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पिछले साल 15-16 जून की रात पूर्वी लद्दाख के गलवां में भारतीय सेना और चीन की पिपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बीच हुई हिंसक झड़प ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य तैनाती के पूरे आयाम को बदल दिया। गलवां का असर ऐसा हुआ कि एक साल बाद दोनों तरफ की सेना दुर्गम उंचाई और विकट परिस्थिति में पूरी तैयारी के साथ तैनात रहने को मजबूर है। इस घटना ने सिर्फ लद्दाख सेक्टर की ही नहीं बल्कि सिक्किम और अरुणाचल सेक्टर की फिजां भी बदल दी।
मामले से जुड़े सेना के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, गलवां के पहले ऐसी तैनाती नहीं होती थी और दोनों सेना आपसी रजामंदी से गश्त कर अपने दावे वाले इलाके को महफूज रखते थे। इस दौरान ज्यादातर आपसी मतभेद स्थानीय स्तर पर ही सुलझा लिया जाता था। लेकिन पिछले साल गलवां के साथ दोनों देशों के बीच 1993 में हुए करार एक-एक कर टूट गए और आपसी विश्वास नीचले स्तर पर पहुंच गया है।
यही वजह है कि कई जगहों पर दोनों तरफ की सेना एक दूसरे की मारक दूरी पर तैनात हैं। गौरतलब है कि पिछले साथ 9 अप्रैल को भारत और चीनी सेना के बीच शुरु हुई तनातनी के बाद लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत शुरु हुई। इसी बीच गलवां में दोनों सेनाएं भीड़ गईं। जिसमें भारतीय सेना के एक अधिकारी समेत बीच जवान शहीद हुए जबकि चीनी सेना में भी पैंतीस से उपर की मौत का अनुमान है। चीन ने महीनों बाद अपने सिर्फ चार सैनिकों के मारे जाने की आधिकारिक पुष्टि की थी। राहत की बाद यह रही कि दोनों तरफ से एक भी गोली नहीं चली। अधिकारी के मुताबिक, अगर गोली चली होती तो वह तनाव युद्ध में तब्दील हो सकती थी।
सेना के एक पूर्व महानिदेशक मिलिट्री ऑपरेशन (डीजीएमओ) के मुताबिक, गलवां हमेशा से तनाव का विषय जरूर रहा है, लेकिन वहां कभी तैनाती नहीं होती थी। लेकिन आज एक साल बाद वहां आकाश एयर डिफेंस सिस्टम से लेकर टैंक तक की तैनाती है। एलएसी पर शांति स्थापित रखने के हुए सभी समझौते लगभग टूटे हुए हैं। एक दूसरे पर भरोसा नगण्य है।
गलवां से साथ पूरे एलएससी पर करीब 50,000 सेनाएं, मिग, मिराज और रफेल जैसे विमान के साथ तैनात हैं। साथ ही टैंक रेजिमेंट, ड्रोन, यूएवी की भारी तैनाती है। माउंटेन स्ट्राईक की दो कंपनियां सभी सेक्टरों में पूरी तरह सक्रिय हैं। दूसरी तरफ सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर कई राउंड की बातचीत के बावजूद चीन गोगरा, हॉट स्प्रींग और डेपसांग जैसे तनातनी वाले इलाके से वापसी को गंभीरता से नहीं ले रहा। अबतक पैंगांग झील के दोनों किनारें से ही सेनाएं पीछे हटी हैं।
विस्तार
पिछले साल 15-16 जून की रात पूर्वी लद्दाख के गलवां में भारतीय सेना और चीन की पिपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बीच हुई हिंसक झड़प ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य तैनाती के पूरे आयाम को बदल दिया। गलवां का असर ऐसा हुआ कि एक साल बाद दोनों तरफ की सेना दुर्गम उंचाई और विकट परिस्थिति में पूरी तैयारी के साथ तैनात रहने को मजबूर है। इस घटना ने सिर्फ लद्दाख सेक्टर की ही नहीं बल्कि सिक्किम और अरुणाचल सेक्टर की फिजां भी बदल दी।
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मामले से जुड़े सेना के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, गलवां के पहले ऐसी तैनाती नहीं होती थी और दोनों सेना आपसी रजामंदी से गश्त कर अपने दावे वाले इलाके को महफूज रखते थे। इस दौरान ज्यादातर आपसी मतभेद स्थानीय स्तर पर ही सुलझा लिया जाता था। लेकिन पिछले साल गलवां के साथ दोनों देशों के बीच 1993 में हुए करार एक-एक कर टूट गए और आपसी विश्वास नीचले स्तर पर पहुंच गया है।
यही वजह है कि कई जगहों पर दोनों तरफ की सेना एक दूसरे की मारक दूरी पर तैनात हैं। गौरतलब है कि पिछले साथ 9 अप्रैल को भारत और चीनी सेना के बीच शुरु हुई तनातनी के बाद लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत शुरु हुई। इसी बीच गलवां में दोनों सेनाएं भीड़ गईं। जिसमें भारतीय सेना के एक अधिकारी समेत बीच जवान शहीद हुए जबकि चीनी सेना में भी पैंतीस से उपर की मौत का अनुमान है। चीन ने महीनों बाद अपने सिर्फ चार सैनिकों के मारे जाने की आधिकारिक पुष्टि की थी। राहत की बाद यह रही कि दोनों तरफ से एक भी गोली नहीं चली। अधिकारी के मुताबिक, अगर गोली चली होती तो वह तनाव युद्ध में तब्दील हो सकती थी।
सेना के एक पूर्व महानिदेशक मिलिट्री ऑपरेशन (डीजीएमओ) के मुताबिक, गलवां हमेशा से तनाव का विषय जरूर रहा है, लेकिन वहां कभी तैनाती नहीं होती थी। लेकिन आज एक साल बाद वहां आकाश एयर डिफेंस सिस्टम से लेकर टैंक तक की तैनाती है। एलएसी पर शांति स्थापित रखने के हुए सभी समझौते लगभग टूटे हुए हैं। एक दूसरे पर भरोसा नगण्य है।
गलवां से साथ पूरे एलएससी पर करीब 50,000 सेनाएं, मिग, मिराज और रफेल जैसे विमान के साथ तैनात हैं। साथ ही टैंक रेजिमेंट, ड्रोन, यूएवी की भारी तैनाती है। माउंटेन स्ट्राईक की दो कंपनियां सभी सेक्टरों में पूरी तरह सक्रिय हैं। दूसरी तरफ सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर कई राउंड की बातचीत के बावजूद चीन गोगरा, हॉट स्प्रींग और डेपसांग जैसे तनातनी वाले इलाके से वापसी को गंभीरता से नहीं ले रहा। अबतक पैंगांग झील के दोनों किनारें से ही सेनाएं पीछे हटी हैं।
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