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Zila Panchayat Elections: जिला पंचायत चुनाव जीत की 'ब्रैंडिंग' करेगी भाजपा, हर जिले में गांव-गांव तक पहुंचेगा विजय संदेश
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UP Zila Panchayat Elections: भाजपा ने अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने के लिए हर जिले के लिए अलग रणनीति बनाई थी और नतीजे आने के बाद लग रहा है कि वह उसमें कामयाब भी हुई।
 
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हाइलाइट्स:
रणनीति और कौशल से जीतीं जिला पंचायत अध्यक्ष की 67 सीटें
हर जिले में गांव-गांव तक पहुंचेगा बीजेपी का विजय संदेश
चुनाव में हर जिले के लिए BJP ने बनायी थी अलग रणनीति
लखनऊ
भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए 65+ सीटें जीतने का दावा किया था, नतीजे आने के बाद वह इस दावे तक पहुंचने में सफल भी रही। यूपी के 75 जिलों में हुए चुनाव में भाजपा+ के घोषित 67 प्रत्याशी जीते। जिला पंचायत सदस्य पद पर सपा के ज्यादा सीट जीतने के दावे के बाद अब भाजपा अध्यक्ष पद पर अपनी 'जीत' की 'ब्रैंडिंग' करने की तैयारी में जुट गई है। 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले इसे गांव-गांव तक पहुंचाया जाएगा। इसकी शुरुआत जीत के बाद प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, गृहमंत्री से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्रियों के बधाई संदेशों ने कर दी है। पार्टी की रणनीति है कि इससे न केवल नकारात्मक माहौल को बेहतर किया जा सकेगा, बल्कि कार्यकर्ताओं में भी नया जोश भरेगा।
सपा के गढ़ में दिखाया दम
जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव में भाजपा अयोध्या, बनारस समेत कई ऐसे जिलों में दम नहीं दिखा सकी थी, जो भाजपा का गढ़ माने जाते हैं। सपा ने खुद को हर जिले में यह दिखाने की कोशिश की थी कि पंचायत चुनाव पर अब भी उसका कब्जा है और वह जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भी जीत हासिल करेगी। पर जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में अपनी रणनीतिक कौशल से भाजपा ने अपना दम दिखाया और संभल, फिरोजाबाद, कन्नौज, बदायूं और संभल जैसे जिलों में भी जीत हासिल की, जो समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाते हैं। सिर्फ इटावा ही इकलौता जिला रहा, जहां समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी निर्विरोध जीता। भाजपा ने यहां अपना प्रत्याशी भी खड़ा नहीं किया था। यही नहीं अयोध्या और वाराणसी के साथ पश्चिमी यूपी के सपा के जीत के दावों वाले जिलों में भी भाजपा जीत गई।
हर जिले के लिए बनायी थी अलग रणनीति
भाजपा ने अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने के लिए हर जिले के लिए अलग रणनीति बनाई थी और नतीजे आने के बाद लग रहा है कि वह उसमें कामयाब भी हुई। पार्टी ने अपना मुख्य फोकस 3050 जिला पंचायत सदस्यों में से 1000 से ज्यादा जीते निर्दलीयों पर लगाया था। इन निर्दलीयों में अधिकांश वह भी थे, जो भाजपा से 'बागी' होकर चुनाव मैदान उतरे थे। भाजपा ने बाद में इन्हें पार्टी से निकाल भी दिया था। जब वह सदस्य का चुनाव जीत गए तो उनकी 'घर वापसी' करवाई गई और दोबारा पार्टी में शामिल कराया गया। हर जिले में प्रभारी मंत्री के अलावा स्थानीय विधायकों, सांसदों को भी जुटाया गया, जिन्होंने हरसंभव प्रत्याशी की मदद की।
पंचायत चुनाव जीते, विधानसभा में धराशायी
2010 में मायावती की सरकार थी और उसने पंचायत चुनाव में दमखम दिखाया और बड़ी जीत हासिल की। लेकिन जब 2012 में विधानसभा चुनाव हुए तो सरकार से बाहर हो गई। 2015 में हुए पंचायत चुनाव में सपा सरकार थी और 75 में 63 सीटें जीत गई थी, पर 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में उसकी जगह भाजपा ने ले ली, सपा बुरी तरह हार गई और सरकार भाजपा ने बनायी।
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