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मशहूर साइंस मैग्जीन नेचर में पब्लिश फ्रांस के पाश्चर इंस्टीट्यूट की ताजा रिसर्च के मुताबिक कोरोना वैक्सीन की एक डोज से वायरस के बीटा और डेल्टा वैरिएंट पर अमूमन कोई असर नहीं पड़ता। यह रिसर्च एस्ट्राजेनेका और फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन लेने वालों पर की गई। भारत में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन कोवीशील्ड नाम से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में बनाई जा रही है।
इससे उलट इन दोनों वैक्सीन के दोनों डोज लेने वाले लोगों के इम्यून सिस्टम ने काफी कुशलता से डेल्टा वैरिएंट को बेअसर कर दिया। रिसर्च के लीड ऑथर ओलिवियर श्वार्ट्ज और पेरिस में पाश्चर इंस्टीट्यूट में वायरस और इम्यूनिटी यूनिट के हेड का कहना है कि यह खोज एक अच्छी खबर है।
रिसर्च के मुताबिक एस्ट्राजेनेका या फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन की एक डोज लगवाने वाले मात्र 10% लोग कोरोना के अल्फा और डेल्टा वैरिएंट को नाकाम कर सके। वहीं, इन दोनों में से किसी एक वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने वाले 95% लोगों ने डेल्टा और बीटा वैरिएंट को नाकाम कर दिया। रिसर्चर्स का कहना है कि यह एक बड़ा अंतर है।
मतलब साफ है अगर डेल्टा या बीटा वैरिएंट से लड़ने की ताकत पैदा करनी है तो कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज जरूरी हैं। या यों कहें कि भारत में कोवीशील्ड की दोनों डोज लगवाने के बाद 95% लोगों में डेल्टा वैरिएंट को नाकाम करने की ताकत पैदा हो जाएगी।
कोरोना को मात देने वालों के एंटीबॉडीज 4 गुना कम कारगर फ्रेंच रिसर्चर्स ने ऐसे लोगों की भी जांच की जिन्हें वैक्सीन तो नहीं लगी, लेकिन वे कोरोना के खिलाफ लड़ाई जीत चुके थे। रिसर्च के मुताबिक ऐसे लोगों में पैदा हुए एंटीबॉडीज कोरोना के डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ आम कोरोना से चार गुना कम कारगर पाए गए।
ऐसे लोगों को वैक्सीन की एक डोज लगने के बाद ही उनके एंटीबॉडीज की ताकत अद्भुत तरीके से बढ़ गई।
साफ है कोरोना को एक बार हरा चुके लोग इस बात से तसल्ली में न रहें कि उनके शरीर में अब एंटीबॉडीज हैं, क्योंकि ये एंटीबॉडीज या प्रतिरोध डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ चार गुना कम कारगर हैं।
डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ खास वैक्सीन बना रहे फाइजर और बायोएनटेक फाइजर और बायोएनटेक कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ खास वैक्सीन बना रहे हैं। गुरुवार को दोनों कंपनियों ने यह ऐलान किया। दोनों कंपनियां अगस्त से इन वैक्सीन्स का क्लिनिकल ट्रायल शुरू कर सकती हैं।
तीसरी यानी बूस्टर डोज के नतीजे भी काफी अच्छे फाइजर और बायोएनटेक ने गुरुवार को जारी न्यूज रिलीज में बताया कि उनकी वैक्सीन की तीसरी डोज लगाने से भी काफी अच्छे नतीजे मिले हैं। हालांकि दोनों ही कंपनियों ने इन नतीजों से जुड़ा डेटा जारी नहीं किया।
बूस्टर डोज कही जाने वाली कोरोना वैक्सीन की तीसरी डोज शुरुआती दोनों डोज के छह महीने बाद दी जाती है।
कंपनियों का दावा है कि ऐसा एक बूस्टर डोज कोरोना के मूल वायरस और बीटा वैरिएंट के खिलाफ पैदा होने वाले एंटीबॉडीज को पांच से दस गुना तक ताकतवर बना देती है। माना जा रहा है कि दोनों कंपनियां अमेरिकी फूड एंड ड्रंग एडमिनिस्ट्रेशन (US-FADA) को अगले दो-तीन सप्ताह में डेटा सौंप देंगी।
ICMR ने भी वैक्सीन की दोनों डोज को बताया था कारगर फ्रेंच रिसर्चर्स के यह नतीजे इसी हफ्ते की शुरुआत में आई ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) की उस रिसर्च के समान ही हैं, जिसमें कहा गया था कि कोरोना वैक्सीन की दो डोज डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ 95% सुरक्षा देता है। वहीं एक डोज लेने वालों के लिए यह आंकड़ा गिरकर 82% हो जाता है।
भारत के बाद अमेरिका समेत कई देशों में कोहराम मचा रहा डेल्टा वैरिएंट
भारत में खौफनाक दूसरी लहर का कारण बना डेल्टा वैरिएंट अब तक 98 देशों में फैल चुका है। यह इन दिनों अमेरिका, मलेशिया, पुर्तगाल, इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में कोहराम मचाए हुए है। साल की शुरुआत में इसने ब्रिटेन और यूरोप में हजारों लोगों को संक्रमित कर दिया।
फिलहाल यह अमेरिका में डॉमिनेंट वैरिएंट, यानी सबसे ज्यादा पाया जाने वाला कोरोना वैरिएंट है। वहां मिल रहे सभी नए मामलों में 51.7% मामले डेल्टा वैरिएंट के हैं। इससे पहले वहां अल्फा प्रमुख वैरिएंट था।
पहली बार भारत में मिला था डेल्टा वैरिएंट, दोगुना तेजी से फैलता है
कोरोना वायरस का डेल्टा वैरिएंट पहली बार भारत में मिला था। माना जाता है कि अल्फा वैरिएंट के मुकाबले 60% और मूल कोरोना वायरस से दोगुना तेजी यानी 100% ज्यादा तेजी से फैलता है।
फ्रांस में हुई यह रिसर्च भारत के लिए बेहद जरूरी
दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीनेशन अभियान के दावे के बावजूद भारत में शुक्रवार (9 जुलाई) तक केवल 4.9 आबादी को कोरोना की दोनों डोज लग सकी हैं। वहीं 21% लोगों को वैक्सीन की एक डोज लगी है। दूसरी ओर अमेरिका में 55% आबादी को एक डोज और 48% लोग पूरी तरह वैक्सीनेट हो चुके हैं।
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