नयी दिल्ली, 3 जुलाई (एजेंसी)
भारत के साथ राफेल विमान सौदे में कथित ‘भ्रष्टाचार और लाभ पहुंचाने' के मामले में फ्रांस के एक न्यायाधीश को न्यायिक जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई है। फ्रांस की समाचार वेबसाइट ‘मीडिया पार्ट' ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है।
‘मीडिया पार्ट' के अनुसार, दो सरकारों के बीच हुए इस सौदे को लेकर जांच गत 14 जून को औपचारिक रूप से शुरू हुई। उसने कहा कि फ्रांस के राष्ट्रीय वित्तीय अभियोजक कार्यालय (पीएनएफ) की ओर से जांच की पहल की गई है। सौदे में कथित अनियमितताओं को लेकर अप्रैल में ‘मीडिया पार्ट' की एक रिपोर्ट सामने आने और फ्रांसीसी एनजीओ ‘शेरपा' की ओर से शिकायत दर्ज कराने के बाद पीएनएफ की ओर से जांच का आदेश दिया गया है।
‘मीडिया पार्ट' से संबंधित पत्रकार यान फिलिपीन ने कहा कि 2019 में दायर की गई पहली शिकायत को पूर्व पीएनएफ प्रमुख की ओर से दबा दिया गया था। अप्रैल में इस वेबसाइट ने फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी की जांच का हवाला देते हुए दावा किया था कि राफेल विमान बनाने वाली कंपनी दसाल्ट एविशन ने एक भारतीय बिचौलिए को 10 लाख यूरो दिए थे। दसाल्ट एविएशन ने इस आरोप को खारिज कर दिया था और कहा था कि अनुबंध तय करने में कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।
भाजपा की अगुवाई वाली राजग सरकार ने इस विमान सौदे पर 23 सितंबर, 2016 को हस्ताक्षर किये थे। कांग्रेस का आरोप है कि इस सौदे में बड़े पैमाने पर अनियमितता हुई है और 526 करोड़ रुपये के एक विमान की कीमत 1670 करोड़ रुपये अदा की गई। भाजपा और सरकार की तरफ से आरोपों को कई मौकों पर खारिज किया गया और यह कहा गया कि उच्चतम न्यायालय इस मामले में क्लीन चिट दे चुका है।
क्या प्रधानमंत्री जांच कराएंगे : कांग्रेस
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ‘फ्रांस में जो ताजे खुलासे हुए हैं, उनसे साबित होता है कि राफेल सौदे में भ्रष्टाचार हुआ। कांग्रेस और राहुल गांधी की बात सही साबित हुई। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद और मौजूदा राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों की भी जांच होगी। राफेल निर्माता कंपनी दसॉल्ट की साझेदार रिलायंस की कंपनी भी जांच के घेरे में है। अब भ्रष्टाचार सामने है, घोटाला सामने है। क्या प्रधानमंत्री जी सामने आकर राफेल घोटाले की जेपीसी जांच कराएंगे?'
राहुल गांधी बने मोहरा : भाजपा
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, 'कांग्रेस झूठ और अफवाहें फैलाने का दूसरा नाम बन गई है। राहुल गांधी जिस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं, यह कहना अतिश्ायोक्ति नहीं होगी कि प्रतिस्पर्धी कंपनियां उन्हें मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। वह इस मसले पर शुरू से झूठ बोल रहे हैं। संभवत: वह एक एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं या गांधी परिवार का कोई सदस्य प्रतिस्पर्धी कंपनी के लिए काम कर रहा है।
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दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।
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