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With The Birth Of A Daughter, The Lines Of Worry Appear On The Forehead Of The Father, Whether The Boy Is In A Government Job Or A Private One, Without A Huge Demand, There Is No Marriage.
परंपरा के नाम पर पाप:बेटी के जन्म के साथ ही पिता के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगती हैं, लड़का सरकारी नौकरी में हो या प्राइवेट, मोटी रकम के बिना शादी नहीं होती
भोपाल10 मिनट पहलेलेखक: मेघा
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दहेज का नाम सुनते ही शर्मिंदगी सी महसूस होने लगती है। इसके चलते न जाने कितने अरमानों के दम घुट गए, न जाने कितनी बेटियां सूली पर चढ़ गईं। शायद ही कोई दिन होगा जब अखबारों और समाचारों में दहेज की दर्द भरी दास्तां न छपी हो। दहेज का ही दंश है कि घर में बेटी के जन्म लेते ही माता-पिता के सिर पर चिंता की लकीरें दिखनी शुरू हो जाती हैं। उसकी शादी के लिए रकम जुटाने की कोशिश शुरू हो जाती है। कई लोगों को तो दहेज की रकम जुटाने के लिए जमीन-जायदाद तक बेचना पड़ती है, गिरवी रखनी पड़ती है।
इसके विरोध में कानून बने, मुहिम शुरू हुई लेकिन अभी भी हालात जस के तस ही हैं। अगर आप सोचते हैं कि अब जमाना मॉडर्न हो गया है और दहेज प्रथा सिर्फ गांव-देहात में रह गई है… तो आप गलत हैं। बड़े शहरों में पर्सनल फाइनेंस प्लानर्स अपनी बेटी की शादी के लिए अलग से निवेश कराते हैं और लोग करते भी हैं।
लड़कों के बकायदा रेट फिक्स किए जाते हैं। लड़के की जाति, समुदाय, पढ़ाई, जमीन- जायदाद को देखकर उन्हें कितना दहेज मिल सकता है, ये सब फिक्स किया जाता है। दहेज तो पेटियों में तय होता है। अगर लड़का IAS- IPS है तो 1 करोड़ रेट चलता है। अगर इंजीनियर डॉक्टर है तो बात लाखों में जाती है। वहीं लड़का छोटी-मोटी सरकारी नौकरी में है तो भी गाड़ी के साथ मोटी रकम की डिमांड होती है। और ये सिर्फ सरकारी दूल्हों के लिए नहीं है.. प्राइवेट सेक्टर में भी कमोबेश यही हाल हैं। अगर बेटी कमाऊ है तो वो अपने आप में ही दहेज है। एक लाइफटाइम इन्वेस्टमेंट की तरह।
भारत में दहेज की अब तक क्या स्थिति बनी है, चलिए इसके लिए आपके सामने कुछ आंकड़े रखते हैं। साल 2005 से लेकर 2009 तक भारत में दहेज के हर साल करीब 6500 मामले दर्ज किए गए थे। 2010 में यह आंकड़ा बढ़कर 8391 पहुंच गया। 2011 में 8618 मामले मिले तो 2012 में 8233 यानी हर साल कभी थोड़ा कम तो कभी थोड़ा ज्यादा, लेकिन दहेज का दंश एक पिता और उसका परिवार झेलता रहा है।
उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में एक लड़की ने अपने दरवाजे से बारात लौटा दी, क्योंकि लड़के वाले दहेज की डिमांड कर रहे थे।
हालांकि इन सबके बीच आज कई लड़कियां ऐसी हैं जो हिम्मत जुटा कर इसका विरोध कर रही हैं। इसका सबसे बड़ा फैक्टर है लड़कियों का इंडिपेंडेंट होना। आज लड़कियां पढाई कर रही हैं, पैसे कमा रही हैं, अपनी जिंदगी के लिए किसी दूसरे पर निर्भर नहीं हैं। ऐसे में दहेज मांगने वाले लोगों को सीधे ना कह दे रही हैं। इसकी एक झलक इन दो कहानियों से देख लेते हैं...
पहली कहानी: उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में एक दूल्हा दहेज में बुलेट की जिद कर रहा था। जब ये बात दुल्हन को पता चली तो उसने फौरन शादी से इंकार कर दिया। लोगों ने दुल्हन को बहुत समझाया, पर वह अपने फैसले पर अडिग रही और दरवाजे से ही बारात को लौटा दिया।
दूसरी कहानी: मुरादाबाद के भोजपुर जिले में शादी तय होने से पहले दूल्हे के पक्ष वाले लोगों ने 5 लाख नकद और गाड़ी की मांग की थी। जब लड़की को ये बात पता चली तो उसने उसी वक्त शादी करने से मना कर दिया।
अच्छी बात है कि बदलाव की बयार अब बह रही है, लड़कियां आगे आकर हिम्मत दिखा रही हैं, लेकिन अभी भी मीलों चलना बाकी है। ये प्रथा हमारे समाज में इतनी बुरी तरह धंस चुकी हैं कि अब ये परंपरा बन चुकी है। सिर्फ लड़कियों की पहल से हालात नहीं बदलने वाले हैं। लड़कों को भी इस मुहिम में आगे आना चाहिए, उन्हें खुद आगे बढ़कर दहेज का विरोध करना चाहिए। तभी इसके दंश से हम मुक्ति पा सकते हैं।
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