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कोविड और तख्तापलट: दोहरे संकट की चपेट में म्यांमार
म्यांमार में दुनिया की सबसे कमजोर स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली है. कोविड और एक सैन्य तख्तापलट के संयुक्त प्रभाव ने इसे इस हद तक गंभीर बना दिया है कि यह लगभग नष्ट होने के कगार पर है.
कोरोनोवायरस की तीसरी लहर से करीब चार महीने पहले जब म्यांमार में रोजाना सैकड़ों लोगों की मौत हो रही थी, सो मो नौंग (बदला हुआ नाम) नाम के एक व्यवसायी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि उसने और उसके परिवार ने एक सार्वजनिक टीकाकरण केंद्र में टीका लगवाया था.
व्यवसायी ने अपने साथियों से भी टीका लगवाने की अपील की थी. लेकिन इस संदेश का असर नौंग पर उल्टा पड़ा और उन्हें अपनी पोस्ट को छिपाने पर मजबूर कर दिया.
उनके आलोचकों का मानना ​​​​है कि टीका लगवाना कुछ मायनों में फरवरी में सैन्य तख्तापलट को वैध बनाता है, जिसके कारण आंग सान सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) पार्टी के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंका गया था.
सो मो नौंग खुद एनएलडी के समर्थक हैं और उन्होंने इन वजहों को भी स्पष्ट किया था कि वो टीका लगवाने के लिए क्यों राजी हुए. वह कहते हैं, "एनएलडी सरकार ने म्यांमार के लोगों के लिए टीकों का अधिग्रहण किया था. यह हर एक नागरिक का अधिकार है. टीकाकरण एक अलग मुद्दा है और इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है.” 
सो मो नौंग इस मामले में व्यावहारिक हो सकते हैं लेकिन उनके विचार से म्यांमार में बहुत कम लोग ही सहमति रखते हैं. 
टीकाकरण न कराकर सेना को ललकारना
1 फरवरी को तख्तापलट के बाद से पूरे म्यांमार में कई लोग सेना के विरोध के तौर पर टीका लेने से इनकार कर रहे हैं. यांगून की रहने वाली ह्नीन यी ऑन्ग कहती हैं, "मेरी मां ने बुढ़ापे के बावजूद टीका नहीं लगवाया, शायद इसलिए कि उनके बेटे यानी मेरे भाई ने कहा है कि 'क्रांति अभी खत्म नहीं हुई है.”
उनका भाई एक सार्वजनिक अस्पताल में डॉक्टर है और पिछले कई महीनों से सविनय अवज्ञा आंदोलन (सीडीएम) में भाग ले रहा है.
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म्यांमार की हिंसा से भागे नागरिक बने भारत की परेशानी
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म्यांमार की हिंसा से भागे नागरिक बने भारत की परेशानी
कुछ अन्य लोगों ने लोकतंत्र समर्थक समूहों और बहिष्कार के डर से टीकाकरण नहीं कराने का विकल्प चुना है. जिन लोगों ने टीका लगवाया है वे अक्सर सोशल मीडिया आोलचनाओं और विरोध का शिकार हो जाते हैं जिसमें उनका नाम लेकर उनके प्रति शर्मिंदगी जताई जाती है और मजाक उड़ाया जाता है.
स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में कई लोग काम करना बंद करने और सेना के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने वाले पहले लोगों में से थे. सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य कर्मचारियों ने भी ऐसा ही किया और प्रशासन को एक बड़ा झटका दिया.
इस वजह से सरकार को काम पर लौटने के लिए सरकारी कर्मचारियों पर दबाव बढ़ाना पड़ा जबकि सेना ने असंतुष्ट स्वास्थ्य कर्मियों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया. इस वजह से कई लोग सेना के डर से छिप गए.
सीडीएम से जुड़े कुछ डॉक्टरों ने शुरू में निजी प्रतिष्ठानों में मरीजों का इलाज किया लेकिन अपने निजी क्लीनिकों के पास सैनिकों और पुलिस की तैनाती को देखकर रुक गए.
दीन-हीन व्यवस्था का कोविड से सामना
इसका मतलब यह था कि जब कोविड की तीसरी लहर आई, तो म्यांमार की उस सेना को स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के साथ संकट से निपटने के लिए छोड़ दिया गया था जिस पर व्यापक रूप से नफरत फैलाने के आरोप थे. स्वास्थ्य सेवाएं न केवल आवश्यक दवाओं और उपकरणों के मामले में, बल्कि चिकित्सा कर्मचारियों के मामले में भी बड़ी कमी का सामना कर रही थीं.
तस्वीरों मेंः म्यांमार में दमन का कुचक्र
म्यांमार में दमन का कुचक्र
हिंसा का दौर
तख्तापलट के बाद से ही लोग लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं और देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन आयोजित कर रहे हैं. सेना और पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्ती से पेश आ रहे हैं, जिसकी वजह से देश में हिंसा का दौर थम ही नहीं रहा है. तीन मार्च को सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 लोग मारे गए.
म्यांमार में दमन का कुचक्र
बढ़ते जनाजे
इन 38 लोगों को मिला कर अभी तक कम से कम 50 प्रदर्शनकारियों की जान जा चुकी है. यह तस्वीर 19 साल की क्याल सिन के शव की अंतिम यात्रा की है. वो तीन मार्च को मैंडले में सेना के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं जब सुरक्षाबलों ने गोलियां चला दीं. उन्हें सिर में गोली लगी और उनकी मौत हो गई.
म्यांमार में दमन का कुचक्र
बल का प्रयोग
प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए पुलिस ने पहले आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया. सुरक्षाबल लगातार आंसू गैस, रबड़ की गोलियां, ध्वनि बम जैसे हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है. प्रदर्शन शांत ना होने पर गोली चला दी जा रही है.
म्यांमार में दमन का कुचक्र
बचने के तरीके
प्रदर्शनकारियों को अपनी सुरक्षा का इंतजाम भी करना पड़ रहा है. आंखों को ढकने के लिए बड़े बड़े चश्मे, हेलमेट और ढालों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
म्यांमार में दमन का कुचक्र
नाकामयाब कोशिशें
प्रदर्शनकारी भी खुद को बचाने के लिए धुंआ छोड़ रहे हैं लेकिन धुंआ और किसी तरह से बनाए हुए बैरिकेड भी उन्हें पुलिस की गोलियों से बचा नहीं पा रहे हैं.
म्यांमार में दमन का कुचक्र
मीडिया पर हमले
गिरफ्तारियों का सिलसिला भी लगातार चल रहा है और प्रदर्शनकारियों के अलावा पुलिस पत्रकारों को भी गिरफ्तार कर रही है. प्रदर्शनों पर खबर कर रहे एसोसिएटेड प्रेस के थेइन जौ और पांच और पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है. उन्हें तीन साल तक की जेल हो सकती है.
म्यांमार में दमन का कुचक्र
सू ची की छाया
प्रदर्शनकारियों में से कई म्यांमार की नेता आंग सान सू ची के समर्थक हैं, जिन्हें सेना ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. प्रदर्शनों में सू ची की रिहाई और लोकतंत्र की बहाली की मांग उठ रही है.
रिपोर्ट: चारु कार्तिकेय
हजारों नए संक्रमण और बढ़ती मौतों के साथ ही देश की व्यवस्था जल्द ही आपातकाल के घेरे में आ गई. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ 25 जुलाई को ही कोविड से संबंधित बीमारियों के कारण यहां 355 लोगों की मौत हो गई और अब तक मरने वालों की कुल संख्या 7100 से ज्यादा है. मौतों की यह संख्या सिर्फ वही दर्ज है जो अस्पतालों में हुई है.
सेना के प्रमुख, मिन आंग हलिंग ने हाल ही में असंतुष्ट स्वास्थ्यकर्मियों से काम पर लौटने के लिए एक सार्वजनिक अपील जारी करते हुए कहा कि सभी स्वास्थ्यकर्मियों को कोविड आपातकाल से निपटने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.
सीडीएम से जुड़े स्वास्थ्यकर्मियों ने हालांकि इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है और सेना से कहा है कि वो लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को सत्ता वापस कर दे. इन लोगों ने सोशल मीडिया पर यह कहना शुरू किया है, "हम तभी काम पर वापस आएंगे, जब आप लोग अपनी बैरकों में वापस चले जाएंगे.”
फिर जनता पर दबाव
म्यांमार में पहले से ही स्वास्थ्य व्यवस्था सबसे कमजोर स्थिति में है और यह दुनिया की सबसे खराब स्वास्थ्य प्रणालियों में से एक है, वहीं कोविड संक्रमण और सैन्य तख्तापलट के संयुक्त प्रभाव ने इसे लगभग खत्म कर देने की स्थिति में ला खड़ा किया है.
हाल के हफ्तों में अस्पतालों में ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई है. अपने प्रियजनों के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए हताश रिश्तेदारों की तस्वीरें वायरल हो रही हैं.
म्यांमार में तख्तापलट के विरोध में बनी राष्ट्रीय एकता की सरकार ने अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक खुला पत्र लिखा है जिसमें ऑक्सीजन की कमी और सुरक्षा बलों की ओर से पैदा की गई ऑक्सीजन उत्पादन की खतरनाक और अमानवीय स्थिति की ओर ध्यान दिलाया गया है.
देखिएः 21वीं सदी के तख्तापलट
21वीं सदी के तख्तापलट
म्यांमार
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर फिर एक बार देश की सत्ता की बाडगोर संभाली है. 2020 में हुए आम चुनावों में सू ची की एनएलडी पार्टी ने 83 प्रतिशत मतों के साथ भारी जीत हासिल की. लेकिन सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. देश में लोकतंत्र की उम्मीदें फिर दम तोड़ती दिख रही हैं.
21वीं सदी के तख्तापलट
माली
पश्चिमी अफ्रीकी देश माली में 18 अगस्त 2020 को सेना के कुछ गुटों ने बगावत कर दी. राष्ट्रपति इब्राहिम बोउबाखर कीटा समेत कई सरकारी अधिकारी हिरासत में ले लिए गए और सरकार को भंग कर दिया गया. 2020 के तख्तापलट के आठ साल पहले 2012 में माली ने एक और तख्तापलट झेला था.
21वीं सदी के तख्तापलट
मिस्र
2011 की क्रांति के बाद देश में हुए पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के बाद राष्ट्रपति के तौर पर मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता संभाली थी. लेकिन 2013 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का फायदा उठाकर देश के सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल सिसी ने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. तब से वही मिस्र के राष्ट्रपति हैं.
21वीं सदी के तख्तापलट
मॉरिटानिया
पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरिटानिया में 6 अगस्त 2008 को सेना ने राष्ट्रपति सिदी उल्द चेख अब्दल्लाही (तस्वीर में) को सत्ता से बेदखल कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली. इससे ठीक तीन साल पहले भी देश ने एक तख्तापलट देखा था जब लंबे समय से सत्ता में रहे तानाशाह मोओया उल्द सिदअहमद ताया को सेना ने हटा दिया.
21वीं सदी के तख्तापलट
गिनी
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे लांसाना कोंते की 2008 में मौत के बाद सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. कैप्टन मूसा दादिस कामरा (फोटो में) ने कहा कि वह नए राष्ट्रपति चुनाव होने तक दो साल के लिए सत्ता संभाल रहे हैं. वह अपनी बात कायम भी रहे और 2010 के चुनाव में अल्फा कोंडे के जीतने के बाद सत्ता से हट गए.
21वीं सदी के तख्तापलट
थाईलैंड
थाईलैंड में सेना ने 19 सितंबर 2006 को थकसिन शिनावात्रा की सरकार का तख्तापलट किया. 23 दिसंबर 2007 को देश में आम चुनाव हुए लेकिन शिनावात्रा की पार्टी को चुनावों में हिस्सा नहीं लेने दिया गया. लेकिन जनता में उनके लिए समर्थन था. 2001 में उनकी बहन इंगलक शिनावात्रा थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनी. 2014 में फिर थाईलैंड में सेना ने तख्तापलट किया.
21वीं सदी के तख्तापलट
फिजी
दक्षिणी प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश फिजी ने बीते दो दशकों में कई बार तख्तापलट झेला है. आखिरी बार 2006 में ऐसा हुआ था. फिजी में रहने वाले मूल निवासियों और वहां जाकर बसे भारतीय मूल के लोगों के बीच सत्ता की खींचतान रहती है. धर्म भी एक अहम भूमिका अदा करता है.
21वीं सदी के तख्तापलट
हैती
कैरेबियन देश हैती में फरवरी 2004 को हुए तख्तापलट ने देश को ऐसे राजनीतिक संकट में धकेल दिया जो कई हफ्तों तक चला. इसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रपति जाँ बेत्रां एरिस्टीड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और फिर राष्ट्रपति के तौर पर बोनीफेस अलेक्सांद्रे ने सत्ता संभाली.
21वीं सदी के तख्तापलट
गिनी बिसाऊ
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ में 14 सितंबर 2003 को रक्तहीन तख्तापलट हुआ, जब जनरल वासीमो कोरेया सीब्रा ने राष्ट्रपति कुंबा लाले को सत्ता से बेदखल कर दिया. सीब्रा ने कहा कि लाले की सरकार देश के सामने मौजूद आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बकाया वेतन को लेकर सेना में मौजूद असंतोष से नहीं निपट सकती है, इसलिए वे सत्ता संभाल रहे हैं.
21वीं सदी के तख्तापलट
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
मार्च 2003 की बात है. मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे नाइजर के दौरे पर थे. लेकिन जनरल फ्रांसुआ बोजिजे ने संविधान को निलंबित कर सत्ता की बाडगोर अपने हाथ में ले ली. वापस लौटते हुए जब बागियों ने राष्ट्रपति पाटासे के विमान पर गोलियां दागने की कोशिश की तो उन्होंने पड़ोसी देश कैमरून का रुख किया.
21वीं सदी के तख्तापलट
इक्वाडोर
लैटिन अमेरिकी देश इक्वोडोर में 21 जनवरी 2000 को राष्ट्रपति जमील माहौद का तख्लापलट हुआ और उपराष्ट्रपति गुस्तावो नोबोआ ने उनका स्थान लिया. सेना और राजनेताओं के गठजोड़ ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. लेकिन आखिरकर यह गठबंधन नाकाम रहा. वरिष्ठ सैन्य नेताओं ने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया और तख्तापलट करने के वाले कई नेता जेल भेजे गए.
सुरक्षा सेवाओं के खिलाफ भी आरोप लगाए गए हैं कि वे अक्सर ऑक्सीजन की आपूर्ति को जब्त कर लेते हैं और लोगों को उन्हें सुरक्षित रखने से रोकते हैं. हालांकि सैन्य सरकार इन आरोपों को झूठा और राजनीति से प्रेरित बता रही है.
सरकार के स्वामित्व वाले मीडिया ने बताया कि हाल ही में कोविड की स्थिति का आकलन करने के लिए हुई एक बैठक में, जुंटा प्रमुख ने कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए सोशल मीडिया पर स्वास्थ्य आपातकाल के दुरुपयोग और उसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है.
अधिकारियों ने यह भी कहा कि सरकार ने मांग में वृद्धि को पूरा करने के लिए पोर्टेबल ऑक्सीजन सांद्रता और कोविड से ​​​​संबंधित अन्य उपकरणों की पर्याप्त मात्रा का आयात किया है.
इस बीच, चीन से हाल ही में टीके आने के बाद 25 जुलाई को सार्वजनिक टीकाकरण कार्यक्रम फिर से शुरू हुआ. उन लोगों पर फिर से दबाव है जो अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि उन्हें टीका लेना है या नहीं.
ह्नीन यी ऑन्ग कहती हैं, "मैं अपनी मां से इस बार वैक्सीन लेने के लिए आग्रह करूंगी. हालांकि यह उनके और हमारे परिवार पर निर्भर है.”
रिपोर्टः माऊंग बो, यंगून
देखिएः कौन हैं रोहिंंग्या मुसलमान
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.
रिपोर्ट: अशोक कुमार
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