरा महादेव’ गए थे। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल लेकर महादेव का जलाभिषेक किया था। उस वक़्त श्रावण मास चल रहा था। तब से श्रावण के माह में कांवड़ यात्रा निकालने की प्रथा आरम्भ हो गई और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित कई प्रदेशों में शिव भक्त बड़े स्तर पर प्रत्येक वर्ष सावन के दिनों में कांवड़ यात्रा निकालते हैं।